स्पाइना बाइफिडा से कमजोर होता है शिशु का मानसिक विकास
नवजात बच्चों में शारीरिक अक्षमता का कारण प्रेग्नेंसी में मस्तिष्क का पूर्ण विकसित न होना व स्पाइनल कॉर्ड का प्रेग्नेंसी के समय से ही विकृत होना है। यह स्थिति स्पाइना बाइफिडा है जिसमें स्पाइनल कॉर्ड के आसपास की हड्डियों से घिरी न होने से पूर्ण विकसित नहीं हो पाती। इससे निचले भाग में लकवा, पीठ में एक गांठ के साथ शिशु का जन्म या मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं। इसके कारण पैरों में ताकत न होने के साथ यूरिन-स्टूल पर कंट्रोल नहीं रहता।
रोग के प्रमुख 3 प्रकार –
मेनिंगोसील : रीढ़ की हड्डी में जब एक से ज्यादा छेद हो जाएं तो आंतरिक दबाव से पीठ पर एक गांठ के रूप में उभार आ जाता है। हालांकि इस विकृति में स्पाइनल कॉर्ड में स्थित कोशिकाओं को कोई नुकसान नहीं होता। समय पर सर्जरी से यह दिक्कत दूर हो सकती है।
मायलो मेनिंगोसील : यह रोग का सबसे गंभीर प्रकार है। इसमें रीढ़ की मांसपेशियां व नसें शरीर के बाहर गांठ के रूप में आती हैं। यह गांठ त्वचा की हल्की परत से ढकी होती है। इस कारण शिशु के शरीर का निचला भाग लकवाग्रस्त और यूरिन-स्टूल पर नियंत्रण नहीं रह पाता।
स्पाइना बाइफिडा ओक्यूल्टा : इस प्रकार की विकृति में रीढ़ की हड्डी में एक साधारण सी दरार होती है जिससे स्पाइनल कॉर्ड को कोई नुकसान नहीं होता। इसमें रीढ़ की हड्डी पर किसी प्रकार का उभार नहीं होता।
मुख्य वजह –
यह एक जन्मजात विकृति है। इसके प्रमुख कारणों में आनुवांशिकता और गर्भावस्था के दौरान फॉलिक एसिड की कमी होना शामिल है। 95 फीसदी बच्चे जो इस रोग से ग्रस्त होते हैं वे किसी अन्य विकृति से ग्रस्त नहीं होते। कई मामलों में यह आनुवांशिक नहीं होती। अन्य वजहों में प्रेग्नेंसी के दौरान हाई ब्लड प्रेशर, मधुमेह और अन्य शारीरिक रोग जो गर्भावस्था की स्थिति को प्रभावित करे, शामिल हैं।
इलाज – सामान्य तौर पर मायलो मेनिंगोसील से ग्रस्त ज्यादातर नवजात शिशुओं की जन्म के कुछ घंटे बाद ही मृत्यु हो जाती है। लेकिन जो शिशु बच जाते हैं उनकी सर्जरी करते हैं। मरीज के दिमाग में पानी भरने की समस्या (हाइड्रोसफेलस) की शिकायत होती है जिसका शंट विधि से उपचार होता है। ज्यादातर मामलों में सभी तरह के इलाज व सर्जरी के बावजूद इन बच्चों में मानसिक-शारीरिक अक्षमता की आशंका रहती है। उपचार के लिए कई शोधकर्ता नई दवा की खोज में लगे हैं।
Source: Health