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Year Ender 2022: EWS आरक्षण, OROP, राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई सहित सुप्रीम कोर्ट के 10 बड़े फैसले

10 Big Decisions of Supreme Court 2022: हर बीतते दिन के साथ साल 2022 समाप्त हो रहा है। इस साल की खट्टी-मिट्ठी हजारों यादें लोगों के जेहन में कैद है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के नजरिए से भी यह साल काफी महत्वपूर्ण रहा। इस साल देश की सर्वोच्च अदालत ने कई बड़े फैसले सुनाएं। इन फैसलों ने वर्षों से चली रही लड़ाई को समाप्त किया। EWS आरक्षण, वन रैंक वन पेंशन, गर्भपात का अधिकार, अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग, राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई, बिलकिस बानो केस के दोषियों की रिहाई, विदेशों से लिए जाने वाले चंदों से जुड़े कानून के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के कई बड़े फैसले इस साल आए। साल 2022 खत्म हो, इससे पहले आईए डालते है एक नजर, इस साल के सुप्रीम कोर्ट के बड़े फैसलों पर, जिसने न केवल सुर्खियां बटोरी बल्कि जमाने से चली आ रही लड़ाई को भी खत्म किया।


1. EWS आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर

सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शिक्षा और नौकरी में आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था पर लंबे समय से डिबेट चल रहा था। कुछ लोग इसके पक्ष में तो कुछ विपक्ष में थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सात नवंबर को एक अहम फैसला सुनाते हुए EWS आरक्षण की व्यवस्था को वैध करार दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार का आरक्षण देने का फैसला संविधान का उल्लंघन नहीं करता है। उस समय के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने 3-2 के बहुमत से यह फैसला सुनाया। संविधान पीठ में शामिल तीन जजों ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को सही माना, जबकि दो जजों ने इसे खारिज कर दिया।

मालूम हो कि केंद्र सरकार ने 103वें संविधान संशोधन के जरिए समान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था। अनारक्षित वर्ग के गरीबों को आरक्षण प्रदान करने वाले इस संविधान संशोधन की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौत दी गई थी। इस मामले पर लंबी सुनवाई के बाद पांच सदस्यीय संविधान पीठ 3-2 के बहुमत से यह फैसला सुनाया।

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2. राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की रिहाई

देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे लंबे समय से जेल में थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर को राजीव गांधी हत्याकांड के सभी छह दोषियों की रिहाई का आदेश देकर उन्हें आजादी दी। नलिनी श्रीहरन और RP रविचंद्रन ने समय से पहले रिहाई की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि दोषी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश इस मामले में अन्य दोषियों पर भी लागू होता है। दरअसल, शीर्ष अदालत ने 18 मई को पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था।

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3. सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग

सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में इस साल 27 सितंबर को पहली बार सुनवाई का लाइव प्रसारण किया गया। तत्कालीन CJI यूयू ललित, न्यायामूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायामूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने पहली लाइव सुनवाई की थी। सर्वोच्च अदालत ने 21 सितंबर को अदालती कार्यवाही का सीधा प्रसारण किए जाने का निर्णय दिया था। न्यायामूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायामूर्ति एएम खानविलकर और न्यायामूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा था कि सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग के पीछे उनका मकसद खुली अदालत को बढ़ावा देना है।

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4. बिलकिस बानो केस के दोषियों की रिहाई

गुजरात दंगे के दौरान बिलकिस बानो के साथ हुए गैंगरेप मामले के 11 दोषियों को गुजरात सरकार ने इसी साल समय पूर्व रिहाई का आदेश दिया था। सरकार के इस फैसले की काफी आलोचना हुई। पीड़ित बिलकिस बानो के साथ-साथ कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस फैसले पर सवाल खड़े किए। बिलकिस बानो ने सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया। इससे पहले शीर्ष अदालत ने कहा था कि कैदी की समय पूर्व रिहाई के संबंध में वही नीति लागू होगी जो सजा सुनाते समय गुजरात में लागू थी।

