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परम्परागत जल स्रोत पर भरोसा : आरओ फिल्टर पर भारी ‘पालरपानी’, कुंडिया-टांके की कद्र जानी

अजमेर/चूरू. बारिश का अधिकतर पानी व्यर्थ बह जाता है जो नालों के जरिए नदियों में पहुंच रहा है। एक ओर लोग बूंद-बंूद पानी को तरस रहे हैं। भूजल स्तर पाताल में चला गया। बारिश का औसत प्रतिशत में गिरावट आ रही है।

पानी का दुरुपयोग बंद नहीं हो रहा। अवैध जलदोहन थम नहीं रहा। ऐसे में यदि पानी का संचय करने व दुरुपयोग के प्रति जागरुकता नहीं रखेंगे तो भविष्य में पेयजल संकट से जूझना पड़ेगा। चूरू जिले के कई गांवों में परम्परागत जल स्त्रोत को लेकर काफी जागरुकता है। लोगों ने अपने घरों पर कुंड और टांके बना रखे हैं,ताकि बारिश के पानी को संग्रहित किया जा सके।

बारिश का पानी सहेजकर रखा

गांवों के साथ-साथ शहरों में भी बड़ी संख्या में लोग घरों में आरओ लगाना पसंद नहीं करते। जिले के कई गांवों में विरासत में मिले यह परम्परागत टांकें या कुंडियां आज भी घरों में मिल जाएंगी। इन्हीं में लोग बारिश का पानी संजोकर रखते हैं। पीने और खाना बनाने में प्रयोग करना पसंद कर रहे हैं। इसके पीछे एक कारण यह है कि गांव के लोग मानते हैं कि इससे शुद्ध जल दूसरा कोई हो ही नहीं सकता। कुंडियों में भरकर रखे इस पानी को ग्रामीण भाषा में ‘पालरपानी’ के नाम से जाना जाता है।

आरओ का पानी पसंद नहीं

शहर निवासी गोविन्द शर्मा के अनुसार गांव में ज्यादातर लोग परम्परागत पानी ही पीने पसंद करते है। आरओ का फिल्टर पानी उन्हें नहीं भाता, क्योंकि जमीनी पानी जिसे कई माह तक संजोकर रखा जाता है। उसमें मिनरल्स कभी खत्म नहीं होते। इसके इतर मशीनों से फिल्टर पानी में वो ताकत भी नहीं होती, जो कि प्राकृतिक पानी में होती है।

इससे कभी भी शरीर कमजोर नहीं हो सकता और ना ही कोई बीमारी। उन्होंने बताया कि मानसून के दिनों में वह घरों में बनाई गई कुंडियों या इन टांकों में पानी भरना शुरू कर देते हैं। बाद में इस पानी को कई माह तक पीने के काम में लेते हैं।

चूरू जिले में फ्लोराइड सबसे बड़ी समस्या

पूलासर सीएचसी प्रभारी डॉ. रजनीकांत शर्मा के अनुसार पालर पानी को साफ रखने के लिए फिटकरी में एल्युमिनीयम सल्फेट एलम को साफ कर देते है। कैल्शियम होने के कारण चूना हमारी हड्डियों के लिए काफी लाभकारी होता है। यहां तक कि मटके के पानी में भी कम मात्रा चूने का उपयोग लाभ देता है। वहीं क्लोरीन को भी पानी को शुद्ध करने के लिए उपयोग किया जाता है।

पूरे जिले में फ्लोराइड पानी

पूरे जिले में फ्लोराइड का वजह से पानी पीने लायक नहीं है। इससे कई तरह की बीमारियां में जन्म लेती हैं। घरों में बारिश का पानी संजोने के लिए टांके या कुंडिया बनाते हैं। बारिश के समय इसमें पानी भर जाता है। लोग सालभर इसी पानी को पीने और खाना बनाने में उपयोग लेेते हैं। उन्होंने बताया कि पालर पानी में कचरा जमा नहीं हो। इसके लिए इसमें पानी की मात्रा के अनुपात में सफेद फिटकरी डाली जाती है, ताकि पानी में कीड़े या गंदगी ना हो। लोग बड़ी मात्रा में इस पानी का संग्रहण कर इसे नहाने और कपड़े धोने में भी उपयोग लेते हैं। इसके लिए अधिक बड़ी और दो-चार कुंडिया खुदवाई जाती है। इन कुंडियों को ढककर रखा जाता है।

आयुर्वेद की नजर में पालर पानी की शुद्धता

़आयुर्वेदाचार्य नारायणदत्त शर्मा के अनुसार प्राचीन काल में जल वितरणकी कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण लोग परम्परागत जलस्रोतों पर ही निर्भर थे। अधिक घरों में टांके या कुंडिया खुदवाई जाती थी, उनमें वर्षाजल का संरक्षण कर लोग इसे पूरे वर्ष तक उपयोग में लेते थे। उस समय सभी लोग स्वस्थ और निरोगी रहते थे।

आज के समय में आरओ का फिल्टर पानी पीने के बावजूद लोग बीमार रहने लगे हैं। जहां तक पानी की की बात होती है तो कहावत भी कही गई है कि ‘जैसा पीए पानी वैसी रहे वाणी’। जैसा पानी पीते हैं अपने विचार और वाणी भी उसी के अनुरूप हो जाती है।
उन्होंने बताया कि कुंडों में पालर पानी को साफ शुद्ध रखने के लिए सफेद फिटकरी का प्रयोग किया जाता है। यदि 1000 लीटर पालर पानी यदि कुंडी में संग्रहित किया गया है तो उसमें 5 ग्राम फिटकरी का उपयोग किया जाना लाभकारी होता है। (2) भिण्डी के तने को 24 घंटे पानी में रखकर पुन: निकाल लेने से भी पानी शुद्ध रहता है।



Source: Education