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Chaitra Navratri 2023: नवरात्रि के नवें दिन करें मां सिद्धिदात्री की पूजा, फिर ऐसे करें हवन और कन्या पूजन

Chaitra Navratri 2023: Mahanavami par Maa Siddhidatri ki puja vidhi, Kanya pujan aur Hawan Vidhi: चैत्र नवरात्रि गुरुवार को सम्पन्न हो रहे हैं। इस बार पूरे नौ दिन का यह शक्ति पर्व मनाया गया है। महानवमी या रामनवमी शक्ति की साधना के पर्व का अंतिम दिन होता है। इस बार महानवमी, दुर्गा नवमी, नवमी या रामनवमी 30 मार्च 2023 को मनाया जा रहा है। नवमी पर दुर्गा मां के नवे स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा करने का विधान माना गया है। इस दिन कई लोग कन्या पूजन कर शुभ मुहूर्त में हवन करते हैं और फिर व्रत का पारण करने की परम्परा है। हालांकि कई लोग महा अष्टमी पर भी हवन और व्रत का पारण करते हैं। इस दिन मां अंबे के साथ भगवान राम की भी पूजा किए जाने का विधान है। माना जाता है कि इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। इसीलिए हर साल चैत्र शुक्ल नवमी को प्रभु श्रीराम का जन्मोत्सव यानी राम नवमी भी मनाई जाती है। पत्रिका.कॉम के इस लेख में भोपाल के ज्योतिषाचार्य पं. जगदीश शर्मा आपको बता रहे हैं कि महानवमी या नवमी या रामनवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना कैसे करनी चाहिए। हवन सामग्री से लेकर हवन करने का तरीका और भगवान राम की पूजा के विधान के साथ ही नवमी के दिन सुख-समृद्धि के लिए किया जाने वाला महाउपाय भी…

बेहद खास होता है नवरात्रि का नवां दिन
नवरात्रि पर्व का नवां दिन बेहद खास माना जाता है। इस दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा की जाती है। नवरात्रि नवमी को दुर्गा नवमी और महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मां अंबे के साथ भगवान राम की भी पूजा की जाती है।

नवरात्रि राम नवमी मुहूर्त 2023
– राम नवमी और महा नवमी 30 मार्च 2023
– राम नवमी मध्याह्न मुहूर्त 11 बजकर 11 मिनट से 1 बजकर 40 मिनट तक
– मुहूर्त अवधि 2 घण्टे 29 मिनट तक।
– राम नवमी मध्याह्न का क्षण 12 बजकर 26 मिनट तक।
– नवमी तिथि प्रारम्भ 29 मार्च 2023 को 9 बजकर 7 मिनट से
– नवमी तिथि समाप्त 30 मार्च 2023 को 11 बजकर 30 मिनट तक।

राम नवमी पर क्या करें

– इस दिन भगवान राम की मूर्ति को फूल-माला से सजाया जाता है।
– राम नवमी पर भक्तगण रामायण का पाठ जरूर करें।
– रामरक्षा स्रोत पढ़ें।
– इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था इसलिए इस त्योहार पर श्रीराम जी की मूर्ति को पालने में झुलाने की भी परंपरा है।

राम नवमी की पूजा विधि
– राम नवमी के दिन सुबह-सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लेकर प्रभु श्री राम के बालरूप की पूजा करें।
– इस दिन रामलला को झुले में विराजकर उनके झुले को सजाया जाता है।
– राम नवमी की पूजा दिन में 12 बजे के आसपास की जाती है।
– पूजा के लिए तांबे के कलश में आम के पत्ते, नारियल, पान आदि रखकर कलश को चावल के ढेर पर स्थापित कर लें और उस के आसपास चौमुखी दीपक जला लें।
– श्री राम को खीर, फल, मिठाई, पंचामृत, कमल, तुलसी और फूल माला अर्पित करें।
– विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
– राम नवमी के दिन पंचामृत के साथ पिसे हुए धनिये में गुड़ या शक्कर मिलाकर प्रसाद बनाकर बांटें।

