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युवाओं में बदलाव लाने की शक्ति, बस कुछ करने का जुनून होना चाहिए

युवाओं की सोच को अखबार में उतारने के लिए पत्रिका की पहल संडे यूथ गेस्ट एडिटर के तहत आज की गेस्ट एडिटर सिया गोदिका हैं। आपने चेंजमेकर के रूप में अपनी पहचान बनाई है। आपको डायना अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया है। आप जरूरतमंद लोगों को जूते दान करने की मुहिम से जुड़ी हुई हैं। आपने ‘सोल वॉरियर्स’ अभियान की शुरुआत वर्ष 2019 में महज 13 वर्ष की उम्र में की थी। आपका मानना है कि यदि अपने पैरों के एक जोड़ी जूते किसी को दान करते हैं तो इससे आप एक जान बचाते हैं। आपकी इस पहल की शुरुआत अमरीका और लाइबेरिया में भी हो चुकी है। आप कहती है कि युवाओं के अंदर बदलाव लाने की शक्ति है। बस जरूरत है कि उनके अंदर समाज के लिए कुछ करने का जुनून हो। विफलताओं से डरें नहीं। विफलताएं आपको बहुत कुछ सिखाती हैं। उनसे सीख लेकर आगे बढ़े और दुनिया बदलें।

ज्योति शर्मा
अलवर. ‘फूड बॉक्स’ एक ऐसी मुहिम जिसको इसके बारे में पता चलता है वह तारीफ किए बिना नहीं रहता। युवा वाकई में ऐसी शक्ति हैं जो बदलाव लाने की ताकत रखते हैं। ऐसे ही युवाओं की पहल है ‘फूड बॉक्स’ जो कि कोरोना के दौर से शुरू हुई और आज भी चल रही है। विजन संस्थान ने 2021 में जरूरतमंद लोगों को भोजन वितरण की पहल एक रुपए में शुरू की। शुरुआत में इस मुहिम से आठ लोग जुड़े। अब बढ़कर 40 हो गए हैं। कहते हैं अन्न का दान, महादान है। इसी बात को साकार कर रही है युवाओं की यह मुहिम। कोरोना की दूसरी लहर में खाना बांटते हुए विजन संस्थान की टीम को कुछ ऐसे जरूरतमंद दिहाड़ी मजदूर एवं अस्पताल में आने वाले जरूरतमंद लोग मिले जिन्हे एक वक्त का खाना भी नहीं मिल पा रहा था। उसके बाद युवाओं की इस टीम ने ठाना कि क्यों न इस मुहिम को अनवरत चालू कर दिया जाए। संस्था से जुड़े हिमांशु शर्मा बताते हैं कि फूड बॉक्स के नाम से 16 जून 2021 को इस मुहिम को बिजली घर चौराहे पर 2 टेबल लगाकर भोजन वितरण से शुरू किया गया था। शुरुआती दौर हमारे लिए कठिन रहा, क्योंकि लोगों को इस तरह की पहल से जोडऩा आसान न था।

आलोक मिश्रा
बिलासपुर. इंजीनियरिंग करने के बाद भी निधि तिवारी ने इस क्षेत्र में जाने के बजाय बेजुबान जानवरों की सेवा का बीड़ा उठाया। वह पांच वर्षों से ‘निधि जीव आश्रय’ फाउंडेशन चला रही हैं। क्योंकि लावारिस व बीमार पशुओं की देखभाल को अपनी जिम्मेदारी मानती हैं। इनमें वे जानवर भी हैं जिन्हें उनके मालिकों ने बीमार या बूढ़े होने पर छोड़ दिया। उन्होंने श्वान, बिल्ली, बन्दर और सांप आदि को रेस्क्यू कर इलाज किया है। शुरुआत में मोहल्ले के बीमार श्वानों को घर ले जाकर उपचार करती थीं।

नेहा सेन
जबलपुर. लोगों के वीगन जीवन जीने का संदेश दे रही हैं अपराजिता आशीष। उनका मानना है कि पशुओं को व्यवसाय के बजाय संरक्षण की आवश्यकता है। उनके साथ प्रजातिवाद न हो। उन्हें दुबई व इजिप्ट में हुए पर्यावरण सम्मेलन में बतौर वक्ता शामिल होने का मौका भी मिला है। अपराजिता आशीष द सेव एनिमल, एनिमल क्लाइमेट हैल्थ जैसी विंग की इंडिया कॉर्डिनेटर हैं। जबलपुर में उनकी इस संस्था में करीब पचास सदस्य जागरूकता का काम करते हैं।



Source: Lifestyle