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Pradosh Vrat: अलग-अलग दिन बदल जाते हैं इस व्रत के लाभ, जानिए कब है बुध प्रदोष व्रत और क्या है खासियत

कब है प्रदोष व्रत
हर महीने की त्रयोदशी तिथि को व्रत रखकर प्रदोष काल में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। इसलिए इसे प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। खास बात यह है कि जिस दिन यह प्रदोष व्रत पड़ता है, उसी नाम से यह प्रदोष व्रत जाना जाता है। उदाहरण के लिए बुधवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत बुध प्रदोष के नाम से जाना जाता है।

पंचांग के अनुसार अश्विन कृष्ण त्रयोदशी यानी अश्विन माह के कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत 11 अक्टूबर बुधवार को है और त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 11 अक्टूबर शाम 5.37 बजे हो रही है और यह तिथि 12 अक्टूबर को शाम 7.53 बजे संपन्न होगी और बुध प्रदोष व्रत पूजा का समय 11 अक्टूबर को शाम 5.59 बजे से 8.26 बजे के बीच रहेगा।

अलग-अलग प्रदोष व्रत और उनका फल
धर्म ग्रंथों के अनुसार अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को नाम के हिसाब से जाना जाता है और दिन बदलने से इनका फल व महत्व भी बदल जाता है। इसलिए आइये जानते हैं अलग-अलग वार के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ

रविवार प्रदोष
रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष व्रत कहा जाता है। जो उपासक सिर्फ रवि प्रदोष व्रत रखते हैं, उनकी आयु में वृद्धि होती है और अच्छा स्वास्थ्य उन्हें मिलता है।

सोम प्रदोष
सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोषम या चन्द्र प्रदोषम के नाम से जाना जाता है। इसे मनोकामना पूर्ति करने वाला प्रदोष व्रत माना जाता है।

मंगल प्रदोष
ऐसे प्रदोष व्रत जो मंगलवार को रखा जाता है, उसे भौम प्रदोषम कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से हर तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं नहीं होतीं।

बुध प्रदोष
बुधवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को बुध प्रदोष व्रत कहते हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से हर तरह की कामना सिद्ध होती है यानी पूरी होती है।

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गुरु प्रदोष
बृहस्पतिवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत गुरु प्रदोषम के नाम से जाना जाता है। यह दिन देवगुरु बृहस्पति और भगवान विष्णु की पूजा का है। इसलिए बृहस्पतिवार के दिन प्रदोष व्रत करने से शत्रुओं का नाश होता है।

शुक्र प्रदोष
ऐसे लोग जो शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत रखते हैं, उनके जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति आती है।

शनि प्रदोष
शनिवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोषम कहा जाता है और लोग इस दिन संतान प्राप्ति की चाह में यह व्रत करते हैं। अपनी इच्छाओं को ध्यान में रख कर प्रदोष व्रत करने से फल की प्राप्ति निश्चित ही होती है।

प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत को हिंदू धर्म में सबसे अधिक शुभ फल देने वाले व्रतों में से एक माना जाता है । पुराणों के अनुसार एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों के दान जितना होता है। सूतजी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था कि कलियुग में जब अधर्म का बोलबाला रहेगा, लोग धर्म के रास्ते को छोड़ अन्याय की राह पर जा रहे होंगे उस समय प्रदोष व्रत एक माध्यम बनेगा जिसके द्वारा वो शिव की अराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित कर सकेगा और अपने सारे कष्टों को दूर कर सकेगा। मान्यता यह भी है इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से जीवनकाल में किए गए सभी पापों का नाश होता है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।



Source: Religion and Spirituality