डायबिटिक रेटिनोपैथी से हाे सकता है अंधापन, समय पर इलाज जरूरी
Diabetic Retinopathy: डायबिटिक रेटिनोपैथी एक बीमारी है जो ब्लड शुगर से पीड़ित व्यक्ति की रेटिना (आंख का पर्दा) को प्रभावित करती है। यह रेटिना को रक्त पहुंचाने वाली बेहद पतली नसों के क्षतिग्रस्त होने से होता है। समय पर इलाज न कराने से पूर्ण अंधापन भी हो सकता है। डायबिटीज के करीब 40 प्रतिशत मरीज इस बीमारी से पीड़ित हैं। दुनिया में अंधेपन का यह सबसे बड़ा कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने इसे अपने विजन 2020 : राइट टू साइट इनीशिएटिव में शामिल किया है। हाई कोलेस्ट्रॉल व ब्लड प्रेशर के मरीजों को भी इस बीमारी के होने का खतरा रहता है।
रेटिना को प्रभावित करता है ब्लड शुगर ( diabetic retinopathy Causes )
रेटिना आंख के अंदरूनी भाग में स्थित एक प्रकाश संबंधी नाजुक परत है जो प्रकाश की मदद से वस्तु की छवि निर्माण के लिए मस्तिष्क से जुड़ी होती है। टाइप-1 डायबिटीज में शरीर में इंसुलिन नहीं बनाता है। टाइप 2 डायबिटीज में शरीर इंसुलिन का सही इस्तेमाल नहीं कर पाता है। इंसुलिन कोशिकाओं के जरिये ग्लूकोज शरीर में पहुंचाता है। यह कोशिकाओं तक नहीं पहुंचता है। खून में ही घुलता है। मरीज के रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ने से रक्त नलिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। इससे रक्तस्राव शुरू हो जाता है। रेटिना में सूजन आ जाती है। रेटिना को जरूरी पोषक तत्त्व और ऑक्सीजन नहीं मिलती है। शुरुआत में आंख से धुंधला दिखाई देता है। समय पर इलाज न होने से क्षतिग्रस्त नलिकाओं से ज्यादा रक्तस्राव से आंखों में ब्लाइंड स्पॉट बन जाता है। इससे पूर्ण अंधापन हो सकता है।
दो तरह की होती डायबिटिक रेटिनोपैथी “Diabetic Retinopathy Risks”
डायबिटिक रेटिनोपैथी दो प्रकार की होती है। बैकग्राउंड डायबिटिक रेटिनोपैथी में आंख के पर्दे के अंदर रक्तवाहिनियों के फूलने से आंखों में रक्त या वसा (तरल पदार्थ) रिसता है। प्रोलिफरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी में असामान्य नई रक्त वाहिनियां पर्दे पर ऑप्टिक नर्व (दृष्टि तंत्रिका) या विट्रीअॅस (पर्दे के आगे के रिक्त स्थान) में फैलने लगती हैं। नसों के फटने से रक्तस्राव होता है जिससे विट्रीअॅस जेली में भर जाती है। रोशनी आंख के पर्दे तक नहीं पहुंच पाती है।
एडवांस्ड जांचें
आंखों की सामान्य जांच से डायबिटिक रेटिनोपैथी की पहचान नहीं होती है। रिपोर्ट में इसके लक्षण नहीं दिखते हैं। इसके लिए रेटिना का रंगीन फोटो और फ्लोरेसिन एंजियोग्राफी जांच कराई जाती है। इसके अलावा ऑप्टिकल को-हेरेंस टोमोग्राफी (ओसीटी) जांच कराते हैं। यह अत्याधुनिक जांच है। इससे पर्दे की भीतरी पर्तों की जांच कर बीमारी की पहचान की जाती है।
बीमारी के लक्षण “Diabetic Retinopathy symptoms”
– मैक्युला में सूजन के कारण दृष्टि का कमजोर होना।
– मकड़ी के जाल, मच्छर जैसी आकृतियां दिखती हैं।
– अधिक रक्तस्राव होने से पूर्ण अंधापन हो सकता है।
– चश्मे का नम्बर बार-बार बदलना, लगातार बढऩा।
– आंखों में संक्रमण, सुबह उठने के बाद कम दिखना।
– आंखों में खून की शिराएं उभरना, खून जमा दिखना।
– सिरदर्द रहना या एकाएक आंखों की रोशनी कम होना।
इलाज “Diabetic Retinopathy Treatment”
लेजर फोटो कोएगुलेशन
इसमें लेजर की किरणों से आंख की नसों से रक्तस्राव व असामान्य नसों को विकसित होने से रोकने के लिए रक्त वाहिनियों को सील करते हैं।
इंजेक्शन
आंख में इंजेक्शन से दवा डालते हैं जो डायबिटिक रेटिनोपैथी से आंखों के नुकसान को रोकती है। मैक्युला में ज्यादा सूजन या लेजर उपचार के बाद रक्तस्राव होने पर करते हैं।
ऑपरेशन
आंखों में रक्त भरने से पारदर्शी विट्रीअॅस जेली धुंधली हो जाती है। ट्रैक्शनल रेटिनल डिटैचमेंट हो जाता है। इसमें लेजर उपचार काम नहीं करता। ऐसी स्थिति में विट्रेक्टॅमी ऑपरेशन करते हैं।
5 बातों का रखें ध्यान
– आंखों के पर्दे की जांच समय-समय पर कराते रहें।
– पांच साल से डायबिटिक हैं तो हर तीसरे माह जांच कराएं।
– ब्लड शुगर का नियंत्रण, लिपिड प्रोफाइल की जांच जरूरी है।
– हाई ब्लड प्रेशर व कोलेस्टॉल नियंत्रण रखना जरूरी है।
आयुर्वेद अनुसार इलाज
डायबिटिक रेटिनोपैथी को आयुर्वेद में तिमिर कहते हैं। चक्षु इंद्रिय के दो स्थान एक सिर दूसरा आंख के साथ होता है। इसका इलाज दो तरह से करते हैं। पहला रसायन विधि जिसमें दवाएं, चांदी का भस्म व आंख में गाय का आयुर्वेदिक घी लगाने के लिए देते हैं। दूसरी नेत्र वस्ति विधि जिसमें आंखों में त्रिफला घृत डालते हैं। एक माह तक नियमित करने से रेटिना की दिक्कत दूर होती है।
मधुमेह रोगी ऐसे करें बचाव
मधुमेह रोगी को खाने के लिए सप्तामृत लौह या त्रिफला युक्त चीजों का प्रयोग करने के लिए देते हैं।
खानपान का रखें पूरा ध्यान
जो डायबिटिक नहीं हैं वे साल में एक बार आंखों का तर्पण कराते रहें। गरिष्ठ व वातकारी आहार लेने से बचें।
{$inline_image}
Source: Health