निमंत्रण पर कहा था-माखन दादा और भवानी प्रसाद मिश्र जैसे साहित्यकारों को जन्म स्थली पर मैं अदना सा शायर क्या शायरी कर पाऊंगा
होशंगाबाद/शायर राहत इंदौरी नहीं रहे। उनका नर्मदा नगरी होशंगाबाद से भी जुड़ाव रहा है। उन्होंने शहीद अशफाक उल्ला खान स्मृति समारोह में एक बार शिरकत की थी। तब निमंत्रण मिलने पर उन्होंने कहा था कि आप मुझे उस शहर में बुला रहे हैं, जहां माखन दादा और भवानी प्रसाद मिश्र जैसे साहित्यकारों को जन्म स्थली है। मैं एक अदना सा शायर वहां क्या शायरी कर पाऊंगा। कार्यक्रम में उन्होंने कुछ शायरी पढ़ी तो दर्शक खूब तालिया बजाते रहे। फैसला जो कुछ भी हो, मंजूर होना चाहिए। जंग हो या इश्क, भरपूर होना चाहिए। कट चुकी है उम्र सारी, जिनकी पत्थर तोड़ते-तोड़ते, अब तो इन हाथों में, कोहिनूर होना चाहिए। नई हवाओं की शोहरत बिगाड़ देती है कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है। जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते, सजा न देके अदालत बिगाड़ देती है। इन शायरियों पर खूब तालियां बजी थी।मंगलवार को उनके निधन के बाद शहर में उनके चाहने वालों को काफी मायूसी हुई।
सभी बोले- शायराना अंदाज हमेशा याद रहेगा
– शहीद अशफाक उल्ला खान स्मृति समारोह में हमने जब मरहूम राहत इंदौरी साहब को शायरी पढऩे के लिए होशंगाबाद आने का निमंत्रण दिया था तो उन्होंने होशंगाबाद को बड़ा ही सम्मान देते हुए कहा था की आप उस शहर में बुला रहे हैं जहां माखन दादा और भवानी प्रसाद मिश्र जैसे साहित्यकारों को जन्म स्थली है मैं एक अदना सा शायर वहां क्या शायरी कर पाऊंगा।
अमीन राइन, होशंगाबाद
– करीब पांच साल पहले उनका होशंगाबाद में एक कार्यक्रम कराया गया था। उस कार्यक्रम के लिए वह कार से इटारसी पहुंच गए थे लेकिन उन्हें लेने के लिए जब इटारसी कोई नहीं पहुंचा तो उन्होंने फोन करते हुए शायराना अंदाज में कहा कि मैं कार से इटारसी आ गया हूं और आप लोग होशंगाबाद से नहीं आ सके। यह बातें उनकी हमेशा याद रहेगी।
राजेंद्र ठाकुर, होशंगाबाद
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