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आपको बीमार बना रहे बेमौसम आने वाले फल और सब्जियां, जानें इसके बारे में

बिना मौसम का खानपान आजकल बहुत होने लगा है। सर्दी में तरबूज और गर्मी में अमरूद आपको बाजार में नजर आ जाएंगे। लेकिन ये बेमौसम आने वाले फल कई बीमारियों को भी अपने साथ लेकर आ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार सीजन के अनुसार खानपान ही आपको अच्छा स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती दे सकता है। दरअसल, हर फल-सब्जी के उत्पादन के लिए मौसम निर्धारित है और सदियों से हमारा खान-पान भी इसके अनुकूल ही होता था, लेकिन अब सर्दियों में भी आम का स्वाद मिलने लगा है। रासायनिक तरीके से पेड़-पौधों के जीवन-चक्र से छेड़छाड़ की जा रही है। व्यावसायिक हितों के चलते सर्दी में गर्मी के फल-सब्जियों और गर्मी में सर्दी की खाद्य सामग्री का इस्तेमाल बढ़ गया है।

बेमौसम फल-सब्जी यानी केमिकल्स का सेवन –
बिना मौसम के बाजार में बिक रही फल-सब्जियों को रसायनों का इस्तेमाल कर पकाया जाता है। इसके अलावा इन्हें ताजा रखने और दिखाने के लिए इन पर मोम और केमिकल्स की पॉलिश भी की जाती है। फलों पर पॉलिशिंग करने करने का काम काफी समय से चल रहा है। इनके सेवन से पीलिया या आंत्रशोथ जैसी बीमारियों का खतरा हो जाता है। जानकारों के मुताबिक कुछ सब्जियों और फलों खासकर कद्दूवर्गीय (कद्दू, लौकी, तरोई, खीरा, ककड़ी आदि) और कड़वे स्वाद वाली सब्जियों, करेला छोड़कर, स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है, लेकिन इनमें थोड़ी मात्रा टॉक्सिन की भी होती है। रसायनों के इस्तेमाल से टॉक्सिन की यह मात्रा कई गुणा तक बढ़ जाती है। ऐसे में यह जानलेवा भी हो सकती है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक टॉक्सिन एक तरह का प्रोटीन होता है, जो किसी भी जीवित चीज में पाया जाता है। टॉक्सिन जहरीला होता है। इसकी संतुलित मात्रा से कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि शरीर में पाए जाने वाले बैक्टीरिया का मुकाबला करने में भी यह सहायक होता है। लेकिन टॉक्सिन की ज्यादा मात्रा से इंसान की मौत भी हो सकती है।

शरीर के लिए हो सकते हैं घातक –
बे मौसम फल और सब्जियों का उत्पादन करते समय डीडीटीए बीएचसी समेत अनेक रासायनिक कीटनाशकों का विशेष रूप से इस्तेमाल किया जाता है। जिससे फल-सब्जी में जेनेटिक डिसऑर्डर, हार्मोनल चेंज, असामान्य विकास के अलावा फल और सब्जी के रंग-गंध व स्वाद में बदलाव आ जाता है। इससे कैंसर जैसी भयावह बीमारियां होने का भी खतरा बढ़ जाता है। सालभर मुहैया करवाने के लिए फलों-सब्जियों को कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है। ये फल लम्बे समय तक ताजा जरूर दिखाई देते हैं, लेकिन फ्रीजर में प्रयुक्त फ्रिऑन (क्लोरोफ्लोरो कार्बन) व अन्य रासायनिक पदार्थ इन्हें बीमारी का घर बना देते हैं।

फल-सब्जियां खाएं लेकिन संभलकर –
फल-सब्जियों को धोकर ही इस्तेलाल करना चाहिए। इससे इन पर जमी केमिकल्स की परत साफ हो जाती है। इसके अलावा टॉक्सिन का प्रभाव भी कम होता है। आमतौर पर लोगों की धारणा यह रहती है कि फलों के छिलके में ही स्वास्थ्यवद्र्धक तत्व होते हैं। ऐसे में छिलका नहीं निकालना चाहिए, लेकिन खान-पान की समझ रखने वाले लोगों का मानना है कि सेब, नाशपाती जैसे फलों को छीलकर ही खाना चाहिए वरना अल्सर या पाचन संबंधी कई बीमारियों के चपेट में आ सकते हैं। डिब्बाबंद ज्यूस और खाद्य सामग्री को लेकर भी वे ऐसी ही राय रखती है। इनमें मिलाए जाने वाले पिजर्वेटिव्स कई बार एलर्जिक और नुकसानदायी हो सकते हैं। बकौल मृदुला- हर मौसम के फल की तासीर और गुण अलग-अलग होते हैं। ‘क्रॉस-सीजन फूड ऋतुजनित समस्याओं को बढ़ा देता है। प्रिजव्र्ड और फ्रोजन फूड में पोषक तत्वों की भी कमी हो जाती है। इसमें स्वाद तो हो सकता है, लेकिन सेहत के लिए इन्हें अच्छा नहीं कहा जा सकता। फ्रीजिंग प्रोसेस में फूड की न्यूट्रिशंस वैल्यू बहुत कम हो जाती है। विटामिन बी और विटामिन सी तो तकरीबन खत्म ही हो जाते हैं। फ्रोजन फूड में विटामिन सी तकरीबन 50 फीसदी तक समाप्त हो जाता है।

कई बीमारियों की वजह सब्जियां –
स्वस्थ व्यक्ति को सामान्यत: दिनभर में 2300 मिली सोडियम की जरूरत होती है और 40साल के बाद 1500मिली की, जबकि फ्रोजन और रेडी फूड्स में फ्लेवर डालने के लिए सॉल्ट का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है, जो शरीर में सोडियम की मात्रा बढ़ा देता है।सोडियम की अधिक मात्रा शरीर में जाने पर हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट प्रॉब्लम्स हो सकती हैं।

प्राकृतिक नहीं होते ऐसे फल –
बेमौसम आने वाले सब्जियों और फलों को बड़ा करने के लिए पौधों या सब्जी की बेल में ऑक्सीटोसिन हार्मोन के इंजेक्शन भी लगाए जाते हैं। इससे फल-सब्जी रातों-रात बड़ी तो हो जाती है, लेकिन इसके न्यूट्रिशंस खत्म हो जाते हैं। इन पर लगाए केमिकल्स लीवर में जमा हो जाते हैं। इससे चिड़चिड़ापन, बेचैनी होना, अनिद्रा और कब्ज जैसी बीमारियां हो सकती है।



Source: Health

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