जिंदगियां भीड़ भरोसे तड़प रही है, सरकार बचा लो इन्हें?
केस-1
बाड़मेर के ललित सोनी को दुर्लभ पोम्पे रोग है। सालाना 3 करोड़ का व्यय है। पत्रिका ने इस मामले को उठाया तो लोगों ने करीब 55 लाख की मदद की। उपचार प्रारंभ हो गया लेकिन अब रुपया कहां से लाए? ललित का मामला केन्द्र सरकार तक गया,लेकिन मदद को लेकर सबने हाथ खड़े कर दिए है। अब फिर उपचार बंद है और ललित की हालत ठीक नहीं है।
केस-2
बाड़मेर शहर में रहने वाला बाबू जाखड़। क्रिकेट का खिलाड़ी बाबू मैदान में चौके-छक्कों की बारिश करता था और रनिंग बिटविन विकेट में तो अच्छे अच्छों के मात दे जाता,लेकिन उसको दुर्लभ रोग हो गया। अब वह बिस्तर पर है, दस कदम नहीं चल सकता। कोई मददगार नहीं मिल रहा। जितने भी द्वार थे वहां से भरोसा मिला लेकिन इलाज नहीं।
केस-3
बाबू की sister बाली। बहुत अच्छी खिलाड़ी। भाई की तरह sister को भी इसी रोग ने चपेट में ले लिया। अब उसके लिए परिवाार संभालना मुश्किल है। करोड़ों का खर्चा है, परिवार वहन करे तो कितना। सरकार कोई मदद नहीं कर रही है।
बाड़मेर.
दुर्लभ बीमारियों से ग्रसित मरीजों को केन्द्र सरकार ने क्राउड फडिंग(भीड़ भरोसे) छोड़ दिया है और भीड़ है कि मदद नहीं कर रही। मार्च से अब तक केवल 1.65 लाख रुपए ही भीड़ ने 240 के करीब मरीजों के लिए दिए है, इससे एक मरीज का उपचार भी संभव नहीं है। करोड़ों रुपए एक मरीज को इलाज को चाहिए जो इन बीमार-लाचार परिवारों की हैसियत में नहीं है और सरकार ने मुंह मोड़ लिया है।
भारत सरकार ने मार्च 2021 में दुर्लभ बीमारियों के लिए लंबे समय से लंबित राष्ट्रीय नीति को अंतिम रूप दिया और अधिसूचित किया,लेकिन सरकार ने एक मुश्त बीस लाख रुपए एक मरीज को देने का निर्णय किया। यह भी 20 लाख उनको मिलेंगे जिनका एक समय में उपचार हों। जिनका लंबा इलाज चलना है उनकी सहायता के लिए क्राउडफंडिंग पोर्टल लांच कर लिया है। सरकार ने उम्मीद लगाई थी कि भीड़ इनकी मदद करेगी और उपचार हो जाएगा लेकिन इस फण्ड में 240 के करीब मरीजों के लिए महज 1.65 लाख का फण्ड ही जुटा है। इससे एक मरीज का उपचार भी संभव नहीं है ।
सांसदों ने prime minister को लिखा
जानकारी अनुसार राज्यसभा के सांसदों के एक समूह ने भी सरकार की राष्ट्रीय आरोग्य निधि (आरएएन) योजना के तहत दुर्लभ बीमारी के रोगियों को उनकी जान बचाने के लिए तुरंत वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तत्काल हस्तक्षेप की मांग बीते दिनों की है।
इलाज मिले तो सामान्य जीवन जीए
लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (एलएसडी) जैसे पोम्पे रोग, गौचर रोग, एमपीएस और फैब्री रोग गंभीर बीमारियों में है। इनसे पीडि़त मरीज लंबे इलाज के बाद ठीक हो जाते हैं और लगभग सामान्य जीवन जीते हैं, उन्हें समय पर जीवन रक्षक एंजाइम रिप्लेसमेंट थैरेपी (ईआरटी) मिल जाए।
पीड़ा एक नाना की…
मैने प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय को पत्र भेजा है कि जो महंगी दवाइयां भारत में आ रही है उनको बंद ही कर दो। हमें उम्मीद रहती है कि इन दवाओं से उपचार होगा तो मध्यम वर्गीय परिवार सबकुछ बेचकर अपने बच्चों का इलाज शुरू करवाता है। करोड़ों रुपए उसके पास नहीं है। जो लाखों है वो भी खर्च कर देता है। सरकार मदद नहीं कर रही है और मध्यम वर्गीय परिवार बीमारी में सबकुछ गंवा देता है और उसकी उम्मीदें भी खत्म हो जाती है। ये दवा भारत में होगी ही नहीं तो फिर हम यह सोच लेंगे कि दवा ही नहीं है। दवा है तो फिर सरकार हमारे बच्चों की जिंदगी बचाएं। हम भीड़ भरोसे नहीं सरकार भरोसे थे। – हंसराज सोनी, नाना ललित
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