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Ma Laxmi Mantra: मां लक्ष्मी के इन मंत्रों के जाप से दूर होता है धन संकट, जाग उठता है सौभाग्य

मां लक्ष्मी के मंत्रों का महत्व
प्रयागराज के ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय के अनुसार कई बार कड़ी मेहनत के बाद भी अच्छी आमदनी नहीं हो पाती और आमदनी से अधिक खर्चे बने रहते हैं। इस कारण जीवन में आर्थिक तंगी रहती है, ऐसे लोगों को मां लक्ष्मी की पूजा अवश्य करनी चाहिए। क्योंकि यही मां लक्ष्मी धन और सौभाग्य की देवी हैं। ममतामयी माता लक्ष्मी की कृपा से दरिद्र का भी दुख दूर हो जाता है। उसका आर्थिक संकट दूर होता है और उसे धन लाभ होता है। ज्योतिषाचार्य वार्ष्णेय के अनुसार शुक्रवार को धन की देवी मां लक्ष्मी का दिन माना जाता है। इस दिन नीचे बताए गए मंत्रों से मां लक्ष्मी की पूजा करें, इससे धन लाभ होगा और आपके घर में सुख-समृद्धि का वास होगा। आइये जानते हैं मां लक्ष्मी के प्रभावशाली मंत्र (Powerful Ma Laxmi Mantra)।

लक्ष्मी बीज मन्त्र: आचार्य वार्ष्णेय के अनुसार लक्ष्मी बीज मन्त्र देवी लक्ष्मी की सभी शक्तियों का स्रोत है। इन देवी लक्ष्मी का बीज मन्त्र श्री है, जिसे अन्य मन्त्रों के साथ संयुक्त करके विभिन्न मन्त्र बनाए जाते हैं।
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः॥

2. महालक्ष्मी मन्त्र: आचार्य वार्ष्णेय के अनुसार धन-सम्पत्ति की देवी महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये भक्तजन भिन्न-भिन्न मन्त्रों की साधना करते हैं। देवी लक्ष्मी का यह महालक्ष्मी मन्त्र सर्वाधिक प्रचलित और व्यापक रूप से स्वीकृत मन्त्र है।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥

3. लक्ष्मी गायत्री मन्त्र: लक्ष्मी गायत्री मंत्र देवी लक्ष्मी के प्रसिद्ध मंत्रों में से एक है। इस मंत्र के जाप से मां लक्ष्मी आसानी से प्रसन्न हो जाती हैं।
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि,
तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥

लक्ष्मी चालीसा
लक्ष्मी चालीसा एक भक्ति गीत है जो लक्ष्मी माता पर आधारित है। लक्ष्मी चालीसा एक लोकप्रिय प्रार्थना है जो 40 छन्दों से बनी है। लक्ष्मी माता के भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इस चालीसा का पाठ करते हैं।

॥ दोहा ॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा,करो हृदय में वास।

मनोकामना सिद्ध करि,परुवहु मेरी आस॥

॥ सोरठा ॥
यही मोर अरदास,हाथ जोड़ विनती करुं।

सब विधि करौ सुवास,जय जननि जगदम्बिका।

॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।ज्ञान, बुद्धि, विद्या दो मोही॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी।सब विधि पुरवहु आस हमारी॥

जय जय जगत जननि जगदम्बा।सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥

तुम ही हो सब घट घट वासी।विनती यही हमारी खासी॥

जगजननी जय सिन्धु कुमारी।दीनन की तुम हो हितकारी॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी।कृपा करौ जग जननि भवानी॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी।सुधि लीजै अपराध बिसारी॥

कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी।जगजननी विनती सुन मोरी॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता।संकट हरो हमारी माता॥

क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो।चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी।सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा।रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा।लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥

तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं।सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥

अपनाया तोहि अन्तर्यामी।विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥

तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी।कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई।मन इच्छित वाञ्छित फल पाई॥

तजि छल कपट और चतुराई।पूजहिं विविध भाँति मनलाई॥

और हाल मैं कहौं बुझाई।जो यह पाठ करै मन लाई॥

ताको कोई कष्ट नोई।मन इच्छित पावै फल सोई॥

त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि।त्रिविध ताप भव बन्धन हारिणी॥

जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै।ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥

ताकौ कोई न रोग सतावै।पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥

पुत्रहीन अरु सम्पति हीना।अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै।शंका दिल में कभी न लावै॥

पाठ करावै दिन चालीसा।ता पर कृपा करैं गौरीसा॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै।कमी नहीं काहू की आवै॥

बारह मास करै जो पूजा।तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माही।उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥

बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई।लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥

करि विश्वास करै व्रत नेमा।होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा॥

जय जय जय लक्ष्मी भवानी।सब में व्यापित हो गुण खानी॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं।तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै।संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥

भूल चूक करि क्षमा हमारी।दर्शन दजै दशा निहारी॥

बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी।तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में।सब जानत हो अपने मन में॥

रुप चतुर्भुज करके धारण।कष्ट मोर अब करहु निवारण॥

केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई।ज्ञान बुद्धि मोहि नहिं अधिकाई॥

॥ दोहा ॥
त्राहि त्राहि दुःख हारिणी,हरो वेगि सब त्रास।

जयति जयति जय लक्ष्मी,करो शत्रु को नाश॥

रामदास धरि ध्यान नित,विनय करत कर जोर।

मातु लक्ष्मी दास पर,करहु दया की कोर॥



Source: Religion and Spirituality

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