क्या अंत समय में ईसा मसीह भारत में थे? जाननी चाहिए दिलचस्प कहानी
दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक आबादी 25 दिसंबर को क्रिसमस यानी प्रभी यीशु मसीह का जन्मदिन मनाने को तैयार है. इससे पहले आपको ईसा मसीह की कहानी (isa masih ki kahani) का वह सिरा जानना चाहिए, जिसके भारत से जुड़ा होने का दावा किया जाता है।
दरअसल यूरोप हो या अमेरिका, कोई भी ईसाई अगर कश्मीर आता है तो यहां की रोजाबल दरगाह को देखने की उसकी उत्सुकता रहती है, ये लोग इसे जीसस टॉम्ब कहते हैं। करीब दो हजार साल पुरानी इस दरगाह को लेकर कई ईसाइयों का मानना है कि निधन के बाद प्रभु यीशु को यहीं दफनाया गया था।
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ईसा मसीह के जीवन के बारे में इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के कई दावे हैं। इनका कहना है कि ईसा मसीह (Prabhu Yeshu Masih) का रहस्यकाल कश्मीर में ही बीता था। दो दशक पहले सैम मिलर की बीबीसी पर एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें उन्होंने रोजाबल दरगाह को जीसस टॉम्ब से संबोधित किया था। मिलर ने लिखा था कि ये दरगाह एक पुरानी बिल्डिंग में है। हालांकि वेटिकन इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज करता है पर रिपोर्ट में ढेर सारे तथ्य होने की बात कही गई है।
शोधकर्ताओं का क्या है दावाः शोधकर्ताओं का कहना है कि जीसस की मौत सूली पर चढ़ाने से नहीं हुई थी, वो बचकर मध्य पूर्व के रास्ते भारत आ गए थे। इन्होंने भारत आने की वजह ये बताई है कि वे युवावस्था में भी यहां आ चुके थे और उनके जीवन का एक हिस्सा यहां भी बीता था। इसमें यह कहा गया है कि रोजाबल में जिस शख्स का मकबरा है, उसका नाम यूजा आसफ है, दरअसल, यह शख्स जीसस ही हैं।
इन बातों को लेकर कई किताबें लिखी गईं हैं, अजीज कश्मीरी की किताब क्राइस्ट इन कश्मीर, एडवर्ड टी मार्टिन की किताब ‘किंग ऑफ ट्रेवलर्सः जीसस लास्ट ईयर इन इंडिया’ लोगों का खूब ध्यान खींच चुकी है।
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क्या कहती है भारत सरकार की डॉक्यूमेंट्रीः भारत सरकार के फिल्म प्रभाग की 53 मिनट की डॉक्युमेंट्री जीसस इन कश्मीर में उनके खास लोगों के साथ आकर लद्दाख और कश्मीर में रहने का इशारा है। यह भी कहा गया है कि उनके साथ आए यहूदी यहीं के बाशिंदे बन गए। हालांकि रोमन कैथोलिक चर्च और वेटिकन इसे नहीं मानते। वहीं कुछ अन्य लोग जो इसे अफवाह करार देते हैं, उनका कहना है कि स्थानीय दुकानदारों ने यह अफवाह फैलाई है, ताकि पर्यटक यहां आएं।
ये बातें भी जोड़ती हैं जीसस का भारत से रिश्ता
1. जम्मू-कश्मीर आर्कियोलॉजी, रिसर्च एंड म्यूजियम में अर्काइव विभाग के पूर्व डायरेक्टर डॉ. फिदा हसनैन ने इसको लेकर साक्ष्यों को तलाशने का दावा किया था। इसमें उन्होंने कहा था कि ईसा के भारत आने की बात में दम है, पहलगाम में मुसलमान बने लोगों का डीएनए यहूदी नस्ल के लोगों से जुड़ता है।
2. बाइबल में ईसा को सूली चढ़ाए जाने के बाद भी जीवित होने की बात कही गई है।
3. भविष्य पुराण में ईसा मसीह के कुषाण राजा शालीवाहन से मिलने का जिक्र है।
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4. अहमदिया समुदाय के संस्थापक हजरत मिर्जा गुलाम अहमद ने मसीहा हिंदुस्तान में नाम से किताब लिखी है, इसमें रोजाबल का मकबरा जीसस का बताया गया है।
5. रूसी विद्वान और लेखक निकोलाई नोतोविच जो लद्दाख के बौद्ध मठ में ठहर चुके थे ने अपनी किताब अननोन ईयर्स ऑफ जीसस में एक बोधिसत्व संत ईसा के बारे में बताया है, जिसकी कई बातें ईसा मसीह से मिलती जुलती हैं।
6. भारत सरकार की डॉक्युमेंट्री में 2000 साल पुराने अभिलेखों, पांडुलिपियों में यीशु के यहूदी नाम यसूरा के इस्तेमाल, कनिष्क के अनदेखे सिक्कों को इस मत के समर्थन में रखा गया है।
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7. इजराइल के 10 यहूदी कबीलों के वंशजों के कश्मीर मिलने की बात कही जाती है। मुस्लिम बन चुके इन लोगों के रीति रिवाज भी कश्मीरियों से अलग हैं। ये कश्मीरियों से शादी संबंध भी नहीं रखते।
8. चर्चित उपन्यास कोड 1 में लेखफ जोजेफ बानाश जिसका हिंदी में अनुवाद राजपाल प्रकाशन ने ईसा मसीह की जीवन यात्रा येरूशलम से कश्मीर तक में इस बात का इशारा किया गया है।
9. दार्शनिक ओशो ने भी अपनी किताब बियांड साइकोलॉजी में इसका दावा किया है।
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पहेली बन गया जीसस टॉम्बः बहरहाल, दावों को वेटिकन और कैथोलिक संप्रदाय के नकारने और मानने वालों के पक्ष में अपनी बातें रखने से जीसस टॉम्ब एक पहेली बन गया है। जिससे सच का उद्घाटन होना अभी बाकी है।
Source: Religion and Spirituality