fbpx

Rasashastra Benefits: रसशास्त्र में साेने, चांदी की भस्माें से होता है राेगाें का इलाज

Rasashastra Benefits in Hindi: रस शास्त्र पद्धति प्राचीन संस्कृत एवं तमिल संस्कृति का मिश्रण है जिसमें किसी भी रोग के इलाज के लिए आयुर्वेद और सिद्ध, दोनों सिद्धांतों का उपयोग किया जाता है। इस प्रणाली में सोना, चांदी व तांबा जैसी अन्य धातुओं का शोधन कर औषधियां बनार्इ जाती हैं। अाइए जानते हैं कैसे उपयाेगी है ये चिकित्सा:-

किस-किस की भस्म से उपचार
रस शास्त्र पद्धति में धातुओं को शोधित कर आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों के साथ अनेक प्रकार की भस्म तैयार की जाती हैं। जिनसे रोग की चिकित्सा की जाती है। सोने – चांदी के अलावा लौह, जस्ता, सीसा, टिन, पीतल और कांस्य जैसी धातुओं से औषधियां का निर्माण हाेता है। रस-शास्त्र से निर्मित स्वर्ण (सोना) भस्म, हीरक (हीरा) भस्म आदि का उपयोग अनेक बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है।

इन रोगों में फायदेमंद
अभ्र भस्म : डायबिटीज व डायबिटिक जटिलताओं जैसे न्यूरोपैथी, रेटिनोपैथी के इलाज के लिए।
कांठालोहा भस्म : महिलाओं में होने वाली पीसीओडी बीमारी में लाभदायी।
स्वर्ण भस्म : न्यूरोलॉजी रोगों में फायदेमंद।
ताम्र भस्म : पेट के अल्सर के इलाज के लिए उपयोगी।
जिंक भस्म : साइनस के उपचार में उपयोगी।
रजत भस्म : ब्रोंकाइटिस के इलाज के लिए।
मंडूरा भस्म : लोहे का भस्म जो पीलिया ठीक करने और प्रेग्नेंट महिलाओं में एनिमिया के इलाज में फायदेमंद।
स्वर्णमक्सिकम : इसे चाल्कोपायराइट कहते हैं, शरीर से जहरीले पदार्थों को हटाने में लाभकारी।
कलारी ट्रीटमेंट : आर्थराइटिस, रीढ़ की हड्डी व खेलकूद में लगी चोट का इलाज।
स्टोर्क ट्रीटमेंट : शरीर में एकतरफा पैरालिसिस, फेसियल पैरालिसिस व साइटिक जैसे रोगों का इलाज।

सभी के लिए अनुकूल नहीं
रस-शास्त्रीय औषधियां सभी के लिए अनुकूल नहीं होती। इसलिए इनका प्रयोग करने से पहले रोगी के शरीर की प्रकृति का अध्ययन करना जरूरी होता है। इस पद्धति से इलाज बगैर परामर्श के संभव नहीं। रोगी की चिकित्सा शुरू करने के लिए सीधे परामर्श जरूरी है। बिना परामर्श के दवा लेने से फायदे की जगह नुकसान हाेता है।



Source: Health

You may have missed