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लघुकथाएं-बूंदों की सवारी और भाईचारा

बूंदों की सवारी

विजय सिंह चौहान

बच्चों, मैं, तुम्हें बारिश की बूंदों से मिलवाता हूं, कुछ ठंडी, कुछ चुटीली सी, बूंदें जो न केवल हमें, बल्कि समूचे जगत में नवजीवन और प्राण फूंकती है उनसे मिलवाता हूं।

घुमड़ते काले बादलों के साथ बाबूजी ने बारिश के बहाने जल, प्रकृति और संस्कृति से जोडऩे के लिए बच्चों को रिझााना चाहा, मगर बच्चे हैं कि उनके कान पर जूं तक नहीं रेंगी। चारों बच्चे मोबाइल से बंधे बैठे थे।
मोबाइल की लत के चलते घर में ना बच्चों की खिलखिलाहट और न धमाचौकड़ी, ऐसा लग रहा था कि बचपन ने असमय मुंह मोड़ लिया। बेबस बाबू जी ने स्टूल खिसकया और खिड़की के बाहर लगी मधुमालती के फूलों को निहारने लगे। कभी बाबूजी, खिड़की में से हाथ निकालकर हाथ पर पड़ी झाुर्रियों को भिगोते तो कभी पलकों पर सजी बूंदों से मुलाकात करते, मुस्कुराने लगते।

कोशिश के बाद भी बच्चों को प्रकृति और वर्षा से जोडऩे की जुगत भी बच्चों को मोबाइल, लैपटॉप और आभासी दुनिया से दूर न कर सकी। थक हार कर बाबू जी ने कागज की कश्ती बनाई। उस पर चारों बच्चों के नाम लिखकर , वर्षा से जीवंत बहती नदी में छोड़ दिया। कश्ती डगमगाती हुई, बूंदों से संघर्ष कर रही थी। तभी कड़कड़ाती बिजली के साथ बिजली गुल हो गई। फिर क्या था एक एक करके सभी बच्चे कश्ती पर सवार होकर झाूमने लगे, बाबूजी के संग।

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भाईचारा
सोफिल चौधरी

जेठ के महीने में तपती दुपहरी में गर्मी से ज्यादा माहौल इस बात से गरमाया था कि कल्लू और राधेश्याम की दोस्ती टूट गई। बड़े – बूढ़े यही चर्चा कर रहे थे कि कई सालों का भाईचारा था और आज बात मारपीट तक पहुंच गई। पंचायत बुलाई गई।

पहला पंच – बताओ कल्लू क्या बात थी?
कल्लू – थोड़ी सी अनबन हो गई।
दूसरा पंच- अनबन में मारपीट नहीं होती।

राधेश्याम- साहब हम गलती मानते हैं आगे यह नोबत नहीं आएगी।
गांव का बुजुर्ग – पर बात क्या हुई थी?
राधेश्याम- घर की ही बात है अब मामला सुलझा गया।
तीसरा पंच-घर की बात इतनी कैसे बढ़ी?
कल्लू – साहब हमने राजीनामा कर लिया।
गांव का बुजुर्ग – औरतों को लेकर हुई है।

राधेश्याम – जी घर की बात घर में ही रहे तो बेहतर है बाकी जितने मुंह उतनी बातें।
गांव का बुजुर्ग – थोड़ी समझा से काम लेते तो परिवारों का भाईचारा नहीं टूटता।
कल्लू -किसने कहा भाईचारा टूट गया।

राधेश्याम कल्लू को नम आंखों से देख रहा था। अगर पहले कल्लू बात नहीं संभालता तो शायद वह सब बता देता। पंचायत थोड़ी देर बाद उठ गई। दोनों अपने रास्ते पर बिना बोले, चले गए। हां, यहां उन्होने मामला न बताकर भाईचारा बचा लिया।



Source: Education