क्यों मनाते हैं राम नवमी
रावण अपने राज्यकाल में बहुत अत्याचार करता था। उसके अत्याचार से त्रस्त होकर सभी देवतागण भगवान विष्णु के पास गए और उनसे प्रार्थना करने लगे। रावण के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रतापी राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या की कोख से भगवान विष्णु ने राम के रूप में जन्म लिया। कहते हैं जिस दिन भगवान राम का जन्म हुआ, उस दिन चैत्र शुक्ल नवमी तिथि थी, इसीलिए इस दिन राम नवमी मनाने की परंपरा शुरू हुई।

नवरात्रि नवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि
– नवरात्रि के नवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा में प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ तरह के फूल, फल आदि सामग्री शामिल करें।
– पूजा में सबसे पहले देवी मां का ध्यान करें और उनके मंत्रों का जाप करें।
– अब मां सिद्धिदात्री को फल, पांच मेवा, भोग, मिष्ठान, नारियल आदि अर्पित करें।
– इसके बाद माता को रोली लगाएं।
– इसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
– नवरात्रि के नवें दिन की कथा सुनें।
– फिर मां की आरती उतारें।
– अब मां को हलवा, पूरी और चने का भोग लगाएं।
– इसके बाद कन्या पूजन करें और उन्हें भोजन कराएं।
– इसके बाद प्रसाद सभी में बांट दें।

मां सिद्धिदात्री के मंत्र
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
सिद्धगंधर्वयक्षाद्यै:, असुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात्, सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

 

नवमी पर हवन
दरअसल नवरात्रि का समापन हवन के साथ होता है। माना जाता है कि नवरात्रि के आखिरी दिन हवन करने से मां की साधना पूरी हो जाती है। इसीलिए इस दिन हवन आवश्यक है। सनातन धर्म में हवन को अति पवित्र कर्मकांड माना गया है। हवन करने से आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है।

नोट करें हवन सामग्री
आम की लकडिय़ां, हवन कुंड, गाय का शुद्ध घी, सूखा नारियल, सुपारी, लॉन्ग, इलायची, कलावा, रोली, पान का पत्ता, हवन सामग्री, कपूर, चावल, शक्कर, हवन की पुस्तिका।

ऐसे करें हवन
– हवन शुरू करने से पहले सबसे पहले पूजे जाने वाले भगवान श्री गणेश का ध्यान करें।
– हवन के स्थान को शुद्ध कर लें। सभी सामग्री को गंगाजल का छींटा लगाकर शुद्ध किया जाता है।
– अब आटा लें और जमीन पर रंगोली बना दें, इसके ऊपर हवन कुंड रख दें।
– सभी सामग्री को एक जगह रख लें।
– हवन कुंड में आम की लकड़ी लगा दें।
– अब एक कपूर जलाएं और लकडिय़ों के बीच में रख दें।
– अब मंत्रोच्चार करते हुए हवन में घी डालें।
– भगवान गणेश, देवी दुर्गा, अग्नि देव, पंचदेव, नवग्रह, ग्राम देवता, नगर देवता के नाम से आहुति दें।
– दुर्गा शक्ति के मंत्र से 108 बार आहुति दें।
– अंत में सूखा नारियल लें उसमें छेद कर दें उसके अंदर घी डाल दें।
– अब इस नारियल पर कलावा बांधकर पान ,सुपारी , लौंग, इलायची और अन्य प्रकार के प्रसाद से इसे भर दें।
– पूर्ण आहुति देते हुए हवन अग्नि में नारियल को ऊपर से नीचे की ओर डालते हुए ‘ऊं पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।’ मंत्र का जाप करें।
– दुर्गा देवी, नारायण भगवान, महादेव की आरती करें और दक्षिणा रखें।
– हवन के बाद कन्या पूजन करें ।

