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Khudiram Bose freedom fighter : कुछ ऐसे थे जंग-ए-आजादी के पहले शहीद खुदीराम बोस

देश के पहले अमर शहीद खुदीराम बोस ( Khudiram Bose ) का जन्म बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में 3 दिसंबर 1889 हुआ था। बंगाल विभाजन (1905) के बाद खुदीराम बोस स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। अपने स्कूली दिनों से ही राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने लगे थे। वे जलसे-जलूसों में शामिल होकर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ नारे लगाते थे। नौवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़कर सिर पर कफन बांध जंग-ए-आजादी में कूद पड़े। बाद में वह रेवलूशन पार्टी के सदस्य बने। सत्येन बोस के नेतृत्व में खुदीराम बोस ने अपना क्रांतिकारी जीवन शुरू किया था।

Khudiram Bose freedom fighter

क्रांति की मशाल

क्रांति की मशाल रौशन करने वाले खुदीराम बोस जिस उम्र में लोग जिंदगी के हसीन ख्वाब बुनते हैं, वह वतन पर निसार होने का जज्बा लिए हाथ में गीता लेकर फांसी के फंदे की तरफ बढ़ गए और देश की आजादी के रास्ते में अपनी शहादत का दीप जलाया। खुदीराम के बगावती तेवरों से घबराई अंग्रेज सरकार ने मात्र 18 वर्ष की आयु में 11 अगस्त 1908 को उन्हें फांसी पर लटका दिया, लेकिन उनकी शहादत ऐसा कमाल कर गई कि देश में स्वतंत्रता संग्राम के शोले भड़क उठे।

Khudiram Bose freedom fighter

गिरफ्तारी के शिकंजे से हो गए फरार

खुदीराम बोस वंदेमातरम के पर्चे बांटते थे, पहली बार पुलिस ने 28 फरवरी 1906 को सोनार बंगला नामक एक इश्तहार बांटते हुए बोस को दबोच लिया। लेकिन बोस पुलिस के शिकंजे से भागने में सफल रहे। दुसरी बार 16 मई 1906 को फिर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, लेकिन कम आयु होने के कारण चेतावनी देकर छोड़ दिया गया था। 6 दिसंबर, 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट की घटना में भी बोस भी शामिल थे।

Khudiram Bose freedom fighter

..और फासी की सजा

खुदीराम बोस पर किंग्सफर्ड को मारने का प्रयास एवं कैनेडी तथा उनकी बेटी की हत्या का मुकदमा केवल पांच दिन चला और 8 जून 1908 को अदालत में पेश किया गया और 13 जून को मौत की सजा सुनाई गई एवं 11 अगस्त 1908 को फांसी पर चढ़ा दिया गया।

Khudiram Bose freedom fighter

बन गये सबसे प्रेरणा स्रोत

भारतीय स्वाधीनता संग्राम में जान न्योछावर करने वाले प्रथम सेनानी खुदीराम बोस माने जाते हैं। मुजफ्फरपुर जेल में जिस मैजिस्ट्रेट ने उन्हें फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निडर होकर फांसी के तख्ते की ओर बढ़े थे। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे, जिसके किनारे पर ‘खुदीराम’ लिखा रहता था। स्कूल कालेजों में पढ़ने वाले लड़के इन धोतियों को पहनकर सीना तानकर आजादी के रास्ते पर चल निकले।

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Source: Religion and Spirituality

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