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रसायन चिकित्सा बढ़ाती रोगों से लडऩे की ताकत, बुढ़ापे की प्रक्रिया धीमी होती

यह आयुर्वेद के आठ अंगों में से एक है। वैसे तो यह हर उम्र के लोगों के लिए होती है लेकिन आयुर्वेद के अनुसार जरा (बुढ़ापा) और रोगों को नष्ट करने में रसायन चिकित्सा का विशेष महत्व है। इससे स्वस्थ व्यक्ति सेहतमंद रहता है और उम्र बढऩे की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
ओज बढ़ाता है रसायन
रसायन शब्द रस और आयन से मिलकर बना है। इसका अर्थ ‘रस प्राप्ति का मार्ग’ है। अत: रसायन उसे भी कहते हैं जो ओज की वृद्धि करे। ओज का संबंध हमारी रोग प्रतिरोध शक्ति (इम्यूनिटी) से है। रसायन न केवल रोगनाशक है अपितु स्वास्थ्य रक्षक भी है। बल्य और मेद्य औषधियों को रसायन में शामिल किया जाता है। रसायनों में अश्वगंधा, सतावरी, ब्राह्मी आदि मुख्य हैं। खाद्य समग्री जैसे ज्वार, बाजार आदि भी इसमें आते हैं। इनके सेवन में कुछ बातों का ध्यान रखते हैं,जैसे- मौसमी हो और कीटनाशक का इस्तेमाल न किया गया हो।
बीमारी नहीं, शरीर का इलाज होता
आयुर्वेद में बीमारी का नहीं बल्कि मरीज के शरीर का इलाज किया जाता है। पहले लक्षणों को ठीक किया जाता है क्योंकि जब शरीर स्वस्थ रहेगा तो बीमारियां खुद ही दूर हो जाती हैं। आयुर्वेद से इलाज में पहले रसायन का इस्तेमाल कर इम्युनिटी बढा़ते हैं। यह शरीर के क्षरण को रोकता है।
रसायन चिकित्सा के लाभ
आयुर्वेद के अनुसार रसायन को लेने वाला की आयु, स्मरण शक्ति एवं बुद्धि वृद्धि होती है। साथ ही तरुण वय (वृद्धावस्था में भी युवा जैसा), शरीर व इंद्रियों में उत्तम बल की प्राप्ति, उदारता, वाक सिद्धि एवं सुरीला स्वर आदि गुणों की वृद्धि होती है। हालांकि बाजार में मिलने वाले रसायनों की गुणवत्ता परखना जरूरी होता है।
विषैले तत्व पंचकर्म से निकालते
रसायन औषधि लेने से पहले शरीर और मन की शुद्धि जरूरी है। इसमें शोधन का महत्व भी है। शरीर में कई तरह के विषैले तत्व व मल होते हैं जो बीमारी को बढ़ाते हैं। इसलिए रसायन देने से पहले शोधन कर शरीर से दूषित तत्वों को बाहर निकालते हैं। रसायन औषधि धातु और ओज को बढ़ाए, इसके लिए पंचकर्म करते हैं।
इन रसायनों को अपनाएं
1 से 10 साल तक के बच्चों को 1-2 चुटकी वचाचूर्ण शहद के साथ चटाने से कफ का शमन होता है, वाणी स्पष्ट व बुद्धि बढ़ती है।
11-20 साल तक के किशोरों को 2-3 ग्राम बलाचूर्ण 1-1 कप पानी व दूध में उबालकर देने से रस, मांस तथा शुक्रधातुएं पुष्ट होती हैं। शारीरिक बल की वृद्धि होती है।
21-30 साल तक के लोगों को चावल के दाने जितना शतपुटी लौह भस्म गोघृत के साथ लेने से ब्लड संबंधी विकार दूर होते हैं। सोने से पहले एक चम्मच आंवला चूर्ण पानी से लेने से नाडिय़ां सक्रिय होती हैं। शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है।
31-40 साल तक के लोगों को शंखपुष्पी का रस 10-15 मि.ली. या इसका एक चम्मच चूर्ण शहद के साथ लेने से मानसिक विकार दूर होते हैं। नींद अच्छी आती है। ब्लड प्रेशर व हृदय रोगों में लाभ मिलता।
41-50 वर्ष की उम्र के लोगों को एक ग्राम ज्योतिष्मिती चूर्ण 2 चुटकी सोंठ के साथ गरम पानी में मिलाकर लेने व ज्योतिष्मती के तेल से अभ्यंग से वातदोष का शमन होता है। लकवा आदि से बचाव होता है।
51-60 वर्ष की आयु में दृष्टिशक्ति घटने लगती है। एक ग्राम त्रिफला चूर्ण तथा आधा ग्राम सप्तामृत लौह गौघृत के साथ दिन में 2 बार लेने से रोशनी बढ़ती है।



Source: Health