मोटे अनाज के नाम रहा वर्ष 2023, बढ़ी अवेयरनेस
संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष मनाने की घोषणा की थी। अपने देश में मोटे अनाज खाने का चलन प्राचीन समय से है लेकिन पिछले कुछ दशकों से लोगों ने इससे दूरी बना ली थी। यही वजह है कि देश में मोटापे और लाइफस्टाइल से जुडे रोगियों की संख्या बहुत बढ़ी है। पहले हमारे खाने की थाली में ज्वार, बाजरा, जौ, कोदो, रागी (मडुआ), सांवा, सामा, कुटकी, लघु धान्य, चीना, कांगनी आदि हुआ करते थे। इनमें मिलने वाले पोषक तत्त्व हमें हर तरह की बीमारियों से बचाते थे।
इसलिए होते सुपर फूड
चावल-गेहूं की तुलना में मोटे अनाज में 3.5 गुना अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं। इन्हें खाने से वजन, बीपी व कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है। इससे हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसे रोगों का जोखिम घटता है।
कुपोषण दूर करने में सक्षम
भरपेट भोजन के बावजूद कुपोषण की समस्या देश में हो रही है। इसका मुख्य कारण गेहूं-चावल अधिक खाना है। इनमें खनिज लवण व फाइबर कम होते हैं इसलिए सभी प्रकार की बीमारियां होती हैं। मोटे अनाज खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
संक्रामक बीमारियों को रोकते हैं ये अनाज
मोटे अनाज में पाए जाने वाले सूक्ष्म पोषक तत्त्वों से इम्युनिटी बढ़ती है। इनमें बीटा-कैरोटीन, नियासिन, विटामिन-बी6, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जस्ता आदि खनिज लवण और विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से फायदेमंद डायटरी फाइबर भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। ये पाचन ठीक रख इम्युनिटी कम नहीं होने देते हैं।
Source: Health