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अधिकमास को न कहिए मलमास, नाराज हो सकते हैं भगवान, यह है वजह

मलमास को ऐसे समझिए
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जिस महीने में सूर्य संक्रांति नहीं होती, वह महीना निकृष्ट, मलिन माना जाता है। इसलिए इसे मलमास कहा जाता है। अधिकमास में भी सूर्य संक्रांति नहीं होती, इसलिए पहले इसे मलमास माना जाता है। इसके कारण इस महीने में किसी प्रकार के शुभ, मांगलिक कार्य नहीं होते। हालांकि धर्म कर्म, पूजा पाठ, जप-तप के लिए यह महीना विशेष पुण्यफलदायक माना जाता है। अधिकमास में जप तप दूसरे समय में पूजा पाठ, जप-तप से अधिक पुण्यफल प्राप्त होता है।

अधिकमास क्या है
सौर वर्ष और चंद्र वर्ष में 11 दिन कुछ घंटे का अंतर होता है। तीन साल में यह अंतर एक माह से अधिक हो जाता है। इसे पाटने के लिए हर तीसरे साल हिंदी कैलेंडर में एक माह बढ़ जाता है। इसी को अधिकमास कहते हैं। तीन साल में एक बार आने वाला यह महीना भगवान विष्णु का प्रिय महीना है। इसीलिए इसको पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। इस महीने सूर्य संक्रांति नहीं होती।

ज्योतिषाचार्य पं. अरविंद तिवारी के अनुसार हर महीने का स्वामित्व किसी न किसी ग्रह के पास है। लेकिन इस महीने की रचना के बाद कोई भी ग्रह इसका स्वामित्व लेने के लिए तैयार नहीं था। इसलिए भगवान विष्णु ने इसका स्वामित्व स्वीकार किया। इसलिए ही इसे पुरुषोत्तम मास कहा जाता है।

इस महीने में भी जप-तप, पूजा-पाठ करना बहुत पुण्यफलदायक होता है। हालांकि इस महीने में भी शुभ कार्य विवाह, मुंडन और गृहप्रवेश आदि वर्जित होते हैं। लेकिन फिर भी इसको मलमास कहना उचित नहीं है, क्योंकि इस महीने के इसे लांछन को दूर करने के लिए भगवान ने उसे स्वीकार कर पुरुषोत्तम मास कहा और भगवान की इच्छा का पालन न करना पुण्य की जगह पाप ही दिलाएगा।

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16 अगस्त तक है अधिकमास
कैलेंडर में हर तीसरे साल आने वाले अधिकमास की शुरुआत 18 जुलाई को हुई है और यह महीना 16 अगस्त तक चलेगा। खास बात यह है कि यह महीना 19 साल बाद सावन में पड़ा है, इसलिए इसका महत्व बढ़ गया है।

मलमास के पुरुषोत्तम मास बनने की कहानी
एक कथा के अनुसार जब अतिरिक्त महीने की रचना हुई तो इसका स्वामी बनने के लिए कोई ग्रह तैयार नहीं हुआ। देवता भी इसका निंदा करने लगे। इस अपमान से दुखी मलमास भगवान विष्णु के पास पहुंचा, और व्यथा सुनाई। उसने कहा कि उसकी हर जगह निंदा होती है, उसका अनादर होता है, उसे कोई स्वीकार नहीं करता। इसलिए उसका कोई स्वामी नहीं है। जिससे उसे दुख होता है।

इस पर भगवान विष्णु उसे गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण के पास ले गए। यहां फिर अधिकमास ने अपनी पीड़ा सुनाई, बताया कि उसका हर जगह अनादर होता है तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा अब से मैं संसार में तुम्हारा स्वामी हूं। मैं तुम्हें स्वीकार करता हूं और कोई तुम्हारी निंदा नहीं करेगा।

भगवान श्रीकृष्ण ने मलमास को स्वीकार कर अपना नाम दिया और कहा अब तुम्हें पुरुषोत्तम मास के रूप में जाना जाएगा। जो तप गोलोक धाम में पाने के लिए मुनि ज्ञानी करते हैं, वह इस माह में अनुष्ठान, पूजन और पवित्र स्नान से ही प्राप्त हो जाएगा। यही कारण है कि पुरुषोत्तम मास में किया जाने वाला स्नान, ध्यान, अनुष्ठान हमें ईश्वर के निकट ले जाता है।

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पितृ पक्ष के समान शुभ मुहूर्त का इंतजार करना होगा
यह भी कहा कि, लेकिन पितृ पक्ष की ही तरह अधिकमास में कोई मुहूर्त नहीं होगा। ऐसे में अगर कोई अपनी नई दुकान, घर, वाहन या किसी अन्य मांगलिक कार्य को नवरात्र में शुरू करने पर विचार कर रहा है तो उसे अभी और इंतजार करना होगा।

मलमास के अधिकमास बनने के बाद इसे मलमास कहना ईश्वर का अनादर
पं. अरविंद तिवारी के अनुसार जिस महीने को सम्मान दिलाने के लिए भगवान ने अपना नाम पुरुषोत्तम दिया, और उनकी इच्छा है कि उस महीने का अनादर न हो और वह उनके नाम से जाना जाए। उसको मलमास कहकर अपमानित करना ईश्वर का भी अनादर है। यह पाप कर्म से कम नहीं है, इसलिए ऐसा करने से पुण्य फल प्राप्ति की जगह कष्ट ही प्राप्त होगा। क्योंकि पुरुषोत्तम महीने में वाणी की शुद्धता भी रखना चाहिए। पं. तिवारी का कहना है कि ईश्वर के आदेश और इच्छा का उल्लंघन कर उनकी कृपा नहीं पाई जा सकती है। इसलिए पुरुषोत्तम मास को मलमास कहना ठीक नहीं है।

इस महीने इस मंत्र का जाप करना चाहिए
गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।।

खरमास को ऐसे जानें
हिंदी कैलेंडर के अनुसार एक वर्ष में कुल 12 संक्रांति होती हैं, यानी सूर्य हर महीने किसी न किसी राशि में परिवर्तन करता है। यह परिवर्तन उसी राशि के नाम से संक्रांति के रूप में जानी जाती है। सूर्य जब देवगुरु बृहस्पति की राशि धनु और मीन में प्रवेश करते हैं, तो इसे धनु संक्रांति और मीन संक्रांति के नाम से जाता है। ज्ञात हो कि सूर्य जब धनु व मीन राशि में रहते हैं, तो यह अवधि मलिनमास या खरमास कहलाती है। इसमें शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।

आचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार देवगुरु बृहस्पति धनु राशि के स्वामी हैं। अपने ही गुरु की राशि में प्रवेश किसी भी देवग्रह के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। वहीं नवग्रहों के राजा सूर्य देवगुरु की राशि में जाने से सूर्य के प्रताप में कुछ कमी आ जाती है। सूर्य के इस राशि में कमजोर होने कारण ही इसे मलमास या खरमास कहते हैं। वहीं यह भी कहा जाता है कि कमजोर होने के कारण खरमास में सूर्य का स्वभाव उग्र हो जाता है। जबकि सूर्य के कमजोर स्थिति में होने के कारण ही इस महीने के दौरान शुभ कार्यों पर पाबंदी लग जाती है।