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काशी के ग्यासुद्दीन 50 सालों से बाबा भोलेनाथ की तैयार कर रहे हैं पगड़ी, जान‌िए कितना लेते हैं चार्ज

महादेव की नगरी काशी में होली का पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है। काशी में होली का पर्व रंगभरी एकादशी से प्रारम्भ होता है। यह उत्सव पूरे भारत में फेमस है। करोड़ों सनातनी श्रद्धालुओं के ईष्ट महादेव के मस्तक पर सजने वाली अकबरी पगड़ी को काशी का एक मुस्लिम परिवार तैयार करता है।

50 सालों से मुस्‍लिम परिवार बना रहा है महादेव के लिए पगड़ी

शहर के लल्लापुरा इलाके के ग्यासुद्दीन और उनका पूरा परिवार सच्ची श्रद्धा के साथ महादेव की पगड़ी बनाने में जुटा हुआ है। Patrika.com से बात करते हुए ग्यासुद्दीन ने बताया कि 50 वर्षों से हमारा परिवार महादेव के मस्तक पर सजने वाली अकबरी पगड़ी बना रहा है। इस साल हम महादेव के लिए पूरी श्रद्धा के साथ अकबरी पगड़ी बना रहे हैं जो लगभग तैयार है।

इस साल लाल रंग की बन रही अकबरी पगड़ी, बनाने के लिए नहीं लेते पैसा

इस पगड़ी में रेशमी सिल्क के कपड़े, जरी, नगीने, दफ़्ती, मोती और पंख के साथ ही साथ सजावट के अन्य बारीक सामानों को लगाया गया है। इस वर्ष महादेव की पगड़ी को लाल रंग के कपड़े पर बनाया गया है। ग्यासुद्दीन ने बताया कि जिस तरह हम वजू करके नमाज अता करते हैं। वैसे ही पूरी साफ -सफाई का ध्यान रखते हुए महादेव की पगड़ी तैयार करते हैं। इसको बनाने के लिए पिछले 50 सालों में हमने कभी कोई पैसा नहीं लिया।

जानिए क्या है अकबरी पगड़ी, जिसे 50 सालों से बना रहा है मुस्‍लिम परिवार

अकबरी पगड़ी जिसे काशी का मुस्लिम परिवार बना रहा है, जो महादेव की चांदी की पंचबदन प्रतिमा पर सुशोभित होगी। इस्लामी युग ने भारतवर्ष में पगड़ी में कई बदलाव किए। मुसलमान अपने स्वरुप की पगड़ी जिसे फारसी/अरब संस्कृति के बाद शैलीबद्ध किया गया था, पहनते थे। अकबर ने पगड़ी को अत्यधिक महत्व दिया। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपनी पगड़ी शैली को मुगलई से बदलकर हिंदुस्तानी कर लिया था। अकबरी पगड़ी काफी फेमस हुई। इसमें खास था पगड़ी में आगे निकला हुआ पंख जो इस पगड़ी में चार चांद लगा देता था। यह पगड़ी आज भी अपना मुकाम रखती है और लोग इसे पहनना पसंद करते हैं।

काशी की रंगभरी एकादशी पूरे भारत में फेमस, भोलेनाथ की होती है पूजा

विश्वानाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ कुलपति तिवारी ने बताया कि रंगभरी एकादशी पर रजत सिहासन पर माता गौरा संग विराज कर भगवान् शंकर सभी को दर्शन देते हैं। इसके बाद माता पार्वती, महादेव के साथ नगर भ्रमण को निकलती हैं और भक्तों संग सूखे रंग से होली खेलती हैं। महादेव के चरणों में रंग, अबीर अर्पित कर काशीवासी इसी दिन से होली के चार दिवसीय उत्सव की शुरुआत करते हैं।



Source: Education