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Explainer: न कोई संवैधानिक पद न कोई अधिकार…, फिर भी देश भर में उपमुख्यमंत्रियों की भरमार

देश में इस समय उपमुख्यमंत्रियों की भरमार है। देश के 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में से 14 राज्यों में उपमुख्यमंत्री हैं। इनमें से कई राज्यों में एक तो किसी में दो तो किसी में पांच-पांच उपमुख्यमंत्री हैं। अब सवाल उठता है कि अगर उपमुख्यमंत्री का पद इतना ही महत्वपूर्ण है तो संविधान में इस पद का जिक्र क्यों नहीं है, जैसे मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का काम निर्धारित है उसी तरह इनके काम का बंटवारा क्यों नहीं हुआ है।

कहीं ऐसा तो नहीं कि ये पद सिर्फ राजनीतिक इच्छापूर्ती या सत्ता संतुलन के लिए राजनीतिक पार्टियों की ओर से बनाए गए है। हम आपको इस एक्सप्लेनर में बताएंगे कि आखिर उपमुख्यमंत्री का पद क्या होता है उनकी क्या जिम्मेदारी होती है और वो किस पद की शपथ लेते हैं। लेकिन इन सबसे पहले ये जान लेते है कि किस राज्य में कितने उपमुख्यमंत्री हैं।

 

किस राज्य में कितने उपमुख्यमंत्री?

अगर हम देश में उपमुख्यमंत्रियों की बात करें तो देश के 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में से 14 राज्यों में उपमुख्यमंत्री हैं। सबसे ज्यादा उपमुख्यमंत्री आंध्र प्रदेश के पास है। आंध्र प्रदेश में एक-दो नहीं बल्कि 5 उपमुख्यमंत्री है। उसके बाद उत्तर प्रदेश-बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, और नागालैंड में दो-दो उपमुख्यमंत्री हैं। वहीं, हरियाणा, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना और अरुणाचल प्रदेश में एक-एक उपमुख्यमंत्री हैं।

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संविधान में उपमुख्यमंत्री पद का प्रावधान नहीं

इतने सारे उपमुख्यमंत्रियों के बारे में आप ये सोच सकते हैं कि क्या उपमुख्यमंत्री का पद इतना महत्वपूर्ण होता है तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि संविधान में कही भी उप मुख्यमंत्री या उप प्रधानमंत्री पद का प्रावधान नहीं है। यह पद राजनीतिक दलों ने अपनी सुविधा के हिसाब से और राजनीतिक समीकरणों को साधने के लिए बना रखा है। केंद्रीकृत व्यवस्था में जब सत्ता के सारे सूत्र मुख्यमंत्रियों के हाथों में हों, उपमुख्यमंत्रियों के पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता। वे मुख्यमंत्री और बाकी मंत्रियों के बीच त्रिशंकु की तरह होते हैं। कुछ को थोड़ा-बहुत काम मिल जाता है। परंतु कोशिश यही होती है कि उन्हें अधिक शक्तियां न दी जाएं।

 

आखिर किस पद की शपथ लेते हैं उपमुख्यमंत्री

फिर भी सवाल यह उठता है कि जब संविधान में उपमुख्यमंत्री पद का जिक्र तक नहीं है तो इस पद की हैसियत इतनी बढ़ कैसे गई और इस पद की असल संवैधानिक स्थिति क्या है। संविधान के अनुच्छेद 163 (1) में कहा गया है कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रिपरिषद होगी जो अपने कार्यों के निष्पादन के लिए राज्यपाल को सलाह देगी। 164 में भी मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद के बारे में विस्तार से बताया गया है, लेकिन उपमुख्यमंत्री के नाम का जिक्र नहीं मिलता है। इस लिहाज से तकनीकी तौर पर उपमुख्यमंत्री की हैसियत केवल एक कैबिनेट मंत्री की होती है। कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री के बाद सबसे बड़ा मंत्री पद होता है। लेकिन मंत्रिमंडल में कई कैबिनेट मंत्री होते हैं। और वो शपथ भी कैबिनेट मंत्री के पद की ही लेते हैं।

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राजनीतिक संतुलन के लिए बनाए जाते हैं उपमुख्यमंत्री

1990 के दशक से जब गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ, तब से देखा जाने लगा कि राजनीतिक संतुलन स्थापित करने के लिए उपमुख्यमंत्री पद का उपयोग अधिक होने लगा है। गठबंधन में दो शक्तिशाली दलों में से एक का ही व्यक्ति मुख्यमंत्री बन सकता है। ऐसे में राजनीतिक तौर पर उपमुख्यमंत्री का पद दूसरे दल को दिया जाता है। वहीं कई सरकारों में किसी जाति या शक्तिशाली वोट समूह के प्रतिनिधित्व को महत्व देने के लिए भी यह पद बना दिया जाता है।

 

कब से हुई उपमुख्यमंत्री पद की शुरुआत ?

1989 में पहली बार हरियाणा के दिग्गज नेता देवीलाल ने उप प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली। देवीलाल के उप प्रधानमंत्री पद पीएम के तौर पर शपथ लेने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इस पर केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया कि यह पद सिर्फ नाम के लिए है और देवीलाल अन्य तमाम मंत्रियों की तरह ही होंगे। इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने 9 जनवरी, 1990 को टिप्पणी की थी कि देवीलाल के पास पीएम की कोई शक्ति नहीं है। देवीलाल के उप प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद देश में उपमुख्यमंत्री का सिलसिला शुरू हुआ। पहली बार कर्नाटक में 1992 में पूर्व विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा उपमुख्यमंत्री बने।

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Source: National