बिटिया के जन्म पर लोगों की प्रतिक्रिया देख मन विचलित होता था
बिटिया के जन्म पर लोगों की प्रतिक्रिया देख मन विचलित होता था
डॉ. शिप्रा धर
संडे गेस्ट एडिटर
मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। जब मैं बेहद छोटी थी, तभी पिता गुजर गए। मां ने पाला, लेकिन कभी मैंने अपने परिवार में बेटियों के साथ भेदभाव नहीं देखा। जब डॉक्टरी के पेशे में आई तो यहां बिटिया के जन्म पर लोगों की जो प्रतिक्रिया होती थी, उसे देखकर मन बड़ा विचलित होता था। उसके बाद मैंने और पति ने फैसला लिया कि अस्पताल में बिटिया के जन्म पर हम कोई शुल्क नहीं लेंगे। साल 2014 से हम अस्पताल में प्रसव पर शुल्क नहीं ले रहे।
अपनी बिटिया को भी आपकी तरह बनाएंगे –
धीरे-धीरे लोगों की सोच में बदलाव आने लगा। बिटिया होने पर कई लोग अब मेरे पास खुशी-खुशी आते हैं और कहते हैं कि आप समाज के लिए इतना बड़ा काम कर रही हैं, हम भी अपनी बिटिया को पढ़ा-लिखाकर आपकी तरह बनाएंगे। मेरे लिए उनके यह शब्द प्रोत्साहन का काम करते हैं।
पीएम मोदी से मिली सराहना –
2019 में जब बनारस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आए तो उस दौरान मेरी उनसे मुलाकात हुई। जब उन्हें मैंने बेटियों के लिए किए जा रहे मेरे कार्यों के बारे में जानकारी दी तो उन्होंने मुझे उस समय कुछ नहीं कहा, लेकिन कुछ ही देर बाद जब उन्होंने वहां सभा में मेरे इस कार्य की सराहना की तो उसे सुनकर मेरे आंसू छलक पड़े। उन्होंने अमरीका में भी मेरे इस कार्य का जिक्र किया जिसके बारे में मुझे वहां मौजूद साथी डॉक्टर्स से पता चला। सरकार के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की पहल के बाद मेरे कार्यों की पहचान और बढऩे लगी। गुजरात सरकार ने भी मुझे सम्मानित किया है।
बेटियों को पढ़ाने के साथ पैसा भी जमा करातीं –
स्टाफ की बेटियों को पढ़ाना शुरू किया, कोशिका के नाम से हमने अस्पताल में ही बच्चियों की पढ़ाई के लिए सेंटर खोलकर पढ़ाना शुरू किया, जिसे अब कुछ टीचर्स चला रहे हैं। अभी हमारे सेंटर में 42 बच्चियों को निशुल्क पढ़ा रहे हैं। 14 ऐसी बेटियां है जिनका जन्म मैंने ही करवाया, उन्हें यहां पढ़ाते हैं और सुकन्या समृद्धि योजना में उनके नाम से पैसा भी जमा कराती हूं, जो उनके भविष्य में काम आएगा। उनके कौशल विकास का काम भी कर रहे हैं, जिसमें कैंडल्स बनाना, दिए बनाना भी उन्हें सिखाया जाता है।
गांव से निकल इन बेटियों ने विदेश तक में शुरू किया कारोबार
भोपाल। बेटियों के लिए अच्छी शिक्षा और हुनर सबसे जरूरी है। बेटियों को बराबरी का हक दिलाने का काम रही हैं पाथाखेड़ा की भारती अग्रवाल का। वे पिछले 37 वर्षों से महिलाओं के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने इसकी शुरुआत सात महिलाओं के ग्रुप से की। अब तक 36 हजार महिलाओं को वह स्वरोजगार से जोड़ चुकी हैं। उनके यहां से निकलीं करीब 100 बच्चियां विदेश में नौकरी कर अपने सपने साकार कर रही हैं। भारती कहती हैं कि सबसे हमने झूलाघर शुरू किया, ताकि महिलाएं अपने बच्चों को वहां छोड़कर कुछ नया सीख सकें। धीरे-धीरे महिलाएं हमसे जुड़ने लगीं।
