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सावन : आखिर क्यों शिवलिंग की आधी परिक्रमा की जाती है

शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्त्व है। शिवलिंग पूजा के नियम भी अलग हैं। लोग शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। बेल पत्र, धतूरा और भांग अर्पित करते हैं। इसके अलावा शिवलिंग पर चंदन का लेप किया जाता है। गौरतलब है किसी भी पूजा का संपूर्ण फल तब मिलता हैए जब परिक्रमा की जाती है। परिक्रमा कुछ नियमों के साथ और मन्त्रों के उच्चारण के साथ की जाती है। परिक्रमा घड़ी के चलने की दिशा में यानी दाएं से बाएं की जाती हैए लेकिन इससे अलग शिवलिंग की परिक्रमा करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है।

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शिवलिंग की परिक्रमा आधी की जाती है। इसकी जलधरी को लांघना शास्त्रों के खिलाफ बताया गया है। शिवलिंग के जिस स्थान से जल प्रवाहित होता हैए उसे जलधरी कहते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार शिवलिंग के ऊपरी हिस्से को भगवान शिव और निचले हिस्से को माता पार्वती का प्रतीक माना जाता है।

ऐसे करें शिवलिंग की परिक्रमा
शिवपुराण के अनुसार शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाईं तरफ से की जाती है। ऐसा करने से शिव पूजन का विशेष फल प्राप्त होता है। बाईं ओर से शुरू कर जलधरी तक जाकर वापस लौट कर दूसरी ओर से परिक्रमा करें। इसके साथ विपरीत दिशा में लौट दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें।

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इसे शिवलिंग की आधी परिक्रमा भी कहा जाता है। इस बात का ध्यान रखें कि परिक्रमा दाईं तरफ से कभी भी शुरू नहीं करनी चाहिए। शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने के साथ ही दिशा का ध्यान रखें।

जलधरी को भूलकर भी न लांघें
शिवलिंग की जलधरी को भूल कर भी नहीं लांघना चाहिए। शिवलिंग की जलधरी को ऊर्जा और शक्ति का भंडार माना गया है। शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा से शरीर पर पांच तरह के विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। इससे देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है।

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इस वजह से शारीरिक-मानसिक दोनों तरह के कष्ट हो सकते हैं। शिवलिंग की अर्ध चंद्राकार प्रदक्षिणा करनी चाहिए। शिव की जलधरी में अशोक सुंदरी नर्मदा कुबेर देवता का वास माना जाता है।



Source: Dharma & Karma