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जानिए अच्छी सेहत के लिए कितनी जरूरी है धूप

हमेशा धूप से बचने की आदत आपको बीमार व हड्डियों को कमजोर बना सकती है। पुराने समय में लोग सुबह-सुबह सूर्य नमस्कार करके विटामिन डी ले लेते थे। मां बच्चे की मालिश करने के बाद उसे धूप में लेटाया करती थीं, लोग खेतों में काम करते हुए विटाामिन डी ले लेते थे। लेकिन अब मेट्रो सिटी की लाइफ में लोगों का धूप से संपर्क कम होता जा रहा है और उनमें विटामिन डी की कमी हो रही है।

कई तरह के दर्द हैं संकेत –
विटामिन ‘डी’ की कमी का कोई स्पष्ट संकेत नहीं होता। इसकी कमी से शरीर में मौजूद कैल्शियम काम नहीं कर पाता जिसके कारण पीठ में दर्द, मांसपेशियों में दर्द, असामान्य थकान, हाथ-पैर सुन्न होना मांसपेशियों में मरोड़ आना (बायटे आना) सामान्य लक्षण हैं। शरीर में ये परेशानियां हों और निदान न हो, तो विटामिन ‘डी’ की जांच की सलाह दी जाती है।

धूप से मिलने वाले इस विटामिन ‘डी’ की अहमियत इस बात से भी हो जाती है कि इसको सन शाइन विटामिन, वंडर ड्रग, चमत्कारी दवाई, सुरक्षा कवच आदि नाम दिए गए हैं। ये नाम इसकी खूबियों को ही दर्शाते हैं। हमारा शरीर स्वस्थ रहे इसके लिए हमें कई किस्म के विटामिनों की जरूरत होती है। हर विटामिन का अपना महत्व है। इन्हीं विटामिनों में से एक है विटामिन ‘डी’। इसकी कमी से हमारी हडि़्डयां कमजोर होने लगती हैं। विटामिन डी का सबसे बड़ा स्रोत है सूर्य की किरणें यानी धूप।

धूप क्यों जरूरी है –
धूप से हम शरीर के लिए आवश्यक 90 प्रतिशत विटामिन डी ले सकते हैं। दूध, मशरूम, पनीर और मछली ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जिनमें विटामिन डी होता तो है लेकिन बहुत कम मात्रा में, जो कि शरीर की जरूरत को पूरा नहीं कर पाता।

हमें ऐसे होता है फायदा –
जब सूरज की रोशनी हमारे शरीर पर पड़ती है तो विटामिन डी मिलने से हमारे शरीर में मौजूद कैल्शियम काम करता है और हड्डियां मजबूत रहती हैं।

सुबह की किरणें सबसे अच्छी –
वैसे तो किसी भी समय की आधे घंटे की धूप अच्छी मानी गई है लेकिन सुबह की धूप को सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि इस समय धूप में जो अल्ट्रावॉयलेट किरणें होती हैं वे शरीर के लिए ज्यादा फायदेमंद होती हैं।

सर्दियों में धूप में ज्यादा देर तक बैठे रहने से कोई नुकसान नहीं होता क्योंकि विटामिन डी बनाने के लिए शरीर को जितनी धूप चाहिए होती है वह उतनी ही ग्रहण करता है।

दवाई से होती है भरपाई –
हमारे शरीर में विटामिन ‘डी’ की मात्रा 50-60 नोनोग्राम (डीएल) होती है। अगर यह मात्रा 30 नोनोग्राम (डीएल) से कम हो जाए, तो दवाइयों के जरिए विटामिन ‘डी’ की पूर्ति करनी पड़ती है। 30 साल पहले माना जाता था कि भारत के लोगों को कभी विटामिन डी की कमी नहीं होगी क्योंकि यहां के लोग धूप का सेवन करते थे लेकिन आज 80 प्रतिशत लोगों में विटामिन ‘डी’ का स्तर सामान्य से कम है।



Source: Health