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यथार्थ गीता की छह अनमोल बातें, जिसे जानना चाहिए

1. क्या है सनातन धर्म
संतश्री अड़गड़ानंद ने यथार्थ गीता में बताया है कि श्रीमद्भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि सत्य वस्तु का तीनों काल में अभाव नहीं है, उसे मिटाया नहीं जा सकता है। असत्य का अस्तित्व नहीं है। अब सवाल है कि सत्य क्या है? तो एक आत्मा अर्थात परमात्मा ही सत्य है। इसके अतिरिक्त किसी चीज का अस्तित्व नहीं है। फिर सवाल उठा कि सनातन कौन है? भगवान का जवाब था आत्मा। भगवान ने कहा यदि आत्मा परमात्मा के प्रति कोई श्रद्धावान नहीं है तो वह धार्मिक नहीं है। इसलिए उस परमात्मा को ही धारण कर लेना धर्म है।

2. भगवान का निवास कहां है
संतश्री अड़गड़ानंद ने समझाया कि भगवान कृष्ण कहते हैं कि सनातन आत्मा सबके हृदय में रहती है, जिसे हमें प्राप्त करना है। ईश्वर का निवास बैकुंठ में नहीं, आकाश में नहीं, हृदय में है। मैं सबके हृदय में समाविष्ट हूं, बस भ्रमवश लोग इधर उधर भटकते रहते हैं। इसीलिए नहीं देखते।

3. इस परमात्मा को धारण कैसे करें

संतश्री अड़गड़ानंद ने यथार्थ गीता में बताया है कि इस परमात्मा को साधना से पाया जा सकता है। भगवान श्रीकृष्ण ने ऊं का नाम और भगवान के ध्यान को साधना बताया है। यानी इसका अभ्यास करने से परमात्मा तक पहुंचा जा सकता है। संतश्री अड़गड़ानंद ने यथार्थ गीता में बताया है कि साधना कैसे करें यह सद्गुरु बता सकते हैं। भगवान ने गीता में संदेश दिया है कि हृदयस्थ ईश्वर को पाने के लिए सद्गुरु की शरण में जाना पड़ेगा। भगवान को पाने के लिए तत्वदर्शी महापुरुष की शरण में जाएं। यह सद्गुरु भी भगवतस्वरूप ही होते हैं, क्योंकि वह भगवान को पा चुके होते हैं और तत्वदर्शी होते हैं।

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4. मानव जीवन का लक्ष्य क्या है
संतश्री अड़गड़ानंद ने यथार्थ गीता में बताया है कि मानव जीवन, जन्म और मृत्यु के बीच का पड़ाव है। हर जीव माया के आश्रित है, माया के चंगुल से निकलकर परमतत्व परमात्मा तक की दूरी तय कर लेना परमात्मा का दर्शन और स्पर्श पा लेना यही आध्यात्म की पराकाष्ठा और मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। इसी में कल्याण भी है।

5. दुराचारी बन सकता है धर्मात्मा
संतश्री कहते हैं कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि मैं सबमें हूं, मेरा न कोई शत्रु है और न मित्र। भगवान को भजने में न पुण्य की पूंजी की जरूरत होती है और न ही पाप उसमें बाधा बन सकती है। यदि दुराचारी भी अनन्य भाव से मुझे भजता है तो वह साधु मानने योग्य है। क्योंकि वह यथार्थ निश्चय से लग गया। जो एक परमात्मा के प्रति समर्पित हो गया, परमात्मा को धारण कर लिया, वह शीघ्र धर्मात्मा बन जाता है।

6. कर्म क्या है
संतश्री स्वामी अड़गड़ानंद कहते हैं कि कर्म ऐसी वस्तु है जो सनातन ब्रह्म में स्थिति दिलाती है। जिस उपाय से यज्ञ संपन्न होते हैं, उसी आचरण का नाम कर्म है। कर्म खेती करने से होता हो या नौकरी करने से होता हो तो यही कर्म है और इसे करना चाहिए।