36 हजार को नौकरी-स्वरोजगार से जोड़ा
भारती बताती हैं, महिलाओं को सबसे पहले सिलाई-कढ़ाई सिखाई। उन्हें हिसाब-किताब करने लायक गणित सीखाई। हम महिला आश्रय गृह भी चलाते हैं, जहां 14 से 49 साल तक की पीडि़त और निराश्रित महिलाएं रहती हैं। उन्हें स्किल सीखाकर रोजगार से जोड़ते हैं। अब तक 36 हजार महिलाओं को नौकरी और स्वरोजागर से जोड़ चुके हैं। हम सिर्फ उन्हीं महिलाओं को जोड़ते हैं जो परिवार नियोजन का पालन करे, यानी उनके दो से ज्यादा बच्चे ना हो। क्योंकि इससे महिलाएं अपने भविष्य पर भी ध्यान दे पाती हैं। अभी ग्रुप में 342 सदस्य हैं। जो लड़कियां परिवार की परेशानियों के चलते स्कूल जाना छोड़ देती हैं, उनके परिवार को मोटिवेट कर फिर से स्कूल से जोड़ते हैं। यदि किसी महिला पर अत्याचार होता है तो हमारी टीम वहां पहुंच जाती है उसके मेडिकल सुविधा से लेकर कानूनी सहायता तक दी जाती है। हमारे यहां से निकलीं करीब 100 बच्चियां विदेश में नौकरियां कर रही हैं। हमारी संस्था को देश-विदेश में 59 अवार्ड मिल चुके है।
पिता ने सिखाया, वही जीवन में काम आया
ताबीर हुसैन
रायपुर. कालीबाड़ी स्थित गुरकुल गल्र्स कॉलेज में दो बहनें योगिता यदु और विभांशी कैंटीन चला रही हैं। पिता के निधन के बाद योगिता ने तय किया कि उनसे जो सीखा उसी को आगे बढ़ाएंगे। दोनों इसी कॉलेज से पढ़ाई भी कर रही हैं। योगिता बताती हैं, जब पापा थे तो मैं होटल के कैश काउंटर पर बैठा करती थी। धीरे धीरे मुझे होटल व्यवसाय समझ आने लगा। हमें पता चला कि यहां नई कैंटीन बनी है। चूंकि यहां गल्र्स स्कूल और कॉलेज चलते हैं इसलिए हमें यहां सुरक्षित महसूस होता है।
बिजनेस बढ़ाने में सोशल मीडिया का सहारा
शुरुआती दो महीने थोड़ी परेशानी हुई क्योंकि हमने सीधे तौर पर चीजों को हैंडल नहीं किया था। होटल और कॉलेज कैंटीन में सबसे बड़ा फर्क यह होता है यहां आपको युवाओं की पसंद की चीजें बनानी पड़ती है। ऐसे डिश बनाने के लिए हमने सोशल मीडिया से भी सीखा।
कोई काम छोटा नहीं होता
विभांशी कहती हैं, किसी भी काम की शुरुआत के लिए आत्म विश्वास बहुत जरूरी है। इससे न सिर्फ हिचक बल्कि लोग क्या कहेंगे जैसे विचार भी दूर हो जाते हैं। वैसे भी हजार सीढ़ी चढऩे के लिए पहला कदम तो उठाना ही पड़ता है और यही कदम महत्वपूर्ण होता है। आज हमारे काम को देखकर लोग प्रेरित होते हैं। दूसरों को मिसाल देते हैं। यह इसलिए क्योंकि हमने करके दिखाया है। यहां हम सुबह सात बजे से शाम चार बजे तक रहते हैं।
Source: Health