fbpx

विचार मंथन : भय ही दु:ख का कारण है- भगवान बुद्ध

परम सन्तोष का अनुभव

एक बार सुजाता ने भगवान बुद्ध को खीर दी, भगवान बुद्ध ने उसे ग्रहण कर परम सन्तोष का अनुभव किया। उस दिन उनकी जो समाधि लगी तो फिर सातवें दिन जाकर टूटी। जब वे उठे, उन्हें आत्म- साक्षात्कार हो चुका था। निरंजना नदी के तट पर प्रसन्न मुख आसीन भगवान् बुद्ध को देखने गई सुजाता बड़ी विस्मित हो रही थी कि यह सात दिन तक एक ही आसन पर कैसे बैठे रहे? तभी सामने से एक शव लिए जाते हुए कुछ व्यक्ति दिखाई दिये। उस शव कों देखते ही भगवान बुद्ध हंसने लगे।

 

सत्य को केवल बुद्धि के द्वारा जानने से ही काम नहीं चलेगा वरन उसके लिए आंतरिक अनुराग होना चाहिए- आचार्य श्रीराम शर्मा

 

भय ही दु:ख का कारण है

सुजाता ने प्रश्न किया- ”योगिराज! कल तक तो आप शव को देखकर दुःखी हो जाते थे, आज वह दुःख कहां चला गया? भगवान् बुद्ध ने कहा- ”बालिके, सुख-दुःख मनुष्य की कल्पना मात्र है। कल तक जड़ वस्तुओं में आसक्ति होने के कारण यह भय था कि कहीं यह न छूट जाय, वह न बिछुड़ जाय। यह भय ही दु:ख का कारण था, आज मैंने जान लिया कि जो जड़ है, उसका तो गुण ही परिवर्तनशील है, पर जिसके लिए दुःख करते हैं, वह न तो परिवर्तनशील, न नाशवान्। अब तू ही बता जो सनातन वस्तु पा ले, उसे नाशवान् वस्तुओं का क्या दुःख?

 

दुनिया में बिना शारीरिक श्रम के भिक्षा मांगने का अधिकार केवल सच्चे संन्यासी को है- आचार्य विनोबा भावे

 

अहंकार की उत्पत्ति

आत्मावलम्बन की उपेक्षा व्यक्ति को कहां से कहां पहुंचा देती है, इसके कई उदाहरण देखने को मिलते है। सद्गति का लक्ष्य समीप होते हुए भी ये अपने इस परम पुरुषार्थ की अवहेलना कर पतन के गर्त में भी जा पहुंचते है। अहंकार की उत्पत्ति व उसका उद्धत प्रदर्शन इसी आत्म तत्व की उपेक्षा की फलश्रुति है।

*******

Source: Religion and Spirituality

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *