दुर्लभ प्रतिमा: सोना परखने वाले कसौटी पत्थर से बनी है पार्श्वनाथ भगवान की ये मूर्ति- देखें वीडियो
जबलपुर। संस्कारधानी में जैन मंदिरों व प्रतिमाओं हजारों साल पुराना इतिहास है। सभी अपने आप में एक इतिहास और कहानियों को समेटे हुए हैं। वहीं श्वेतांबर जैन मंदिर की बात की जाए तो सराफा स्थित श्री शीतलनाथ जैन श्वेतांबर मंदिर अपने आप में एक अलग ही पहचान रखता है। इस मंदिर का न केवल पाकिस्तार से कनेक्शन है, बल्कि यहां विराजमान भगवान की दुर्लभ प्रतिमाएं भी चर्चा व खोज का विषय बनी रहती हैं। वर्तमान मंदिर की सुंदरता ऐसी कि एक बार देखकर मन ही नहीं भरता है।
स्थापत्य, शिल्प और वास्तु का अनूठा संगम है सराफा का श्री शीतलनाथ जैन श्वेतांबर मंदिर, पाकिस्तान से है मूल प्रतिमा का कनेक्शन
मंदिर का 500 साल पुराना इतिहास
मंदिर के सदस्य व सेवक संदीप भूरा ने बताया कि मंदिर का इतिहास 475 से 500 साल पुराना रहा है। पहले यह मंदिर लकड़ी पटाव से बना था। जो जीर्ण शीर्ण होने लगा तो 1950-55 में मोतीलाल भूरा, चापसी कुंवर शाह, भानजी मोनजी शाह ने इसके जीर्णोद्धार के लिए प्रयास किए, किंतु तत्कालीन परिस्थियों के चलते वे सफल नहीं हो पाए। साल 1978 में डेहला वाले आचार्य रामचंद्र सूरीश्वर ने विहार के दौरान जबलपुर पधारे, उन्होंने फिर समाज के लोगों को सक्रिय किया। 1983 में विजय हेमप्रभ सूरीश्वर महाराज ने संघ को जीर्णोद्धार के लिए प्रेरित किया और 16 अप्रैल 1984 को भूमि पूजन तथा 8 मई को शिलारोपण का कार्य सम्पन्न हुआ। इस दौरान भूरा परिवार समेत समाज कई परिवारों ने चावल व शक्कर का त्याग किया था, जीर्णोद्धार के साथ पूरा हुआ।
पाकिस्तान से आई थी मूल प्रतिमाएं
मंदिर स्थापना की सटीक तारीख ज्ञात नहीं है लेकिन करीब 500 पहले का ये बताया जाता है। इसकी मूल प्रतिमाएं पाकिस्तान के सिंध प्रांत स्थित मुलतान नगर से लाई गई थीं। जिनकी बनावट व नक्काशी में सिंध प्रांत की झलक आज भी देखी जा सकती है।
कसौटी पत्थर की दुर्लभ प्रतिमा
संदीप भूरा ने बताया करीब 80 साल पहले धूमा के पास एक गांव में अजीव घटना घटित हुई। एक किसाान के खेत में रोज निश्चित स्थान पर सांपों का लगातार आना जाना हो गया। पहले तो खजाना होने की बात कही गई, लेकिन खुदाई में वहां काले भूरे पत्थर की एक सहस्त्रफणा पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा निकली। जब गहनात से जांचा गया तो वह प्रतिमा असली नकली सोने को जांचने में प्रयोग होने वाले कसौटी पत्थर की निकली। जो कि अपने आप में दुर्लभ प्रतिमा है। इस पत्थर से बनी प्रतिमाएं शायद ही कहीं देखने या सुनने को मिलती हैं। इनकी स्थापना भी सराफा स्थित मंदिर में कराई गई है।
नक्काशी ऐसी कि देखते ही मनमोह ले
जब नया मंदिर बनाया जाना था तब यह निर्णय लिया गया कि कांक्रीट के बिना निर्माण कार्य होगा। तब गुलाबी पत्थरों से जिनालय बनाने की बात हुई जो कि राजस्थान के भरतपुर में स्थित बंशी पहाड़पुर में पाया जाता है। संदीप भूरा ने बताया लागत बढऩे पर समाज के सम्पन्न लोगों ने पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया। वास्तु, स्थापत्य और शिल्पकला वैभवशाली मंदिर को राजस्थान, उड़ीसा के सिद्धस्थ कारीगरों ने जैन धर्म के चिह्ल, देवी देवताओं की मूर्तियां, बेल, पत्तियां इतनी खूबसूरती व बारीकी से उकेरीं की लोग देखते ही रह जाएं। 24 फरवरी 1994 के दिन मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर भगवान की प्रतिष्ठा की गई।
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