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Kalank Chaturthi: इस दिन चंद्रमा देखने पर लगता है दोष, क्या है निवारण का उपाय और दोष लगने की कहानी

कब हुआ था गणेशजी का जन्म
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी सोमवार को मध्याह्न काल में स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था। इसलिए यह चतुर्थी मुख्य गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी कहलाती है। हालांकि इसे कलंक चतुर्थी और डंडा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। वहीं यह चतुर्थी रविवार या मंगलवार को पड़े तो इसे महा चतुर्थी के नाम से जानते हैं।

गणेश चतुर्थी पर असमंजस, दो दिन हो सकती है स्थापना

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि कर प्रारंभः सोमवार 18 सितंबर 2023, दोपहर 12.39
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि का समापनः मंगलवार 19 सितंबर 2023, दोपहर 01.43
गणेश स्थापना समयः मंगलवार,19 सितंबर 2023 को सुबह 11.07, दोपहर 01.34
सर्वाधिक शुभ- 11:27 AM से 12:16 PM (19 सितंबर 2023) और कुछ ज्योतिषियों के अनुसार यह समय सुबह 11.01 बजे से 13.18 बजे तक है।

ज्योतिषियों के अनुसार गणेश चतुर्थी मनाने के लिए मध्याह्नव्यापिनी चतुर्थी का महत्व होता है। इस लिहाज से कुछ लोग 18 सितंबर को भी गणेश स्थापना कर सकते हैं। क्योंकि 18 और 19 सितंबर दोनों दिन भादो शुक्ल पक्ष चतुर्थी मध्याह्न के समय है। इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देते समय उन्हें देखना नहीं चाहिए।

इस समय न करें चंद्रमा का दर्शन
समय जब चन्द्र दर्शन नहीं करना है :12:41:35 से 20:10:00 तक (18 सितंबर को)
समय जब चन्द्र दर्शन नहीं करना है :09:45:00 से 20:42:59 तक (19 सितंबर को)

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गणेशजी के शाप से जुड़ी है कथा
एक कथा के अनुसार भगवान गणेश को गज का मुख लगाया गया तो वे गजानन कहलाने लगे। कालांतर में गणेश चतुर्थी के दिन माता-पिता के रूप में पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा कर वे अग्रपूज्य होने का वरदान भी पा गए। इस पर सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की पर सौंदर्य के अभिमान में चंद्रमा मुस्कुराने लगे। गणेशजी सब माजरा समझ गए कि चंद्रमा उनका उपहास कर रहे हैं।

इससे क्रोध में आए भगवान श्रीगणेश ने चंद्रमा को काले होने का श्राप दे दिया। इस पर चंद्रमा का घमंड टूटा तो क्षमा मांगने लगे। इस पर गणपति ने कहा कि सूर्य के प्रकाश को पाकर तुम एक दिन पूर्ण हो जाओगे लेकिन चतुर्थी का यह दिन तुम्हें दण्ड देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। इस दिन को याद कर कोई अन्य व्यक्ति अपने सौंदर्य पर अभिमान नहीं करेगा और जो कोई व्यक्ति भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारे दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा।

कैसे दूर करें चंद्रमा दर्शन दोष
मान्यता है की इस दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए वर्ना कलंक लगता है। अगर भूल से चन्द्र दर्शन हो जाए तो इस दोष के निवारण के लिए कुछ मंत्र और खास उपाय किए गए हैं। मान्यता है कि चंद्र दोष निवारण के लिए भगवान गणेश की पूजा कर नीचे लिखे मंत्र का 28, 54 या 108 बार जाप करें तो यह दोष दूर हो जाता है। इसके अलावा श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध के 57वें अध्याय का पाठ करने से भी चन्द्र दर्शन का दोष समाप्त हो जाता है।
1. चन्द्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र
सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।
2. ध्यान रहे कि तुलसी के पत्ते (तुलसी पत्र) गणेश पूजा में इस्तेमाल न करें और गणेश पूजन में गणेश जी की एक परिक्रमा करें, कुछ लोग तीन परिक्रमा की भी सलाह देते हैं

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कैसे करें गणेश चतुर्थी व्रत की पूजा
1. गणेश चतुर्थी के दिन व्रतधारक को सुबह स्नान करने के बाद सोने, तांबे या मिट्टी की गणेश प्रतिमा लें।
2. एक कलश में जल भरकर उसके मुंह पर लाल कपड़ा बांधकर उस पर गणेश जी को विराजमान कराएं।
3. गणेशजी को सिंदूर और दूर्वा अर्पित करके 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू गणेश जी को अर्पित करके शेष लड्डू गरीबों या ब्राह्मणों को बांट दें।
4. शाम के समय भी गणेशजी का पूजा करें। इस समय गणेश चतुर्थी की कथा, गणेश चालीसा और आरती पढ़ने के बाद अपनी दृष्टि को नीचे रखते हुए चन्द्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।
5. इस दिन गणेशजी के सिद्धिविनायक रूप की पूजा और व्रत किया जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण को इसलिए लगा दोष
एक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने एक बार गणेश चतुर्थी के दिन भूल से चंद्रमा देख लिया था। इसके बाद उन पर जांबवंत की मणि चोरी करने का आरोप लगा था। हुआ यूं कि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के पिता के स्यामंतक मणि थी, जिसे उन्हें भगवान सूर्य ने दिया था। सत्राजित ने इसे अपने देव स्थल में रखा था। किसी समय भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें यह मणि राजा को देने की सलाह दी थी, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था ।

बाद में जब श्रीकृष्णजी ने भूल से गणेश चतुर्थी का चंद्रमा देख लिया, उसके बाद किसी समय सत्राजित का भाई प्रसेनजित उस मणि को पहनकर शिकार के लिए जंगल चला गया तो उसके घोड़े को एक सिंह ने मार दिया और डरकर भागते वक्त प्रसेनजित से मणि गिर गई, सिंह ने उसे अपने पास रख लिया। इधर, सिंह के पास मणि देखकर जामवंत ने सिंह को मारकर मणि उससे ले ली और उस मणि को लेकर वे अपनी गुफा में चले गए, जहां उन्होंने इसको खिलौने के रूप में अपने पुत्र को दे दी। इधर मणि खोने की बात जानकर सत्राजित ने श्रीकृष्ण पर मणि चोरी करने का शक जता दिया।

यह बात धीरे-धीरे भगवान श्रीकृष्ण तक पहुंची तो मणि की तलाश में जंगल पहुंचे और 27 दिन तक जामवंत से युद्ध किया। इस बीच जामवंत को उनको भगवान का अहसास हुआ तो उन्होंने क्षमा मांगी और मणि सौंप दी। साथ ही जामवंत ने अपनी पुत्री जामवंती का विवाह भी भगवान से किया।



Source: Religion and Spirituality