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5. सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार

सितंबर 2022 में भारत की सर्वोच्च अदालत में महिलाओं के हक में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने देश की विवाहित और अविवाहित, सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दे दिया। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के तहत प्रत्येक गर्भवती महिला को 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भपात का अधिकार होगा। उनके विवाहित या अविवाहित होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किसी महिला की वैवाहिक स्थिति को उसे अनचाहे गर्भ गिराने के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है। एकल और अविवाहित महिलाओं को भी गर्भावस्था के 24 सप्ताह में उक्त कानून के तहत गर्भपात का अधिकार है। चूंकि महिला के शरीर में एक भ्रूण विकसित होता है, इसलिए उसे निर्णय लेने का पूरा अधिकार है।

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6. पति द्वारा महिला की इच्छा के खिलाफ संबंध बनाना दुष्कर्म

सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के हक में एक और बड़ा फैसला सुनाते हुए ‘मैरिटल रेप’ को भी बलात्कार की श्रेणी में माना। अदालत ने कहा कि पति द्वारा बिना महिला की अनुमति के किया दुष्कर्म बलात्कार है। इसलिए मैरिटल रेप की दशा में भी 24 सप्ताह की तय सीमा में पत्नी अनचाहे भ्रूण को समाप्त करने का अधिकार रखती है। हालांकि भारतीय महिलाएं वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने वाले कानून के लिए अभी भी संघर्ष कर रही हैं। लेकिन शीर्ष अदालत ने अपनी इस टिप्पणी से इशारा कर दिया कि महिलाएं अपने पार्टनर द्वारा यौन शोषण का शिकार होती हैं।

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7. वन रैंक वन पेंशन की मौजूदा नीति सही

16 मार्च 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों की वन रैंक वन पेंशन नीति पर बड़ा फैसला सुनाया। देश की सर्वोच्च अदालत ने रिटायर सैन्यकर्मियों के लिए लागू वन रैंक वन पेंशन की मौजूदा नीति को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस नीति में कोई संवैधानिक कमी नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि नीति में पांच साल में पेंशन की समीक्षा का प्रावधान है। इसलिए सरकार एक जुलाई 2019 की तारीख से पेंशन की समीक्षा करे. कोर्ट ने सरकार को तीन महीने में बकाया राशि का भुगतान करने को कहा है।

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8. विदेशी चंदा पर बैन बरकरार, कोर्ट ने माना यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा

सुप्रीम कोर्ट ने गैर सरकारी संगठन (NGO) को मिलने वाले विदेशी दान पर प्रतिबंध बरकरार रखा। अप्रैल 2022 में जस्टिस ए.एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सी.टी. रविकुमार ने विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2020 की संवैधानिकता को बरकरार रखा। इस कानून के माध्यम से केंद्र सरकार ने एनजीओ को मिलने वाले विदेशी धन पर सख्ती दिखाते हुए प्रतिबंधित लगा दिया। एनजीओ क्षेत्र संशोधन के प्रावधानों से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ।

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10. दिल्ली के चर्चित छावला दुष्कर्म-हत्या के दोषी बरी

सुप्रीम कोर्ट ने सात नवंबर को दिल्ली के चर्चित छावला दुष्कर्म और हत्याकांड के तीन दोषियों को बरी कर दिया था और इनकी रिहाई का आदेश दिया था। वर्ष 2012 के दुष्कर्म और हत्या मामले में दिल्ली हाईकोर्ट और निचली अदालत ने तीनों दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) यूयू ललित, न्यायामूर्ति रविंद्र भट्ट और न्यायामूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया था, जिसमें आरोपियों को 19 वर्षीय लड़की के दुष्कर्म और हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की काफी आलोचना हुई। पीड़ित परिवार ने कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन दायर की है।

 

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Source: National