fbpx

कुरजां म्हारी भंवर मिला दे ऐ…

लूणाराम वर्मा
महाजन. एक ओर जहां इंसान धर्म, मजहब, भाषा और क्षेत्र के नाम पर जमीनें तकसीम कर सरहदें खींच रहा है। वहीं दूसरी ओर इन सबसे बेखबर प्यार का संदेशा लिए प्रवासी पङ्क्षरदे कुरजां हजारों किलोमीटर का सफर तय कर इन दिनों उपखंड क्षेत्र लूणकरणसर के महाजन सहित विभिन्न गांवों के जलस्रोतों के पासं डेरा डाले हुए हैं। ये विदेशी पक्षी सितम्बर-अक्टूबर में आना शुरू करते और फरवरी तक शीतकाल के समय यहां डेरा डाले रहते हैं।

राजस्थानी गीतों में लाडकोड से गाए जाने वाले साइबेरियन क्रेन को स्थानीय भाषा में कुरजां कहकर पुकारा जाता है। विरहणियों की सखी के रूप में पहचान पाने वाले कुरजां को संदेश वाहक माना जाता है। ‘कुरजां म्हारी हालो नी आलीजा रे देशÓ और ‘कुरजां म्हारी भंवर मिला दै ऐÓ जैसे राजस्थानी गीत विरहणी की पीड़ा को बड़ी शिद्धत के साथ बयां करते हैं। अनुशासन में उडऩे वाले साइबेरियन सारस इन दिनों उपखण्ड के लूनकरणसर, महाजन, जैतपुर सहित क्षेत्र के विभिन्न तालाबों व बावडिय़ों के इर्द-गिर्द अपने आपको महफूज पाते हैं। सैंकड़ों की तादाद में उपखण्ड क्षेत्र में उड़ान भरने प्रदेशी पावणैं आजकल लोगों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र बने है।

जताई संरक्षण की आशा
वर्तमान में जब पक्षी संरक्षण को लेकर जीव वैज्ञानिक अनेक प्रकार के जतन कर रहे हैं। ऐसे में राजस्थान की आवासीय परिस्थितियां प्राकृतिक रूप से कई प्रकार की पक्षी प्रजातियों को आश्रय प्रदान रही है। शीतकालीन प्रवासी पक्षियों में कुरजां और अन्य प्रजातियों के लिए राजस्थान के आवास अनुकूल रहे हैं। पक्षी जगत में अभी तक कुरजां के लिए खींचन को ही जाना जाता है, लेकिन इसके अतिरिक्त मरुस्थलीय भाग में अन्य स्थल भी है। जहां कुरजां को सैकड़ों की तादाद में देखा जा सकता है। ऐसे स्थलों को चिन्हित कर सरंक्षण देने की आवश्यकता है।

इन्हीं स्थलों की सूची में लूणकरनसर क्षेत्र को भी शामिल करने की आवश्यकता है। ये कहना है पक्षी विशेषज्ञ डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा, वन्यजीव फोटोग्राफर पंकज शर्मा, प्रोफेसर डॉ. सतीश गुप्ता आदि का। टाइगर फोर्स प्रदेशाध्यक्ष महिपाल सिंह राठौड़, भरतसिंह, प्रभुनाथ, प्रोफेसर डॉ. प्रताप सिंह आदि ने वन्य जीव विशेषज्ञों को लूणकरनसर के आवासों की कुरजां के लिए महत्ता को जानने के लिए भेजा। विशेषज्ञ टीम कुरजां की संख्या को देखकर अभिभूत हुई व इसके संरक्षण के लिए तुरंत प्रभाव से कदम उठाने की सलाह दी। महिपाल सिंह ने भी इस शीतकाल में जनजागृति के लिए बर्ड फेयर के आयोजन की बात रखी जिसकी रूपरेखा इसी माह तैयार की जाएगी।



Source: Education

You may have missed