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राष्ट्र संत चंद्रप्रभ सागर ने कहा कि ऊर्जा के ऊध्र्वारोहण के लिए ध्यान और योग कीमिया औषधि

जोधपुर. राष्ट्र संत चंद्रप्रभ सागर ( Chandraprabha Sagar ) ने कहा कि जीवन ऊर्जा का नाम है। ऊर्जा अवरुद्ध हो जाए तो हम बीमार पड़ जाते हैं और ऊर्जा का शोधन हो जाए तो स्वास्थ्य, सुख और शांति में बढ़ोतरी हो जाती है। संतप्रवर गांधी मैदान में आयोजित संबोधि ध्यान योग शिविर ( Sambodhi Meditation Yoga Camp ) के दूसरे दिन साधक भाई बहनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर हमारे शरीर में बीमारी है, मन में आक्रोश है और अंतर मन में विकार है तो समझना चाहिए कि हमारी ऊर्जा विकृत है। जहां भोजन करने से ऊर्जा प्राप्त होती है, नींद से ऊर्जा एकत्र होती है, कार्य करने से ऊर्जा खर्च होती है, भय और चिंता से ऊर्जा संकुचित होती है, वासना से ऊर्जा नीचे गिरती है व क्रोध से ऊर्जा खत्म होती है, वहीं ध्यान ( meditation ) और योग ( yoga ) से ऊर्जा ( energy ) एकाग्र होकर ऊध्र्वामुखी होने लगती है।

ऊर्जा प्राप्ति का प्रथम स्रोत है अन्न

संत प्रवर ने कहा कि ऊर्जा प्राप्ति का प्रथम स्रोत है अन्न। जैसा अन्न होता है वैसा ही मन और जीवन बनता है। अगर हम भोजन को ठीक कर ले तो हमारे आगे के सारे सिस्टम ठीक हो जाएंगे। लोग सुबह हल्का और शाम को भारी भोजन लेते हैं जो कि गलत है। इससे ऊर्जा विकृत होती है और तन मन में बीमारियां फैलती है। हमें सुबह राजा जैसा, दोपहर में प्रजा जैसा और शाम को बीमार जैसा भोजन लेना चाहिए। भोजन में कम से कम 500 ग्राम सब्जियों और फलों का उपयोग करना चाहिए। हम जितना प्राकृतिक आहार करेंगे हमारी ऊर्जा उतनी ही शुद्ध रहेगी।

चयापचय क्रिया अच्छी रहेगी

उन्होंने कहा कि प्रतिदिन एक एप्पल खाएं तो डॉक्टर दूर रहेगा, एक तुलसी पत्ता खाएं तो कैंसर दूर रहेगा, एक नींबू पानी पीएं तो चर्बी दूर रहेगी, एक गिलास दूध पीएं तो हड्डियां मजबूत रहेंगी और 3 लीटर पानी पीएं तो शरीर की चयापचय क्रिया अच्छी रहेगी।

किसी भी तरह का लोड ना लें

चंद्र प्रभ सागर ने कहा कि पानी भोजन के 1 घंटा बाद पीएं अन्यथा भोजन के साथ पानी पीने से मोटापा और कब्ज की शिकायत शुरू हो जाएगी। ज्यादा घी और तेल न खाएं अन्यथा ब्लड मोटा होगा और हार्ट अटैक की नौबत आ जाएगी। दिन में एक मिठाई के पीस से ज्यादा ना खाएं और दिमाग में किसी भी तरह का लोड ना लें।

घर को ही तपोवन बनाएं

संत प्रवर ने स्वास्थ्य की एबीसीडी बताते हुए कहा कि अगर हमारा खान-पान और विचार दूषित होंगे तो ए से अटैक, बी से बी पी, सी से कोलेस्ट्रॉल, डी से डायबिटीज और इ से जीवन का एंड हो जाएगा। इसलिए जितना जरूरी ध्यान और योग है उतना ही जरूरी सात्विक आहार का उपयोग जरूरी है। अगर हम आहार संयम रखेंगे तो विचारों में संयम रहेगा, इंद्रियों में संयम रहेगा और संयमी व्यक्ति गृहस्थ में रहते हुए भी संत की तरह पूज्य बन जाता है। हम कपड़ों को बदलकर संत बनने से पहले घर को ही तपोवन बनाएं।

योग मुद्रा के प्रयोग सिखाए

शिविर के दौरान संत प्रवर ने साधकों को योग के 21 चरणों का प्रशिक्षण दिया। उन्होंने साधकों को खड़े होकर ताड़ासन, अर्ध कटी चक्रासन, पादहस्तासन, वृक्षासन और त्रिकोणासन करवाएं। बैठ कर शशांक आसन, मार्जरी आसन, पर्वतासन, पश्चिमोत्तानासन और योग मुद्रा के प्रयोग सिखाए।

प्रयोग करवाए

संतप्रवर ने लेट कर दिखाए जाने वाले आसनों में उत्तानासन, पवनमुक्तासन, राजा रानी आसन, संतुलन आसन, भुजंगासन, शलभासन, मकरासन, धनुरासन और नौकासन के प्रयोग करवाए। साथ ही साथ साधकों ने यौगिक क्रिया, सक्रिय योग, प्राण क्रिया योग और सोहम ध्यान के प्रयोग भी कर के तन मन व चेतना को तंदुरुस्त किया। कार्यक्रम का शुभारंभ ईश वंदना के साथ हुआ। शिविर में सुखराज नीलम मेहता घेवर चंद कानूगो, राजेंद्र खींवसरा, ओमकार वर्मा व अशोक पारख ने विशेष रूप से भाग लिया।



Source: Education