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मेले का आयोजन फिर टला: पहला टेंडर विड्रोल, अब दोबारा बुलाए टेंडर

मुरैना. पशुपतिनाथ महादेव मेले का आयोजन फिर आगे के लिए टल गया। नगर निगम ने पहले नवंबर में टेंडर कॉल किए थे, उस समय तीन फर्मों ने टेंडर डाले थे। निगम ने सर्वाधिक रेट 1.10 करोड़ वाली फर्म को टेंडर पास कर दिया था लेकिन समय सीमा में उसका टेंडर स्वीकृत नहीं हो सका तो फर्म ने अपना टेंडर विड्रोल कर लिया। अब फिर से टेंडर बुलाया गया है। उधर मेले में झूला समेत अन्य दुकानदार अपना सामान लेकर आ चुके हैं।
पशुपतिनाथ महादेव मेले का आयोजन नगर निगम के द्वारा नवंबर माह में हर साल शुरू किया जाता था। लेकिन पिछले तीन साल से मेले के आयोजन का ठेका पद्धति से प्राइवेट फर्मों के द्वारा करवाया जा रहा है, जिनकी कोई समय सीमा नहीं हैं। इस बार आचार संहिता लगी होने के बाद भी आयुक्त ने कलेक्टर से अनुमति लेकर नवंबर माह में टेंडर कॉल कर दिया और एक फर्म का टेंडर मंजूर भी कर दिया लेकिन संबंधित फर्म को मेले के आयोजन के लिए विधिवत निगम से परमीशन नहीं मिली इसलिए संबंधित फर्म ने अपना टेंडर विड्रोल कर लिया है। नगर निगम ने 19 दिसंबर को फिर से टेंडर कॉल किए हैं। जिसमें एक सप्ताह में जिन फर्मों के टेंडर आएंगे, उसमें सर्वाधिक रेट वाली फर्म का टेंडर मंजूर कर लिया जाएगा।
यहां प्रक्रिया पूरी नहीं, उधर ग्वालियर मेले की शुभारंभ की तैयारी
अभी तक मुरैना में पशुपतिनाथ महादेव मेले का आयोजन इस हिसाब से होता था कि यहां समापन होता, उसके बाद सारे दुकानदार सीधे ग्वालियर मेले में पहुंचते थे लेकिन इस बार ग्वालियर मेले के शुभारंभ की तैयारी हो चुकी है और मुरैना में अभी निगम टेंडर…. टेंडर का खेल रहा है। ऐसी स्थिति में लगता है कि मुरैना का मेला इस बार लग पाएगा कि नहीं, यह कह पाना मुश्किल है।
कथन
– मेले के आयोजन के लिए पहले टेंडर हुआ था लेकिन समय सीमा में अनुमति न मिल सकी इसलिए उस फर्म ने विड्रोल कर लिया है। अब दोबारा टेंडर कॉल किया है। सात दिन में जिन फर्मों के टेंडर आएंगे, उनमें से अधिकतम रेट वाली फर्म का टेंडर पास कर दिया जाएगा।
शारदा सोलंकी, महापौर, नगर निगम

पहले संस्कृति व मनोरंजन खोया, अब मेला भी खोने की कगार पर
एक समय था जब पशुपतिनाथ महादेव मेले का दूर-दूर तक नाम था। संस्कृतियुक्त प्रदर्शनी, अखिल भारतीय कवि सम्मेलन, नाटक, रामलीला सहित अन्य कार्यक्रम होते थे, कई शहरों के कलाकार मेले में आते थे लेकिन मुरैना के जनप्रतिनिधि व अधिकारियों की बेरुखी और अनदेखी के चलते पहले मेले से मनोरंजन, संस्कृति खो गई और अब मेला भी खोने की कगार पर है।