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World Antibiotics Awareness Week : एंटीबायोटिक कई अंगों को नुकसान पहुंचाती

30 से 45 मिनट का समय लेती है ज्यादातर दवाएं मुंह के द्वारा शरीर में जाने के बाद अवशोषित होने में। विभिन्न दवा के समय में थोड़ा अंतर हो सकता है।
6-8 घंटे का गैप सामान्य तौर पर निश्चित दवा की डोज में होना चाहिए। इसके अलावा हर दवा को लेने का तरीका भी अलग होता है।

एंटीबायोटिक दवाओं का काम शरीर में होने वाले इंफेक्शन को खत्म करना होता है। ज्यादातर बीमारियों में माना जाता है कि व्यक्ति जब बिना डॉक्टरी परामर्श के कोई भी दवा ले लेता है तो यह आदत एक समय बाद व्यक्ति को रोगी बना देती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए हर वर्ष डब्ल्यूएचओ 18 से 24 नवंबर के बीच वल्र्ड एंटीबायोटिक अवेयरनेस वीक मनाता है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों में बिना डॉक्टरी सलाह के कोई भी दवा लेने से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक करना है। लंबे समय तक एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल से शरीर में इनका असर प्रभावित जगह पर धीरे-धीरे कम होने लगता है और ये दूसरे अंगों को नुकसान करने लगती हैं। जानें इस बारे में-
पांच R पर फोकस
डब्ल्यूएचओ की थीम के अनुसार एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल बिना चिकित्सक की परामर्श के नहीं करना चाहिए। हर बीमारी के अनुसार दवा भी अलग-दी जाती है। दवा देते समय ज्यादातर विशेषज्ञ पांच आर को ध्यान में रखते हैं। इसका अर्थ है-राइट पेशेंट, राइट ड्रग, राइट डोज, राइट ड्यूरेशन और राइट टाइम। इनके आधार पर यदि दवा तय की जाती है तो रोग के लक्षणों में कमी आती है लेकिन इन बातों को ध्यान में रखने के बाद भी एंटीबायोटिक न दी जाए तो जिस रोग के बैक्टीरिया को नष्ट करने के लिए दवा देते हैं। वह एक समय बाद दोबारा विकसित हाने लगती है। यह एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस की स्थिति कहलाती है। बार-बार ऐसा होने से रोग के प्रति काम करना बंद कर देती है।
एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस
आमतौर पर लगातार और बिना डॉक्टरी सलाह के एंटीबायोटिक दवा लेने पर शरीर में बीमारी पहुंचाने वाले कीटाणुओं पर असर नहीं होता है। दवा लेने के बाद भी रोग में सुधार नहीं होता है। बार-बार इस तरह की दवाइयां लेने पर यह रेसिस्टेंस तेजी से फैलता है जिस कारण रोग के कारक तो नष्ट नहीं होते हैं बल्कि दूसरी समस्याएं विकसित होकर अन्य अंगों को नुकसान कर उनके कार्य को प्रभावित करते हैं। ऐसे में जब भी जरूरत लगे तब ही दवा लेनी चाहिए। बिना विशेषज्ञ की सलाह के एंटीबायोटिक दवा न लें। वे स्थिति देखकर दवा निश्चित करते हैं।
कई बार नहीं पड़ती दवा की जरूरत
ज ब भी व्यक्ति बीमार होता है तो बाहरी तत्व (एंटीजंस) जैसे वायरस, बैक्टीरिया, फंगस आदि शरीर में संक्रमण फैलाते हैं। ऐसे में कई बार व्यक्ति का प्रतिरक्षी तंत्र एंटीबॉडीज बनाकर स्वत: ही इन बाहरी तत्वों को नष्ट कर देता है जिसमें किसी दवा की जरूरत नहीं होती है। कुछ मामलों में जब समस्या से ठीक होने में समय लगता है तो एंटीबायोटिक दवा देने की जरूरत पड़ती है। ये बाहरी तत्वों से लड़ते हैं। इसलिए सही दवा लेनी जरूरी है।
शरीर पर होता दवा का असर
बाहरी तत्व शरीर में मौजूद कीटाणुओं के अलग-अलग हिस्से को संक्रमित करते हैं। जैसे कोशिका, माइटोकॉन्ड्रिया, न्यूक्लिअर्स व अन्य। इन्हीं आधार पर एंटीबायोटिक का प्रकार तय किया जाता है। ताकि सही दवा दी जा सके और हालत में सुधार किया जा सके।
कल्चर सेंसिटिविटी टेस्ट
इलाज के लिए दवा लेने के बाद भी यदि व्यक्ति की हालत में सुधार न हो तो विशेषज्ञ कल्चर सेंसिटिविटी टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। इससे संक्रमण फैलाने वाले कारण का पता लगाया जाता है।
सावधानी बरतें
हर दवा के असर करने की प्रकृति अलग होती है। ऐसे में विशेषज्ञ के निर्देशानुसार दवा लें। एंटीबायोटिक को खाने के बाद या पहले, 6-8 घंटे का अंतराल आदि चीजों को ध्यान में रखकर ही दवा लें।

पाचनतंत्र में गड़बड़ी
कोई भी दवा लेने के बाद पेट, छोटी आंत से होते हुए रक्त के बाद पाचनतंत्र में पहुंचकर अवशोषित होना शुरू होती है। ऐसे में दवा का असर सबसे ज्यादा पाचनतंत्र, लिवर व किडनी पर होता है। इनकी कार्यक्षमता कमजोर हो जाती है।
रस औषधियों का प्रयोग
आयुर्वेद के अनुसार कई जड़ी बूटियां एंटीबायोटिक्स की तरह काम करती हैं। जैसे सांस संबंधी रोगों के लिए रस सिंदूर, व मल सिंदूर, त्वचा रोगों के लिए रसमाणिक्य, गंधक रसायन व आरोग्यवर्धनी वटि और बुखार के लिए त्रिभुवनकीर्ति व आनंदभैरव रस उपयोगी है। ये मर्करी व सल्फर के मिश्रण से बनने वाली रस औषधियां हैं। तुलसी, अदरक, हल्दी, मंजिष्ठा, सोंठ, गिलोय आदि जड़ी-बूटियां हर्बल एंटीबायोटिक हैं।
एक्सपर्ट : डॉ. स्नेहा अम्बवानी, प्रोफेसर व एचओडी, फार्माकोलॉजी, एम्स, जोधपुर
एक्सपर्ट : डॉ. प्रमोद मिश्रा, आयुर्वेद विशेषज्ञ, डॉ. एसआर आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर

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Source: Health