दुर्लभ प्रजाति के गिद्धों का घर बनेगा CG का ये जिला, इंजीप्शियन वल्चर आया नजर, वन विभाग ने बनाया संरक्षण का प्लान
दुर्ग. रामायण के प्रखर पात्र जटायू यानी गिद्ध जैसे पात्र और इसी गिद्ध (इंजीप्शियन वल्चर) के संरक्षण के लिए अब दुर्ग का वन और राजस्व विभाग मिलकर काम करेगा। हमारी अनुश्रुति में शकुंतला जिसके बेटे भरत के नाम से देश का नाम भारत पड़ा, शकुंतला वन में यानी गिद्ध के रहवास में कण्व ऋषि को मिली थी। दुर्भाग्य से देश में गिद्ध पक्षियों की प्रजाति संकट में है। पूरे देश में गिद्ध विलुप्त की कगार पर हैं। दुर्ग जिले में दुर्लभ प्रजाति के गिद्धों के इजीप्शियन वल्चर को पिछले कुछ समय से धमधा ब्लॉक में को देखा गया है। यह बड़े पेड़ों में घोंसला बनाकर रह रहे हैं। इनकी प्रजाति के संरक्षण और संवर्धन के लिए कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे और डीएफओ धम्मशील गणवीर ने संभावनाओं पर विचार किया। उन क्षेत्रों में जहां इनकी बसाहट सबसे अधिक पाई गई है वहां पर इनके कंजर्वेशन के लिए संरक्षित क्षेत्र बनाने के लिए जगह चिन्हांकित करने का निर्णय लिया। इसके बाद फारेस्ट और रेवेन्यू की संयुक्त टीम ने जगह चिन्हांकन के लिए सर्वे किया।
वल्चर रेस्टारेंट की तरह स्पेशल एरिया
डीएफओ गणवीर ने बताया कि इजीप्शियन कल्चर की प्रजाति हमारे यहां देखी जा रही है। इनके संरक्षण के लिए एक खास क्षेत्र बना दिया जाएगा जो एक तरह से वल्चर रेस्टारेंट की तरह होगा। गिद्ध मृतभक्षी होते हैं इसलिए मृतक जानवरों की लाशें यहीं लाई जाएंगी। इस क्षेत्र में ऐसे पौधे लगाए जाएंगे जो गिद्धों की बसाहट के अनुकूल होंगे। गिद्ध पीपल जैसे ऊंचे पेड़ों में बसाहट बनाते हैं।
लुप्त हो रही गिद्धों की प्रजाति
कंजर्वेशन वाले क्षेत्र में इस तरह की सारी सुविधाओं का विकास होगा जो गिद्धों की बसाहट के लिए उपयोगी होगी। उन्होंने बताया कि भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियां हैं इनमें से इजीप्शियन वल्चर एक प्रजाति है। यह छोटे आकार के गिद्ध होते हैं। उन्होंने बताया कि भारत में पहले बड़ी संख्या में गिद्ध पाए जाते थे, लेकिन दशक भर से पहले इनमें तेजी से गिरावट आई। इसका कारण था डाइक्लोफिनाक औषधि जो मवेशियों को दी जाती थी। मवेशियों के मरने के बाद जब गिद्ध इनके गुर्दे खाते थे तो यह औषधि भी उनके पेट में चली जाती थी और जानलेवा होती थी। देश भर में इस औषधि पर प्रतिबंध लगा दिया गया लेकिन गिद्धों की प्रजाति तब तक काफी कम हो चुकी थी।
हिमालय से आते हैं रामेश्वरम
पक्षी विशेषज्ञ अनुभव शर्मा ने बताया कि भारत में पाए जाने वाले इजीप्शियन वल्चर दो प्रकार के होते हैं। एक स्थायी रूप से रहने वाले और दूसरे माइग्रेटरी। भारतीय साहित्य में वर्णन है कि इजीप्शियन वल्चर संस्कृत साहित्य में शकुंत कहा गया है। अभिज्ञान शाकुंतलम में ऋषि कण्व को शकुंतला ऐसे ही शकुंत पक्षी के वन में मिली थी । जिसकी वजह से उन्होंने उसका नामकरण शकुंतला रख दिया। इसी शकुंतला के बेटे भरत से हमारे देश का नाम भारत पड़ा। अनुभव ने बताया कि माइग्रेटरी शकुंत पक्षी हिमालय से उड़ान भर कर रामेश्वर तक पहुंचते हैं। मान्यता है कि ये शिव भक्त होते हैं और गंगा जल हिमालय से लेकर रामेश्वरम में भगवान शिव को चढ़ाते हैं।
पाटन के अचानकपुर में भी देखे गए
पक्षी विशेषज्ञ राजू वर्मा ने बताया कि पिछले वर्ष पाटन के अचानकपुर में भी इजीप्शियन वल्चर देखा गया था। उन्होंने बताया कि पाटन के सांकरा और बेलौदी में प्रवासी पक्षियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यहां लगभग 2 हजार माइग्रेटरी बर्ड स्पॉट किए गए हैं। 2 फरवरी को यहां वल्र्ड वेटलैंड डे मनाया गया। उन्होंने बताया कि इंजीप्शियन वल्चर को पहचानना काफी आसान है। इनके सफेद बाल होते हैं। आकार थोड़ा छोटा होता है। ब्रीडिंग के वक्त इनकी गर्दन थोड़ी सी नारंगी हो जाती है।
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Source: Education