जीवन जीने की कला सिखाती है गीता, जयंती पर जानें स्टूडेंट्स के लिए क्या है खास
कब है गीता जयंती
पंचांग के अनुसार गीता जयंती शनिवार 23 दिसंबर को है। यह गीता की 5160वीं वर्षगांठ होगी। इसी दिन मोक्षदा एकादशी भी है। मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि की शुरुआत 22 दिसंबर 2023 को सुबह 11:46 बजे हो रही है, जबकि इस तिथि का समापन 23 दिसंबर 2023 को सुबह 10:41 बजे हो रहा है। उदयातिथि में एकादशी व्रत और गीता जयंती पर पूजा पाठ के कार्यक्रम 23 दिसंबर को होंगे।
सनातन धर्म में शास्त्र सिद्धांतों और ग्रंथों में श्रीमद् भगवत गीता विशिष्ट पहचान है। गीता अपने श्लोकों में उन रहस्यों को प्रदर्शित करती है, जिसे श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश के रूप में कुरूक्षेत्र में दिया। अगर युग धर्म के आधार पर देखें तो यह एक विशिष्ट पक्रिया थी, जिसे कलियुग के चारों चरणों में संरक्षित करते हुए इसके मूल सूत्रों के द्वारा जीवन को जीने, आगे बढ़ाने व आत्मा की आगे की यात्राओं के संबंध में दर्शाया गया है। गीता के मूल सूत्रों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चार पुरुषार्थ की बात कही गई है। ज्ञान-विज्ञान, तर्क-वितर्क, सुख-दुख, लाभ-हानि, जीवन-मृत्यु उनके संदर्भ का परिप्रेक्ष्य दर्शाया गया है। इन संबंधों को दर्शाने का प्रमुखतम ग्रंथ है श्रीमद् भगवत गीता।
श्रीमद् भगवत गीता में कर्म पर विशेष जोर दिया गया है। बिना कर्म के कोई प्राप्ति किसी भी जीव को नहीं होती। चींटी को भी यदि पेट भरना है, तो उसे अन्न के कण को प्राप्त करने के लिए यात्रा तय करनी होती है। कर्म के संबंध में गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को अलग-अलग प्रकार से समझाने का प्रयास किया। बिना कर्म के फल प्राप्ति उचित नहीं है। यदि कोई प्राप्ति होती है, तो उसे चोरी कहा जाता है। गीता के मूल सूत्रों में कर्म के सिद्धांत के प्रतिपादन पर भगवान श्री कृष्ण ने सांख्य दर्शन की विवेचना की है। इसमें जीवात्मा को अपने उत्थान के लिए कर्म के उन प्रकट रूपों को स्वीकार करना चाहिए, जो जीवन में मृत्यु के संदर्भ का भी सकारात्मक पक्ष प्रदान कर सके।
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ज्ञान से एकाग्रता तक, बहुत कुछ सिखाती है गीता
गीता का अध्ययन करने से ज्ञान बढ़ता है। एकाग्रता बढ़ती है। बुद्धि विवेचन करने की कला सीखी जाती है। कम बोलने वाले सही रूप से अपनी बात को क्षमता के साथ सामने रख सकते हैं। विद्यार्थी वर्ग जब इसका अध्ययन करता है, तो उसे बौद्धिक चेतना, एकाग्रता और जागृति की प्राप्ति होती है। यहीं से जीवन की यात्रा में सत्य, सुख, दुख प्राप्ति के भेद को समझने की आवश्यकता होती है। यही मार्ग जीवन को आगे ले जाने में सहायक होता है, जब हम विषयगत वस्तुओं को समझने लगते हैं।
गीता के सिद्धांत
ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डब्बावाला (त्रिवेदी) का कहना है कि गीता तर्क और विज्ञान की सामान्य विवेचना से ऊपर है। विज्ञान किसी भी विषय का क्रमबद्ध ज्ञान हो सकता है। वह ज्ञान सांख्य दर्शन के सूत्र या न्याय दर्शन के माध्यम से या प्राकृतिक दर्शन व सिद्धांत के माध्यम से समाज के सामने है। इस दृष्टिकोण से वर्तमान में गीता का अध्ययन करते हुए आत्म बुद्धि और आत्मा-परमात्मा के संयोग का अनुशीलन करना चाहिए। जीवन को जीने के लिए तर्क और विज्ञान सामान्य जीवन की शैली का भाव हो सकता है, यथार्थ नहीं। सहयोग और यथार्थ के प्रति उनके भेद को समझने का ही रहस्य गीता के कुछ सूत्रों में दिया गया है।
Source: Dharma & Karma