Bhanu Saptami 2024: इस शक्तिशाली अष्टक के पाठ से मिलता है सुख सौभाग्य और आरोग्य
श्रीसूर्यमंडलाष्टकम् पाठ का फल (Shri Suryamandalashtakam)
Shri Suryamandalashtakam भगवान सूर्य पर आधारित भक्ति गीत है। मान्यता है कि यह भक्ति गीत भगवान सूर्य नारायण को बहुत प्रिय है। इससे इसके पाठ से साक्षात देवता सूर्य का आशीर्वाद मिलता है, जबकि दूसरे देवता अदृश्य रहते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कृष्ण पक्ष की सप्तमी को ही सूर्य देव का प्राकट्य हुआ था। इसलिए हर महीने की कृष्ण पक्ष की सप्तमी को भानु सप्तमी मनाकर पूजा अर्चना और व्रत रखा जाता है। इस तिथि को अचला सप्तमी, अर्क, रथ और पुत्र सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। फाल्गुन माह में यह विशेष तिथि 3 मार्च रविवार को पड़ रही है, इसलिए भानु सप्तमी को विशेष पूजा की जाएगी।
भानु सप्तमी के दिन सूर्य की पूजा विशेष पुण्यफल देने वाली होती है। इसलिए इस दिन नदी स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देने और श्रीसूर्यमंडलाष्टकम् का पाठ करने से आयु, आरोग्य और संपत्ति की प्राप्ति होती है। भानु सप्तमी को संकल्प लेकर व्रत करने और विधि-विधान से पूजा कर ॐ घृणि सूर्याय आदित्याय नमः मंत्र का जाप कर, सूर्यदेव की आरती, सूर्य अष्टक, आदित्य हृदय स्तोत्र पढ़ने से जीवन के सभी दुख दूर होते हैं।
रविवार का दिन भगवान सूर्य देव की पूजा का ही दिन है, इसी दिन भानु सप्तमी है इससे धार्मिक महत्व बढ़ गया है। मान्यता है कि इस दिन से शुरू कर हर रविवार जो व्यक्ति सूर्यदेव की पूजा अर्चना करेगा वह सदा निरोगी रहेगा। सूर्य पूजा से ग्रह संबंधित परेशानी दूर होगी, जीवन में ग्रहों का दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस दिन भोजन में नमक नहीं खाना चाहिए।
श्रीसूर्यमण्डलाष्टकम् (Shri Suryamandal ashtakam)
नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषेजगत्प्रसूतिस्थितिनाशहेतवे।
त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणेविरञ्चिनारायणशङ्करात्मने॥1॥
यन्मण्डलं दीप्तिकरं विशालंरत्नप्रभं तीव्रमनादिरूपम्।
दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं चपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥2॥
यन्मण्डलं देवगणैः सुपूजितंविप्रैः स्तुतं भावनमुक्तिकोविदम्।
तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यंपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥3॥
यन्मण्डलं ज्ञानघनं त्वगम्यंत्रैलोक्यपूज्यं त्रिगुणात्मरूपम्।
समस्ततेजोमयदिव्यरूपंपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥4॥
यन्मण्डलं गूढमतिप्रबोधंधर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम्।
यत्सर्वपापक्षयकारणं चपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥5॥
यन्मण्डलं व्याधिविनाशदक्षंयदृग्यजुः सामसु संप्रगीतम्।
प्रकाशितं येन च भूर्भुवः स्वःपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥6॥
यन्मण्डलं वेदविदो वदन्तिगायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः।
यद्योगिनो योगजुषां च संघाःपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥7॥
यन्मण्डलं सर्वजनेषु पूजितंज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके।
यत्कालकल्पक्षयकारणं चपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥8॥
यन्मण्डलं विश्वसृजांप्रसिद्धमुत्पत्तिरक्षाप्रलयप्रगल्भम्।
यस्मिञ्जगत्संहरतेऽखिलचपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥9॥
यन्मण्डलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मापरं धाम विशुद्धतत्त्वम्।
सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यंपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥10॥
यन्मण्डलं वेदविदो वदन्तिगायन्ति यच्चारणसिद्धसंघाः।
यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्तिपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥11॥
यन्मण्डलं वेदविदोपगीतंयद्योगिनां योगपथानुगम्यम्।
तत्सर्ववेदं प्रणमामि सूर्यंपुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्॥12॥
मण्डलाष्टतयं पुण्यंयः पठेत्सततं नरः।
सर्वपापविशुद्धात्मासूर्यलोके महीयते॥13॥
॥ इति श्रीमदादित्यहृदये मण्डलाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
Source: Religion and Spirituality