fbpx

सनसीनखेज खबर – नीमच के सरकारी अस्पताल से वो लोग साथ ले गए दो मृत लोगों की आत्मा

मुकेश सहारिया, नीमच. जिला चिकित्सालय में सोमवर को भी मृत आत्मा को तंत्र मंत्र साधना से ज्योत के रूप में ले जाने की प्रक्रिया हुई। मृतक की आत्मा को साथ ले जाने के लिए परिजनों ने अस्पताल परिसर में ही पूजा-अर्चना की और मृतक की आत्मा ज्योत के रूप में अपने साथ ले गए।

अस्पताल में वर्षों से जारी है ज्योत ले जाने का सिलसिला
बताया जाता है की परिवार में यदि किसी की असमय या दुर्घटना में मौत हो जाती है तो मृतक की आत्मा भटकती रहती है। जो परिवार में बीमारी एवं गृह कलेश का कारण बनती है। इससे बचने के लिए परिजन मृतक की आत्मा लेने घटना स्थल या मृत्यु स्थल पहुंचते है। वहां तंत्र मंत्र साधना से अपने मृतक परिजन की आत्मा को ज्योत के रूप में साथ ले जाते हैं। बाद में मूर्ती स्थापना कि जाती है। मृतक की त्योत ले जाने के लिए जिला चिकित्सालय में पिछले दो दिनों से ऐसा की कुछ नजारा देखने को मिल रहा है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार रविवार और सोमवार इन दो दिनों में अलग अलग गांव से लगभग 5 से 6 परिजन जिला चिकित्सालय पहुंचे। परिजनों ने तंत्र मंत्र साधना की और अपने साथ मृतक की ज्योत ले गए।

चित्तौडग़ढ़ से दूसरी बार ज्योत लेने पहुंचे परिजन
सोमावार को जहा राजस्थान के चित्तौडग़ढ़ से परिजन लगभग 32 वर्ष पहले मृतक गोविंद पिता रतनलाल वाल्मीकि की ज्योत लेने पहुंचे थे। जिले के लोहारिया चन्दावत के परिजन एक वर्ष पूर्व जिला अस्पताल में कोरोना से मृत हुए राजू पिता मांगीलाल धोबी की ज्योत लेने पहुंचे। वहीं चित्तौडग़ढ़ से ज्योत लेने आए परिजन ने बताया कि वर्ष 2014 में गोविंद की ज्योत ले गए थे, परंतु बीच में ज्योत जमीन पर रखने के कारण गोंविंद की सिरे के रूप में स्थापना नहीं हो पाई। इस कारण परिवार में काफी परेशानियां चल रहीं थी। सोमवार को फिर विधि विधान से गोविंद की ज्योत लेने पहुंचे थे। अब विधि विधान से इसकी स्थापना कि जाएगी।

क्षेत्र में एक अनोखी परम्परा है गातला
मान्यता के अनुसार किसी व्यक्ति की असमय मौत होने पर एक अनोखी गातला परंपरा है जिसे गाता भी कहा जाता है। इसमें मृतक की मूर्ति बनाकर परिजनों द्वारा उसकी पूजा की जाती है। यह परम्परा बरसों पुरानी है। इस परम्परा के तहत विभिन्न समाज अपने जिस परिजन का असामयिक निधन हो जाता है उसकी मूर्ति बनवाकर उसे पूजते हैं। यदि कभी परिजन की दुर्घटना में मृत्यु होती है तो घटनास्थल वाले स्थान से ही पुजारी के जरिए मृतक की आत्मा को ज्योत के रूप में मटकी में ले जाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पुजारी या मृतक के परिजन के अंदर मृत व्यक्ति की आत्मा प्रवेश कर गाता (सिरा) यानी मूर्ति लगाने के स्थान को बताती है। बताए गए निश्चित स्थान पर मूर्ति को गढ़वाया जाता है। ऐसे में पुरुष की मृत्यु को गाता तो वही महिला की मृत्यु होने पर मूर्ति को सती मानकर समय समय पर परिवार पूजा अर्चना करता है। मूर्ति स्थापना तक विभिन्न धार्मिक ओयन किए जाते हैं। इसके बाद सूर्य की पहली किरण के साथ पुजारी द्वारा बताए स्थान पर रीति रिवाज से गाता (सिरा) की स्थापना की जाती है। समाज का ऐसा भी मानना है की मृत परिजन को मूर्ति यानी सिरे के रूप में बैठने के बाद ही उनकी आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही उन्हें देवता का स्थान भी मिल जाता है। समाज के अनुसार गातला (सिरा) लगाने के बाद ही परिवार में शुभ कार्य होते हैं। नहीं तो पारिवारिक गृह कलेश भी परिवार में चलते रहते हैं। इसके बाद ही परिवार में विवाह आदि शुभ कार्य हो सकते हैं। वर्षों पुरानी गातला परम्परा पर समय के हिसाब से आधुनिकता का रंग भी चढ़ गया है। पूर्व में पत्थर को तराशकर बनाए जाने वाली मूर्ति में समाज की पारंपरिक वेशभूषा और घोड़े के साथ बंदूक, भाला या तलवार लिए हुए दिवंगत को दिखाया जाता था, किंतु अब मूर्तियों में समय के अनुसार बदलाव किया गया है।



Source: Education