नवमी पर कन्या पूजन विधि
– नवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को घर बुलाएं।
– ध्यान रखें कि कन्याओं के साथ एक बालक की भी पूजा की जाती है।
– सबसे पहले उनके पैर धोएं।
– फिर उनके माथे पर तिलक लगाएं और हाथ में कलावा बांधे।
– उनकी आरती उतारें।
– अब उन्हें भोजन कराएं।
– भोजन में हलवा, पूरी और चना जरूर होना चाहिए।
– कन्याओं को भोजन कराने के बाद उन्हें लाल चुनरी चढ़ाएं।
– इसके साथ ही आप जो भी उपहार कन्याओं को देना चाहते हैं वो दे सकते हैं।
– फिर कन्याओं के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेना न भूलें।

मां सिद्धिदात्री की कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक जब पूरे ब्रह्मांड में अंधकार छा गया था, तब उस अंधकार में ऊर्जा की एक छोटी सी किरण प्रकट हुई। ऊर्जा की ये किरण धीरे-धीरे बड़ी होती गई और इसने एक दिव्य नारी का रूप धारण कर लिया। कहते हैं यही देवी भगवती का नवां स्वरूप मां सिद्धिदात्री थीं। कहा जाता है कि मां सिद्धिदात्री ने प्रकट होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश को जन्म दिया था। कहते हैं भगवान शिव शंकर को जो आठ सिद्धियां प्राप्त थीं, वे मां सिद्धिदात्री की कृपा के कारण ही थीं। मां सिद्धिदात्री के कारण ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ, जिससे शिव का एक नाम अर्धनारेश्वर पड़ा।

इसके अलावा एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक जब सभी देवी-देवता महिषासुर के अत्याचारों से परेशान हो गए थे तब, त्रिदेव ने सिद्धिदात्री को जन्म दिया था। जिन्होंने महिषासुर से युद्ध करके उसका वध किया और उसके आतंक से तीनों लोकों को मुक्ति दिलाई।

मां सिद्धिदात्री की आरती
जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता
तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता,
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि
कठिन काम सिद्ध कराती हो तुम
हाथ सेवक के सर धरती हो तुम,
तेरी पूजा में न कोई विधि है
तू जगदंबे दाती तू सर्वसिद्धि है
रविवार को तेरा सुमरिन करे जो
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो,
तू सब काज उसके कराती हो पूरे
कभी काम उस के रहे न अधूरे
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया
रखे जिसके सर पैर मैया अपनी छाया,
सर्व सिद्धि दाती वो है भाग्यशाली
जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा
महानंदा मंदिर में है वास तेरा,
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता
वंदना है सवाली तू जिसकी दाता…

नवें दिन या महा नवमी का महा उपाय
नवरात्रि के आखिरी दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप को मौसमी फल, हलवा, चना, पूरी, खीर और नारियल अवश्य अर्पित करें। इसके साथ ही इस दिन हवन पूजन अवश्य करें। महा नवमी पर दुर्गा सप्तशती के 12वें अध्याय का 21 बार पाठ करें। माना जाता है कि इस उपाय से आपकी नौकरी या व्यापार में आने वाली सभी परेशानियां दूर हो जाएंगी।

राम जी की आरती
श्री राम चंद्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणम्।
नव कंजलोचन, कंज-मुख, कर-कंज, पद कंजारुणम्।।
कन्दर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्यवंश निकन्दनम्।।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर सग्राम जित खरदूषणं।।
इति वदित तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन रंजनम्।
मम ह्रदय –कंच निवास कुरु कामादि खलदल-गंजनम्।।
मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर सांवरो।
करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो।।
एही भांति गौरी असीस सुनी सिया सहित हियं हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजी पुनी पुनी मन मन्दिर चली।।

– दोहा
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु ना जाइ ककहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

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Source: Lifestyle