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नारायण मूर्ति की युवाओं को वीक में 70 घंटे काम की बात पर तीखी बहस, डॉक्टर्स की राय इससे 35% स्ट्रोक और 17% हृदय रोग का जोखिम

इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की भारत में युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करने की सलाह अब तीखी बहस का हिस्सा बन गई है। कई चिकित्सकों ने उनकी इस राय पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि इससे दिल का दौरा, तनाव, चिंता, पीठ दर्द और दूसरी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। एक पॉडकास्ट के दौरान मूर्ति ने कहा था कि अगर भारत हाल के दशकों में उल्लेखनीय प्रगति करने वाली विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ प्रतिस्पर्धा करना चाहता है, तो युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करना चाहिए।

न परिवार से मिलने का समय, न बात करने का
बेंगलुरु स्थित हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. दीपक कृष्णमूर्ति ने एक औसत पेशेवर द्वारा दिन को काम और अन्य प्रतिबद्धताओं के बीच विभाजित करके बिताया गया समय बताया। कृष्णमूर्ति ने एक्स पर पोस्ट किया, “प्रति दिन 24 घंटे (जहाँ तक मुझे पता है)। यदि आप सप्ताह में छह दिन काम करते हैं – प्रति दिन 12 घंटे, शेष 12 घंटे – 8 घंटे की नींद, 4 घंटे बचते हैं। बेंगलुरु जैसे शहर में सड़क पर 2 घंटे, 2 घंटे बाकी हैं – ब्रश करना, शौच करना, नहाना, खाना।’ उन्होंने कहा कि इससे “न परिवार से मिलने का समय मिलेगा, न बात करने का, न व्यायाम करने का समय होगा, न मनोरंजन का। इतना ही नहीं कंपनियां लोगों से काम के घंटों के बाद भी ईमेल और कॉल का जवाब देने की अपेक्षा करती हैं।”

तो युवाओं को हार्टअटैक होने पर आश्‍चर्य क्‍यों?”
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, सप्ताह में 35-40 घंटे काम करने की तुलना में प्रति सप्ताह 55 घंटे से अधिक काम करने से स्ट्रोक का जोखिम 35 प्रतिशत और हृदय रोग का खतरा 17 प्रतिशत अधिक होता है। डब्ल्यूएचओ और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने 2021 में एनवायरमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित एक पेपर में दिखाया कि लंबे समय तक काम करने के कारण 2016 में स्ट्रोक और इस्केमिक हृदय रोग से 7,45,000 मौतें हुईं, जो वर्ष 2000 की तुलना में 29 प्रतिशत ज्‍यादा है।

अनिवार्य नहीं होना चाहिए
एक्स पर मैक्स हेल्थकेयर के एंडोक्राइनोलॉजी और डायबिटीज के अध्यक्ष डॉ. अंबरीश मिथल ने लिखा, 70 घंटे का कार्यसप्ताह एक आदर्श या सिफारिश भी नहीं हो सकता है। उन्‍होंने कहा कि अनिवार्य या अपेक्षित कार्य घंटे प्रति सप्ताह लगभग 48 घंटे होंगे’। हालांकि सफलता हासिल करने के लिए कई लोगों ने अपनी युवावस्था में प्रति सप्ताह 70 घंटे काम किए हैं। उन्होंने कहा, “इसे अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता”। स्पोर्ट्स मेडिसिन चिकित्सक डॉ. सिद्धार्थ उन्नीथन प्रति सप्ताह 70 घंटे के काम को “हास्यास्पद” बताते हैं।

बच्चों को आॅटिज्म हो सकता हैं
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. मनिनी ने कहा, लंबे समय तक काम करने से परिवार में तनाव हो सकता है और बच्चों में ऑटिज्म हो सकता है। डॉ. मनिनी ने एक्स पर पोस्ट किया, “विषाक्त कार्य संस्कृति और लंबे समय तक काम के घंटों के कारण परिवार पीड़ित हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इन दिनों हम इतने सारे ऑटिस्टिक बच्‍चे देख रहे हैं। इसका कारण यह है कि माता-पिता बच्चों के साथ बातचीत के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं। सप्ताह में 70 घंटे को ना कहें।”

डिसक्लेमरः इस लेख में दी गई जानकारी का उद्देश्य केवल रोगों और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति जागरूकता लाना है। यह किसी क्वालीफाइड मेडिकल ऑपिनियन का विकल्प नहीं है। इसलिए पाठकों को सलाह दी जाती है कि वह कोई भी दवा, उपचार या नुस्खे को अपनी मर्जी से ना आजमाएं बल्कि इस बारे में उस चिकित्सा पैथी से संबंधित एक्सपर्ट या डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।



Source: Health