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राज्य पोषित विश्वविद्यालयों के लिए होगा वरदान

प्रो. मिलिंद कुमार शर्मा
शिक्षाविद, तकनीक और तकनीकी व उच्च शिक्षा से जुड़े विषयों के स्तम्भकार
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इसे सुखद संयोग ही कहा जा सकता है कि भारतीय प्रधानमंत्री की हाल ही में अमरीकी यात्रा के तुरंत बाद हुई केबिनेट बैठक में राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन विधेयक (नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बिल) का प्रस्ताव पारित कर दिया गया। यह उस क्षण की याद दिलाता है जब द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वर्ष 1950 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने अपनी अगुवाई में अमरीकी कांग्रेस के माध्यम से नेशनल सांइस फाउंडेशन की स्थापना विज्ञान, स्वास्थ्य, समृद्धि, जनकल्याण एवं राष्ट्र सुरक्षा आदि के क्षेत्र में अन्वेषण एवं अनुसंधान के उद्देश्यों से प्रेरित होकर की थी। इसकी अमरीकी महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में शोध एवं अनुसंधान को प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वहां की अर्थव्यवस्था को तीव्र गति प्रदान करने में भी यह फाउंडेशन सहायक रहा है। भारतवंशी कंप्यूटर वैज्ञानिक सेतुरमन पंचनाथन वर्ष 2020 से इसका नेतृत्व कर रहे हैं।

भारत में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बिल लोकसभा के मानसून सत्र में पारित होने की संभावना है। इस विधेयक के संसद से पारित होने के बाद भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों को सभी प्रकार के वैज्ञानिक शोध व अनुसंधानों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप अगले पांच वर्षों में करीब पचास हजार करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता मिल सकेगी। केन्द्र की इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना के प्रबंधन मंडल में वैज्ञानिकों एवं पेशेवरों के अतिरिक्त प्रधानमंत्री को पदेन अध्यक्ष एवं केन्द्रीय विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री तथा केन्द्रीय शिक्षा मंत्री को पदेन उपाध्यक्ष सम्मिलित करने का प्रावधान किया गया है। इसकी कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार होंगे। विज्ञान और इंजीनियरिंग एवं अनुसंधान बोर्ड, जिसका गठन लोकसभा के वर्ष 2008 में पारित अधिनियम से हुआ था, उसका विलोपन भी नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बिल में प्रस्तावित है।

यहां यह रेखांकित करना उचित होगा कि नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के कोष में 72 प्रतिशत (36000 करोड़ रुपए) की भागीदारी उद्योगों एवं निजी क्षेत्रों के उपक्रमों से अपेक्षित है। यद्यपि सरकार के लिए निजी क्षेत्रों के उद्यमों से यह राशि जुटाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगी तब भी यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि निजी क्षेत्रों के उपक्रमों के योगदान से इस योजना को दीर्घकालीन रूप से वित्तपोषित किया जा सकेगा। विशेषत: उन परिस्थितियों में, जबकि भारत का शोध एवं अनुसंधान क्षेत्र में वित्तीय योगदान कुल सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.7 प्रतिशत (लगभग 15 बिलियन अमरीकी डॉलर) है जो वैश्विक औसत के 1.8 प्रतिशत की तुलना में काफी कम है। अमरीका और चीन जैसे राष्ट्र, जिनकी अर्थव्यवस्था भारत से क्रमश: 7.6 एवं 5.1 गुना अधिक है, उनका भी अनुसंधान एवं शोध के क्षेत्र में उनके कुल सकल घरेलू उत्पाद में योगदान भारत के अपेक्षा कहीं अधिक है। इन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भी निजी क्षेत्र की भागीदारी अनुसंधान के क्षेत्र में अधिक है। यदि कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी को सही दिशा में प्रेरित किया जाए तो निस्संदेह इस योजना में भारत में भी धन की कोई कमी नहीं रहेगी। यहां इस बात का उल्लेख रोचक होगा कि नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्रों के अतिरिक्त समाज विज्ञान, कला एवं मानविकी के क्षेत्र में भी शोध एवं अनुसंधान हेतु वित्तीय सहायता एवं संसाधन उपलब्ध कराएगा। सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू इस योजना का राज्यों द्वारा पोषित विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों को शोध, अनुसंधान एवं अन्वेषण परियोजनाओं हेतु धन एवं संसाधन उपलब्ध कराना होगा। उच्च शिक्षा एवं अखिल भारतीय सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2020-21 में देश में 1099 विश्वविद्यालयों में से 403 राज्यों द्वारा पोषित विश्वविद्यालय हैं जबकि 475 विश्वविद्यालय देश के छोटे शहरों एवं ढांचागत विकास की तुलनात्मक दृष्टि से आंतरिक क्षेत्रों में हैं।

जहां एक ओर केंद्र द्वारा प्रायोजित लगभग 65 से 70 प्रतिशत शोध एवं अनुसंधान निधि केंद्र द्वारा पोषित उच्च शिक्षा के केंद्रों जैसे कि भारतीय तकनीकी संस्थान, भारतीय विज्ञान संस्थान, भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान, राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान आदि को जाती है, वहीं दूसरी ओर लगभग 10 प्रतिशत के बराबर एक मामूली हिस्सा ही राज्यों द्वारा पोषित उच्च शिक्षा के संस्थानों को मिल पाता है। राज्यों द्वारा पोषित उच्च शिक्षा के संस्थानों की संख्या देखते हुए यह वित्तीय सहायता ऊंट के मुंह में जीरे की तरह है। यह भी कारण है कि राज्यों द्वारा पोषित उच्च शिक्षण संस्थान किसी भी रैंकिग में कहीं नहीं टिक पाते हैं। आशा है कि कुछ सीमा तक नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, राज्यों व केंद्र द्वारा पोषित संस्थानों के मध्य भेद की खाई को पाटने का कार्य करेगा। केन्द्र को नेशनल रिसर्च फाउंडेशन में राज्यों के विश्वविद्यालयों एवं उच्च शिक्षा विभागों के अधिकारियों के उचित प्रतिनिधित्व पर भी विचार करना चाहिए। यह कदम इस महत्त्वाकांक्षी योजना को अमलीजामा पहनाने और इसके सच्चे उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होगा।



Source: Science and Technology News