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रात में भरपूर नींद नहीं तो ग्लूकोमा का खतरा, रोजाना मिल रहे ऐसे पांच केस

रायपुर। रात में भरपूर नींद नहीं लेने और दिन में नींद आने से सो नहीं पाने से आंखों पर बुरा असर पड़ रहा है। लंबे समय तक आंखों में तनाव होने की इस समस्या से ग्लूकोमा (काला मोतियाबिंद) होने का जोखिम बढ़ गया है। समय पर इलाज नहीं मिल पाने से दृष्टिहीनता तक का खतरा बढ़ गया है। राज्य में रोजाना ग्लूकोमा के औसतन 5 मरीज सामने आ रहे हैं।

अप्रैल से नवंबर तक की स्थिति में राज्य में 995 मरीजों की पुष्टि हुई है। इसमें से 57 लोगों की सर्जरी की जरूरत पड़ी है। अंधत्व निवारण कार्यक्रम के राज्य नोडल अधिकारी डॉ. सुभाष मिश्रा ने बताया कि ग्लूकोमा के कारण आंखों की रोशनी चले जाने के बाद दोबारा नहीं लौटती है। वृद्ध, धूम्रपान करने वालों में यह आम समस्या है। ग्लूकोमा होने पर तीन कारणों से मरीजों की सर्जरी करने की जरूरत पड़ रही है। पहला जब दवाई फेल हो जाए, दूसरा जब मरीज दवाई खरीद न पाए और तीसरा जब मरीज आंखों में दवाई डाल न पाए। इसके अलावा कई मामलों में दवाई से ही ग्लूकोमा के केस ठीक हो रहे हैं।

40 की उम्र के बाद आंखों की जांच जरूरी

विशेषज्ञों का मानना है कि आंखों का विशेष ध्यान रखना जरूरी है। 40 साल की उम्र के बाद हर व्यक्ति को हर साल आंखों की जांच करानी चाहिए। जिन लोगों को ग्लूकोमा है, उन्हें 40 की उम्र से पहले ही जांच की जरूरत पड़ती है।

अनिद्रा से ग्लूकोमा का खतरा

एक शोध में पाया गया है कि स्वस्थ नींद पैटर्न वाले लोगों की तुलना में खर्राटे और दिन की नींद में ग्लूकोमा का जोखिम 11 प्रतिशत बढ़ जाता है। वहीं, अनिद्रा और छोटी या लंबी नींद लेने वालों में यह जोखिम 13 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। अच्छी नींद न होने से निर्णय लेने की क्षमता, स्वभाव, सीखने की क्षमता और याददाश्त पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, 2040 तक दुनियाभर में 11.2 करोड़ लोग ग्लूकोमा से प्रभावित हो सकते हैं।

नींद पूरी नहीं होना और तनाव के कारण ग्लूकोमा होता है। आंख में दवाब ग्लूकोमा का कारण बनता है। इसका सभी मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में ऑपरेशन होता है। आज कल दवाइयां इतनी अच्छी आ गई हैं कि सर्जरी की जरूरत कम पड़ रही है।

डॉ. सुभाष मिश्रा, राज्य नोडल अधिकारी अंधत्व निवारण कार्यक्रम



Source: Education