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सिंचाई योजना का काम शुरू कराने पहुंचे, विरोध के बाद टेंडर किया निरस्त

कोरबा। Chhattisgarh News: सिंचाई योजना का काम शुरु कराने जब अधिकारी और ठेकेदार पहुंचे तो ग्रामीणों ने विरोध कर दिया। ग्रामीणों ने जमीन देने से इंकार कर दिया। इस वजह से विभाग ने टेंडर को निरस्त कर दिया है।

सिंचाई विभाग द्वारा चिर्रा सिंचाई परियोजना के लिए शासन से अनुमति मांगी थी। खेतों तक नहर के माध्यम से पानी पहुंचाने के लिए 6.11 करोड़ का टेंडर किया था। टेंडर होने के बाद जब जमीन अधिग्रहण और काम शुरु कराने के लिए अधिकारी पहुंचे तो ग्रामीणों ने विरोध कर दिया। ग्रामीणों ने जमीन देने से इंकार कर दिया। वर्तमान में कच्ची नहर बनाकर ग्रामीण करीब 50 एकड़ में खेती करते हैं। योजना के पूरे होने से 270 एकड़ में खेती होती। ग्रामीणों के विरोध की वजह से प्रोजेक्ट को निरस्त करने के लिए शासन को प्रस्ताव भेज दिया गया है।

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सिंचाई विभाग ने सिमकेंदा, कोलगा, करूमौहा और सुखरी जलाशय का निर्माण 15 साल पहले शुरु किया था। तब दावा किया गया था कि इन योजनाओं के पूरे होने पर 15 सौ हेक्टेयर में सिंचाई होगी। चारों ही योजना का निर्माण वन क्षेत्र में किया जा रहा था। नियमत: वन क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण से पहले वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति जरुरी होती है उसके बाद ही काम शुरु होता है।

तात्कालीन अफसरों ने बिना फॉरेस्ट क्लीयरेंस के काम शुरु करवा दिया था। इतने वर्षों में अफसरों ने अलग-अलग हिस्से में काम कराते रहे। काम अभी 50 फीसदी ही हो सका है। अब तक ज्यादातर राजस्व भूमि व निजी जमीन पर काम किया गया था। अब जब वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से एनओसी मांगा गया तो आपत्ति आ गई। इस आपत्ति के निराकरण में नहर लाइन का दायरा बढ़ जाएगा। इससे लागत और भी बढ़ जाएगी। इसे देखते हुए अब योजना को बंद करने का निर्णय लिया गया।

चिर्रा सिंचाई परियोजना के लिए नहर लाइनिंग के लिए तीन हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण होना था। वन भूमि में पाइपलाइन से पानी ले जाने की तैयारी थी। नहर की लंबाई करीब 3.50 किमी निर्धारित की गई थी।

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जो निर्माण हुए उसका अब उपयोग नहीं

सिमकेंदा, कोलगा, करूमौहा और सुखरी जलाशय के लिए निर्माण शुरू कराया गया था। जलाशय के लिए खोदाई की गई थी। कच्ची नहर लाइनिंग का निर्माण भी किया गया था। अब अधूरे निर्माण की वजह से ग्रामीणों को परेशानी हो रही है। बारिश का पानी कुछ जगह पर जमा हो जाता है।

तकनीकी दिक्कत पता होने के बाद भी काम शुरू कराया गया

तत्कालीन अफसरों को मालूम था कि इस योजना के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति नहीं मिलेगी। दरअसल सिंचाई के रकबा से 10 प्रतिशत अधिक वन भूमि नहीं होनी चाहिए। जबकि डीपीआर में इससे कहीं अधिक क्षेत्र वन भूमि का दायरा आ रहा था।

योजनवार खर्च पर एक नजर

योजना – स्वीकृत वर्ष – खर्च सिंचाई क्षमता

कोलगा जलाशय – 2006 – 104लाख 314 हेक्टेयर
करूमौहा जलाशय – 2006 – 78 लाख 304 हेक्टेयर
सिमकेंदा जलाशय – 2004 – 216 लाख 253 हेक्टेयर
सुखरी जलाशय – 1977 – 66 लाख 375 हेक्टेयर

वन भूमि का दायरा चारों योजनाओं में अधिक

कोलगा में 39.77 हेक्टेयर वन भूमि डुबान के दायरे में आ रही थी। करूमौहा में 17.48 हेक्टेयर वन भूमि और 5.49 हेक्टेयर निजी भूमि है। सिमकेंदा जलाशय के लिए 65.39 हेक्टेयर में से 20.51 हेक्टेयर वन भूमि क्षेत्र था।

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Source: Education