'जीवन में राम' भाग 11: श्रीराम सबके अकारण बन्धु हैं और इसलिए सबके प्रिय भी
सुन्दर सुजान कृपानिधान अनाथ पर कर प्रीति जो। सो एक राम अकामहित कल्यानप्रद सम आन को। गोस्वामी तुलसीदास जी श्रीराम की प्रियता का सूत्र देते हुये उक्त पंक्तियां कहते हैं। सुन्दर, सहृदय, कृपाशील, दीनबन्धु, नि:स्वार्थ प्रेम करने वाला और हितकारी प्रभु के अतिरिक्त भला कौन हो सकता है। श्रीराम सबके अकारण बन्धु हैं और इसलिए सबके प्रिय भी। उनकी इस प्रियता में उनके गुण तो कारण हैं ही परन्तु उनके रूप-सौन्दर्य की इसमें मुख्य भूमिका है।
उनका सौष्ठव, अंग-प्रत्यंग का समानुपातिक गठन, उनकी श्यामल छवि, सदा मन्दस्मित से युक्त मुखमण्डल, प्रशस्त ललाट, प्रलम्बबाहु, कर्णान्त दीर्घ नेत्र और इन सबसे व्यंजित होता उनका स्निग्ध स्वभाव मित्र ही नहीं, उनके शत्रुओं को भी मुग्ध कर लेता है। उनके प्रथम दर्शन में ही उनके वशीभूत हुए जनकपुर के लोगों के विषय में गोस्वामी जी कहते हैं- जिन्ह निज रूप मोहिनी डारी। कीन्हे स्वबस नगर नर नारी। अर्थात जिन्होंने अपनी रूप- माधुरी से नगर के समस्त नर-नारियों को अपने अधीन कर लिया है। इस मनमोहिनी सुन्दरता के प्रभाव से क्रुद्ध हुए परशुराम भी अछूते नहीं रह पाते।
यहां तक कि शूर्पणखा निराश और दण्डित होकर लौटने पर भी उनके शील-सौन्दर्य का बखान करती हुई कहती है- वे तरुण हैं, रूप सम्पन्न हैं, सुकुमार, कमलनयन हैं, सदाचारी हैं।
देवर्षि नारद श्रीराम को सदैकप्रियदर्शन कहते हैं। जिसकी प्रियता कभी घटे नहीं ऐसा स्वरूप। यह विशेष बात है, नाम-रूप की यह दुनिया सदा एक समान प्रिय नहीं रह सकती, क्योंकि यह बदलती जाती है। परन्तु श्रीराम का रूप, उनका शील सदा मोहक बना रहता है। गोस्वामी तुलसीदास जी इसके रहस्य का संकेत करते हैं-चिदानन्द मय देह तुम्हारी अर्थात् श्रीराम प्राकृत मनुष्य नहीं हैं, अत: प्राकृतिक क्षरण उनमें नहीं है। अपने पक्ष को गौण करके अन्य के पक्ष की सुरक्षा करना, उसका मन और मान रखने की पद्धति श्रीराम को असाधारण प्रियता से युक्त बना देती है। सदा हितैषी होता है उसकी प्रियता सार्वकालिक होती है। कहा गया है-राम सदा सेवक रुचि राखी। यह वह गुण है जो सदा प्रिय बनाए रखता है। मानवीय गुणों में प्रियता भी एक है, जिसकी मनुष्यता के आदर्श की रक्षा करने में भूमिका है।
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