मानसून के मौसम में एहतियात बरतकर एेसे रखें सेहत का ध्यान, जानें खास टिप्स
मानसून के दौरान अचानक तापमान में गिरावट से बैक्टीरिया, वायरस व फंगस की संख्या में वृद्धि हो जाती है। ऐसे में खानपान के साथ साफ-सफाई पर ध्यान देना जरूरी है। वर्ना मलेरिया, डेंगू, स्वाइन फ्लू, टायफॉइड, आंखों में संक्रमण (कंजक्टिवाइटिस), हेपेटाइटिस, निमोनिया, उल्टी, दस्त, बुखार, कोलेरा और पेट संबंधी रोगों की आशंका बढ़ जाती है।
ये हैं मुख्य कारण –
इस मौसम में गंदे पानी और मार्केट में मिलने वाले जंक व फास्ट फूड में किटाणु पनपने लगते हैं। बरसात के बाद ये किटाणु, अन्य जीवाणु और विभिन्न तरह के कण हवा मेंं घुलकर आंख को और सांस के जरिए फेफड़ों पर असर डालते हैं। इसके अलावा संक्रमित वस्तु को छूने से भी किटाणु हाथों के जरिए फैलते हैं। इसका कारण कोल्ड फ्लू वायरस हैं जो मुख्य रूप से गले और फेफड़ों पर तेजी से हमला कर असर करने लगते हैं और व्यक्ति को बीमार बनाते हैं। जिन बच्चों का पूर्ण टीकाकरण नहीं हुआ होता वे मौसमी रोगों की चपेट में ज्यादा आते हैं।
खांसी, जुकाम के अलावा आंखों में लालिमा, दर्द व खुजली की तकलीफ होना सामान्य है।
इनका ध्यान रखें –
हाईजीन मेंटेन करने के साथ साफ-सुथरा भोजन करना चाहिए। आंखों को साफ व ठंडे पानी से धोना चाहिए।
आंखों की सेहत के लिए अनुलोम-विलोम, प्राणायाम, भ्रामरी करना लाभदायक हो सकता है। इससे आंखों से जुड़ी मुख्य नसों को आराम मिलता है।
एक-दूसरे से हाथ मिलाने (हैंड शेक) के बजाए नमस्कार का चलन बढ़ाएं। भोजन से पहले और बाद में हाथों को साबुन से अच्छी तरह से साफ करें। घर में यदि कोई रोगी है तो उचित एहतियात बरतें ताकि आप भी प्रभावित न हो सकें।
एलोपैथी में इलाज-
किटाणुओं से बचाव ही इलाज है। हल्के बुखार या बदनदर्द में पैरासिटामॉल दवा देते हैं। लक्षणों के आधार पर कंजक्टिवाइटिस के लिए एंटीबायोटिक दवा व आई ड्रॉप दी जाती है। बिना डॉक्टरी सलाह के कोई दवा न लें और न ही आई ड्रॉप डालें।
आयुर्वेद-
इम्यूनिटी बरकरार रख रोगों से बचा जा सकता है। इसके लिए 20-25 एमएल गिलोय का रस सुबह-शाम पीएं। तुलसी के पत्तों को निगलना लाभदायक है। आंखों की सेहत के लिए तर्पण प्रक्रिया (आंखों के चारों ओर उड़द के आटे का लेप करें। इसमें औषधियुक्त घी भर दें। कुछ समय के लिए आंखें बंद रखें। नसों को आराम और पोषण मिलेगा)।
होम्योपैथी-
इस मौसम में त्वचा संबंधी रोगों में लाल चकत्ते होना आम है। ऐसे में लक्षणों के अनुसार सिपिया दवा देते हैं। टाइफॉयड के लक्षण दिखते हैं तो आरसेनिक व बैप्टीशिया और निमोनिया होने पर रसटॉक्स दवा देते हैं। आंखों की उचित देखभाल की सलाह दी जाती है।
Source: Health