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त्रिपुण्ड की तीन रेखाओं में है 27 देवताओं का वास

भगवान शिव के प्रिय माह श्रावण में हर ओर बम-बम भोले की गूंज और माथे पर भस्म लगाते शिवभक्त आसानी से दिख जाते हैं। पर क्या आपने कभी ये सोचा है कि भोलेनाथ के पूजन में भस्म का इतना महत्त्व क्यों है और हम माथे पर भस्म या विभूति क्यों लगाते हैं? महादेव भस्मांग भी कहलाते हैं। भस्म राख है और इसे विभूति भी कहा जाता है। भस्म या राख दर्शाती है कि सब कुछ प्रकृति में वापस चला जाता है। कुछ भी शाश्वत नहीं है। मृत्यु अंतिम सत्य है…

एक न एक दिन हो जाता है सब राख
भस्म के दार्शनिक महत्त्व की बात करें, तो यह स्पष्ट है शरीर नश्वर है और एक दिन राख हो जाएगा। भस्म को सृष्टि का सार भी कहा जाता है। सृष्टि में सब नश्वर है। इस संसार में जो आया है, उसे जाना होता है।

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एक न एक दिन सब राख हो जाता है। शरीर भी अंत में राख हो जाता है। परिस्थितियां जैसी हैं, उसके अनुसार खुद को ढालने का संदेश भस्मी धारण करने वाले शिव देते हैं। शिव पुराण के अनुसार जो अपने माथे पर भस्म से त्रिपुण्ड लगाते हैं, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

माथे पर विभूति का वैज्ञानिक द़ृष्टिकोण
कहा जाता है कि माथे पर विभूति लगाने से इंसान के भीतर की नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। वहीं इसके कई फायदे हैं। आयुर्वेद की पारंपरिक भारतीय चिकित्सा प्रणाली में, भस्म एक प्रकार का औषधीय पाउडर है, जो पत्थरों, रत्नों खनिजों या धातुओं को जलाकर बनाया जाता है। कई प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए भस्मों की एक विस्तृत शृंखला का उपयोग किया जाता है।

 

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भस्म शरीर के लिए एक तरह से रक्षा कवच की तरह काम करती है। शरीर के रोम छिद्र भस्म लगाने से बंद हो जाते हैं। ऐसे में शरीर को न गर्मी लगती है और न ही सर्दी का अहसास होता है। भस्म त्वचा रोगों के उपचार में भी लाभदायक होती है। चीनी एक्यूप्रेशर विज्ञान में, भौंहों के बीच के क्षेत्र को तंत्रिकाओं का एकत्रित बिंदु माना जाता है और माना जाता है कि इस पर मालिश करने से सिरदर्द कम हो जाता है। इसलिए, माथे पर भस्म लगाने से धूप से अगर सिरदर्द से हो रहा हो, तो राहत मिलती है। शिव भस्म को अपने शरीर पर धारण करते हैं। वह हमें यह संदेश देते हैं कि हमारा यह शरीर नश्वर है। इसलिए प्रकृति से जुड़ें।

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दोनों भौंहों के अंत तक लेप से त्रिपुण्ड
माथे पर तीन क्षैतिज रेखाओं के रूप में विभूति लगाई जाती है। माथे से लेकर दोनों भौंहों के अंत तक लेप की गई विभूति को त्रिपुण्ड कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार त्रिपुण्ड की तीन रेखाओं में 27 देवताओं का वास होता है। हर एक में 9 देवताओं का वास होता है। त्रिपुण्ड शरीर की तीन नाड़ियों का प्रतिनिधित्व करता है। ये पंक्तियां शिव की इच्छा (इच्छाशक्ति), ज्ञान (ज्ञानशक्ति), और क्रिया (क्रियाशक्ति) की तीन गुना शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं।

भस्म की कथा
बात शिव पुराण की करें तो इसके मुताबिक शिवजी का प्रमुख वस्त्र भस्म है। भस्म को लेकर एक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि जब माता सती के पिता ने भगवान शिव का अपमान किया, तो वह गुस्से में हवन कुंड में प्रवेश कर गईं। इसके बाद भोलेनाथ माता सती की देह को लेकर इधर-उधर भटकने लगे।

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तब भोलेनाथ की यह दशा श्रीहरि विष्णु से देखी नहीं गई, तो उन्होंने माता सती की देह को राख यानी भस्म में बदल दिया। इसके बाद शिवजी ने उस राख को अपने पूरे शरीर पर मल लिया। कहा जाता है इसीलिए भगवान शिव को भस्म अर्पित की जाती है।

भस्म कैसे बनाएं
भस्म कई तरह से तैयार की जा सकती है। गाय के गोबर के कंडे, बिल्व वृक्ष, शमी, पीपल, पलाश, बड़ (बरगद), अमलताश और बेर वृक्ष की लकड़ियों को जलाकर भस्म बना सकते हैं। माथे पर लगाई जाने वाली भस्म चावल की भूसी से भी तैयार होती है। गोबर और कुछ अन्य मिश्रण से भी भस्म तैयार की जाती है। गुग्गल आदि की भस्म भी होती है। यज्ञ या हवन की सामग्री से बनी भभूत को भी कई तरह के रोग का नाशक माना गया है।