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मोबाइल पर ज्यादा देर देखने से बच्चों के विकास पर असर

मोबाइल इंटरनेट से लोगों की जिंदगी आसान हुई है लेकिन समस्याएं भी हो रही हैं। इसके अधिक इस्तेमाल से नुकसान हो रहा है। इसे मनोवैज्ञानिक भाषा में प्रॉब्लमेटिक इंटरनेट यूज (पीआइयू, यानी समस्याग्रस्त इंटरनेट का उपयोग) कहते हैं। इसमें व्यक्ति चाहकर भी इंटरनेट का इस्तेमाल करने से अपने को नहीं रोक पाता है। इसे इंटरनेट एडिक्शन सिंड्रोम भी कहते हैं।
स्मार्ट होने के नाम पर लोग पूरी तरह से गैजेट्स पर निर्भर होते जा रहे हैं, खासकर बच्चे और यंग जेनरेशन। वे सोते-जागते हर समय फोन पर चिपके रहते हैं। पैरेंट्स को चाहिए कि बच्चों को टेक्नोलॉजी के साथ ही फिजिकल एक्टिव होने पर भी जोर दें। बच्चों और बड़ों को इनका इस्तेमाल संभलकर और सीमित करना चाहिए। इंटरनेट के अधिक इस्तेमाल होने से पढऩे-लिखने या काम मन न लगना, चिड़चिड़ापन, याद्दाश्त कम होना, नजर कमजोर होना, आंखों में ड्रायनेस, बच्चों में नर्व, स्पाइन और मसल्स कमजोर होना, बात-बात पर उग्र होना, थकान, ऊर्जा की कमी, बार-बार मोबाइल बजने जैसा महसूस होना, कान में लीड लगाकर तेज आवाज में सुनने से कानों में सीटी सी आवाजें आना जैसे लक्षण दिखते हैं। एडिक्ट बच्चे को इंटरनेट से दूरी होने पर बेचैनी होती है।
इन तरीकों से करें बचाव
सबसे पहले अभिभावक खुद को गैजेट से दूर रखने का प्रयास करें। पांच साल तक के बच्चों को मोबाइल छूने न दें। मोबाइल के इस्तेमाल की लिमिट तय करें। पूरा परिवार इसको फॉलो करें। जैसे खाते समय, बेड पर, टॉयलेट या पढ़ते समय मोबाइल नहीं छूना है। सोने से दो घंटे पहले और सुबह उठते ही मोबाइल का इस्तेमाल न करें।
ऐसे पड़ता बच्चों पर दुष्प्रभाव
इससे बच्चों के मस्तिष्क के फ्रंटल लोब पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इसी हिस्से से बच्चा सही-गलत व व्यवाहारिक निर्णय लेता है। अधिक इंटरनेट यूज से बच्चे की सोच, विचार व भावनाएं प्रभावित, बच्चे उग्र हो जाते हैं।
काउंसलिंग व इलाज
इंटरनेट एडिक्टेड रोगियों का इलाज शुरुआत में काउंसलिंग से ही संभव है लेकिन स्थिति गंभीर होने पर कई तरह की दवाइयां और बिहैबियर थैरेपी की जरूरत पड़ती है। ज्यादा गंभीर स्थिति में भर्ती करने की जरूरत पड़ती है। हर व्यक्ति को सप्ताह में एक दिन इंटरनेट से दूर रहना चाहिए। इसको इंटरनेट उपवास भी कहा जाता है।



Source: Health