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भगवान से धन दौलत मांगना चाहिए या नहीं और कितने प्रकार से कर सकते हैं भक्ति

ज्योतिर्मठ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेशवरानंद ने सवाल के जवाब में कहा कि भगवान से भक्त को कुछ भी मांगने का अधिकार है। यह भक्त और भगवान के बीच का मामला है। इसके दो तरीके होते हैं एक आपको जो चाहिए कुछ भी, वह चाहे धन दौलत ही क्यों न हो, वह मांग लीजिए और दूसरा उनसे प्रार्थना करिए कि मेरे लिए जो आपको ठीक लगे वह दे दीजिए..वो अपने मन से ही आपके उपयुक्त दे देंगे।

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि हमारे यहां दो तरह की भक्ति बताई गई है, एक प्रकट भक्ति या वानर भक्ति और दूसरा मारजार भक्ति .. मारजार भक्ति में जैसे बिल्ली का बच्चा मां को पूरी तरह समर्पित हो जाता है, उसकी मां उसे दांत में पकड़ती है और उसी दांत से जिससे वो मांस खाती है और चूहे का शिकार करती है। इस शिकारी दांत से नवजात बच्चे को पकड़ती है पर उसका बच्चा घबराता नहीं है। थोड़ा भी हाथ पांव नहीं चलाता है…उसका अनिष्ट नहीं होता। उसी तरह भक्त खुद को भगवान को समर्पित कर दे और बिल्ली के बच्चे सा भरोसा रखे।

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दूसरा प्रकट भक्ति जैसे बंदर का बच्चा करता है। बंदरिया बच्चे को हाथ ही नहीं लगाती, लेकिन बच्चा मां से चिपका रहता है। वह अपनी तरफ से पूरा प्रयास करके मां से चिपका रहता है, यात्रा करता है। मां बच्चे के बारे में कुछ नहीं सोचती, लेकिन बच्चे को स्वयं सोचना पड़ता है। ऐसे ही भक्त को प्रयास करना पड़ता है। वहीं दूसरी तरफ मां ही सोचती है, बच्चा कुछ नहीं सोचता।

ये आप पर निर्भर है कैसी भक्ति करना चाहते हैं। आप राम के हो या राम आपके हैं। अगर आप राम के हो तो आप को कुछ मांगने का अधिकार नहीं है। उनके हो तो वो जो करेंगे वो करेंगे और सब उन्हीं परो छोड़ दो और राम आपके हैं जैसे भाव से उनको पाना चाहते हैं तो उनसे जो चाहो वो मांगों। ये सब भावना पर निर्भर करता है। आप किस भाव से भगवान को भजते हैं। भगवान भी उसी तरह से आपका ध्यान देते हैं।

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