हथकरघे से बुन रहे जिंदगी : सूत कातकर महिलाएं कपड़े भी बना रहीं, रोज की कमाई 800 रुपए तक
रायपुर. जैन आचार्य विद्यासागर लगातार स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर जोर देते आए हैं। उन्हीं की प्रेरणा से दिगंबर जैन समाज ने छत्तीसगढ़ में 2 हथकरघा सेंटर शुरू किए हैं। पहला डोंगरगढ़ में चार साल पहले और दूसरा सेंटर हाल ही में कुरुद के पास नारी कोकड़ी गांव में खोला गया है। 150 महिलाओं को आज यहां नियमित रोजगार मिल रहा है। सूत कातकर ये महिलाएं हर दिन 800 रुपए तक कमा रहीं हैं।
यही नहीं, इन सेंटरों में महिलाओं को हथकरघा चलाने के लिए निशुल्क प्रशिक्षण भी दिया जाता है। अब तक 500 से ज्यादा महिलाएं यहां से ट्रेनिंग ले चुकी हैं। जो महिलाएं काम करना चाहती हैं उन्हें इन्हीं सेंटरों में रोजगार उपलब्ध करा दिया जाता है। किसी को स्वरोजगार की चाहत है तो समाज की ओर से उन्हें मशीन भी उपलब्ध करा दी जाती है जिसकी कीमत 22 हजार के करीब है। समाज अब तक 200 से ज्यादा महिलाओं को ये मशीन उपलब्ध करवा चुका है। समाज के मुताबिक, कोरोनाकाल के 2 सालों ने इस अभियान को थोड़ा धीमा कर दिया, नहीं तो और महिलाएं इससे जुड़कर सशक्त बन पातीं।
बड़े शहरों में अधिक डिमांड
हथकरघे से सूत कातने के बाद महिलाएं इससे रूमाल, सोफा कवर, बेडशीट, पर्दे, धोती-कुर्ता, साड़ी समेत और भी कई तरह के कपड़े तैयार कर रहीं हैं। दिगंबर जैन समाज के विनोद बडज़ात्या और अरविंद जैन ने बताया कि हथकरघे से बनने वाले कपड़े पहले मोटे और खुरदुरे होते थे। अब मुलायम और पतले होते हैं जिसके चलते इनकी डिमांड बढ़ी है। समाज के 2 सेंटरों से रोज 50 हजार रुपए के कपड़े दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में भेजे जाते हैं क्योंकि यहीं इनकी डिमांड ज्यादा है।
बस से महिलाओं को सेंटर लाते हैं, घर भी पहुंचाते हैं
इन दोनों सेंटरों का संचालन आचार्य विद्यासागर की प्रेरणा से ही शुरू किए गए सम्यक सहकार संघ और प्रतिभा स्थलीय ज्ञानोदय विद्यापीठ स्कूल द्वारा किया जा रहा है। इन सेंटरों में काम के लिए आने वाली ज्यादातर महिलाएं आसपास के गांवों की होती हैं। ऐसे में उन्हें सेंटर तक लाने और वापस घर पहुंचाने के लिए बसें भी चलवाई जा रहीं हैं। महिलाओं को भुगतान के बाद जो पैसे बचते हैं, उनका उपयोग इसी तरह की सुविधाएं देने के लिए जा रहा है। इस तरह नो प्रॉफिट और नो लॉस के सिद्धांत पर सेंटरों का संचालन किया जा रहा है।
Source: Education