Nobel Prize Day पर याद आया Vijaydan Detha बिज्जी का नॉमिनेशन
जोधपुर ( jodhpur news. current news ) .आज नोबल प्राइज डे ( Nobel Prize Day ) है। यह विश्व का सबसे बड़ा पुरस्कार है। जोधपुर के बोरुंदा निवासी राजस्थानी भाषा ( literature news ) के मशहूर साहित्यकार ( Rajasthani-language litterateur ) विजयदान देथा ( vijaydan detha ) बिज्जी ( bijji ) का नोबल पुरस्कार ( Nobel Prize ) के लिए नामांकन ( nomianation ) हुआ था। उनका यह नामांकन उनकी कृति चौबोली के लिए हुआ था। अमरीकी महिला क्रिस्टी ए मेरिल ( Christie A. Merrill ) व बिज्जी के पुत्र साहित्यकार कैलाश कबीर ( Kailash Kabir ) ने अंग्रेजी में चौबोली एंड अदर स्टोरीज ( Chauboli and Other Stories ) नाम से इसका अनुवाद प्रकाशित किया था, जिसमें उनकी चुनिंदा 20-20 कहानियां शामिल थीं। यह बात दीगर है कि यह पुरस्कार उन्हें नहीं मिला।
बिज्जी को नामांकन
विजयदान देथा राजस्थानी व हिन्दी ही नहीं, फिक्शन के निमित्त पूरे भारतीय साहित्य में विशिष्ट पहचान रखते हैं। कई भाषाओं के साहित्यकार व प्रकाशक केवल उनसे मिलने के लिए जोधपुर आते थे और यहां से बोरुंदा तक का सफर करते थे। यह 4 अक्टूबर 2011 की बात है, जब अपने प्रशंसकों और प्रियजनों के बीच बिज्जी के नाम से लोकप्रिय राजस्थानी भाषा के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कथाकार विजयदान देथा के नाम की साहित्य के सर्वोच्च सम्मान नोबल पुरस्कार के लिए अनुशंसा की गई। इस पुरस्कार के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने राजस्थान पत्रिका के जोधपुर संवाददाता को दूरभाष पर वार्ता में यह बात बताई थी। बिज्जी उस दिन अपने घर बोरूंदा (जोधपुर) में ही थे।
ठीक-ठीक नहीं बता सकता
उन्हें सुनने में दिक्कत थी, पत्रिका संवाददाता ने उन्हें बताया कि उनका नॉमिनेशन हुआ है, तब बिज्जी ने कुछ सोचते हुए कहा था- मैं ठीक-ठीक नहीं बता सकता कि यह अनुशंसा किसने की है, वैसे जहां तक मुझे पता है-नोबल अवार्ड के लिए कोई आवेदन नहीं किया जाता है, इसके लिए साहित्य अकादमी, संस्कृति विभाग या शिक्षा विभाग अनुशंसा करता है। कथा प्रकाशन ने मेरी कहानियों का अंग्रेजी में चौबोली एंड अदर स्टोरीज नाम से प्रकाशन किया है, प्रकाशक ने इसका हिन्दी संस्करण भी प्रकाशित किया है, जिसमें मेरी चुनिंदा 20-20 कहानियां शामिल की गई हैं, यह किताब अमरीका के विश्वविद्यालय की एक महिला क्रिस्टी ए मेरिल व मेरे पुत्र कैलाश कबीर ने छह महीने तक बोरूंदा में रह कर इसका अनुवाद किया था, हो सकता है कि उसे आधार बना कर अनुशंसा की गई हो, लेकिन मैं सही-सही कुछ नहीं बता सकता।
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