आरबीआई ने भी माना देश में आर्थिक मंदी का दौर, बताया ये मुख्य वजह
नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कुछ इंडिकेटर्स के बारे में जिक्र किया है, जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था में सुस्ती देखने को मिल रही है। हालांकि, उन्होंने अपने पक्ष में यह भी कहा है कि आरबीआई द्वारा आक्रामक रूप से रेपो रेट में कटौती की वजह से स्थिति कुछ सामान्य है।
खास बात है पिछली बार आरबीआई की मौद्रिक नीति बैठक में कुल छह में 2 सदस्य चाहते थे कि नीतिगत ब्याज दरों में केवल 25 आधार अंक की ही कटौती हो। आरबीआई ने इस बैठक में रेपो रेट में 35 आधार अंक की कटौती करने का फैसला लिया था।
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रेपो रेट में कटौती को लेकर आरबीआई का आक्रामक रुख
रेपो रेट वह ब्याज दर होता है, जिसके आधार पर आरबीआई पब्लिक व प्राइवेट सेक्टर के बैंकों को कर्ज देता है। आरबीआई एमपीसी, रेपो रेट में इसलिए बदलाव करता है ताकि बैंकों को सिग्नल मिल सके और वे अपने कॉस्ट ऑफ फंड्स को कम कर सकें। गत 7 अगस्त को अंतिम बैठक में आरबीआई के छह सदस्यों की बैठक में रेपो रेट को 0.35 फीसदी या 35 आधार अंक की कटौती किया गया था। इस बैठक के मिनट्स से पता चलता है कि आरबीआई के सदस्यों ने आक्रामक रूप से ब्याज दरों में कटौती करने की वकालत की है।
इन इंडिकेटर्स की वजह से सुस्ती
शक्तिकांत दास ने कहा, “मई से लेकर जून माह के दौरान कई ऐसे इंडिकेटर्स सामने आये, जिसकी वजह से पता चलता है कि सर्विस सेक्टर में कमजोरी है। इसमें से प्रमुख इंडिकेटर ग्रामीण क्षेत्रों डिमांड में कमी की है। ट्रैक्टर व मोटरसाइकिल की मांग में लगातार गिरावट देखने को मिला। अन्य इंडिकेटर्स में शहरी क्षेत्रों का डिमांड है, जिसमें यात्री वाहनों की मांग में और घरेलू हवाई ट्रैफिक तीन महीनों के बाद पॉजिटीव स्तर पर आया हुआ है। कंस्ट्रक्शन क्षेत्र, जिसमें सीमेंट और स्टील की खपत में भी कमी आई हे।”
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दास के मुताबिक, जून 2019 में मौद्रिक नीति की बैठक के बाद अर्थव्यवस्था ने सुस्ती के कई संकेत दिये हैं। उन्होंने कहा, “जुलाई माह के दौरान घरेलू मुद्रास्फिति भी कुछ खास बेहतर नहीं रहा है। आरबीआई के सर्वे के बाद अगले एक साल के लिए इसमें 20 आधार अंक की बढ़ोतरी देखने को मिली। हालांकि, बीते तीन दिन माह में इसमें कोई बदलाव नहीं दिख रहा है।”
Source: Business